लखनऊ :लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में उत्तर प्रदेश में जीत-हार का फैसला गरीब वर्ग से आने वाले मतदाता ही करेंगे. इस लोकसभा चुनाव में यह साफ दिखने लगा है कि दिल्ली वही जीतेगा जिसे पूर्वांचल के प्रवासियों (बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासियों) के साथ-साथ दलितों और अल्पसंख्यक वर्ग में से कम से कम दो का साथ मिले. उसके पीछे असल कारण है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश वह इलाका है जहां सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं. यही वजह है कि राजनीतिक दल पूर्वांचल में गरीब उत्थान का नारा बुलंद कर रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र अनुसार
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में रविवार को मतदान होगा, वहां सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं.
- यह हकीकत सरकारी आंकड़ों में भी मौजूद है. प्रदेश के ग्राम्य विकास विभाग के अनुसार मिर्जापुर और कुशीनगर में बीपीएल यानी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले आबादी 2000000 से भी जाता है.
- बलिया, चंदौली, देवरिया, गाजीपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी समेत पूरे इलाके में गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वालों की तादाद एक करोड़ से भी ज्यादा है.
- ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनावी सभाओं को संबोधित करने के दौरान अपनी जाति गरीबी बताई तो दरअसल वह इस इलाके के गरीब मतदाताओं के साथ अपना सीधा संबंध कायम करना चाहते थे.
- उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव के दौरान शराब को मुद्दा बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौथे और पांचवें चरण के प्रचार के दौरान पिछड़ी जाति का मुद्दा उठाया.
- सातवें चरण में वह गरीबी की बात करने लगे तो समाजवादी पार्टी उन्हें निशाने पर लेने से नहीं चूकी.