सोनभद्र: जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे-वैसे मिट्टी के बने घड़े, कुल्हड़ आदि अन्य बर्तनों की मांग बढ़ गई है. कुम्हार दिन-रात मेहनत से करने काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत की उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पा रही है. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कुम्हारों को दूर से मिट्टी खरीद कर लानी पड़ती है. इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा करके उसमें से कंकड़ को बाहर किया जाता है, जिसके बाद मिट्टी तैयार होती है.
'देशी फ्रिज' बनाने वाले कुम्हारों का दर्द, सरकार भी नहीं कर रही मदद
बढ़ती गर्मी के कारण देशी फ्रिज यानी कि मिट्टी के घड़े की मांग बढ़ गई है. मिट्टी के बने मटके और सुराही को कुम्हारों ने चाक पर आकार देना शुरू कर दिया है. कुम्हार सुबह से अपने परिवार के साथ घड़े बनाने में जुट जाते है, लेकिन उनकी मेहनत की सही कीमत उन्हें नहीं मिल पा रही है. सरकार से भी किसानों को कोई मदद नहीं मिल रही है.
कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बने बर्तनों की कीमत बहुत कम मिलती है. एक रुपये में बड़ा लस्सी का ग्लास और 50 पैसे में कुल्हड़ बिकता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से कई प्रकार की दिक्कतें होती हैं. वहीं सरकार से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. सरकार से इलेक्ट्रॉनिक चाक मिलना था, लेकिन नहीं मिला जिससे अपने हाथों से ही कुम्हारों को चाक चलाना पड़ता है.
कुम्हार श्री प्रसाद प्रजापति का कहना है कि सरकार से कोई सुविधा कुम्हारों को नहीं मिल रही है. मिट्टी लेने के लिए भी दूर जाना पड़ता है, जिसकी कीमत देनी पड़ती है. एक कुम्हार पूरे दिन में 14-15 घड़े बना सकता है. इसके बाद उसे पकाना पड़ता, जिसमें पूरा समय चला जाता है. फिर भी उन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती, क्योंकि सरकार ने कोई कीमत निर्धारित नहीं की है. उन्होंने कहा कि मार्केट में प्लास्टिक के बने गिलास, प्लेट की वजह से भी धंधे पर असर पड़ रहा है. सरकार ने प्लास्टिक के सामान बन्द करा दिए हैं, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बाजारों में बिक रहा है.