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बसपा में नहीं रुक रहा बगावत का दौर, बड़े दिग्गजों का जाना जारी

सपा से दोस्ती का सौदा भी नहीं रोक पा रही है बसपा. पार्टी से कद्दावर नेताओं का जाना लगातार जारी है. एक के बाद एक बसपा के दिग्गज नेताओं का पार्टी से जाना मायावती के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. सोशल इंजीनियरिंग का उनका फॉर्मूला भी बिखरता नज़र आ रहा है.

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Published : Mar 8, 2019, 1:54 PM IST

लखनऊ: दलित वोट बैंक के साथ पिछड़ा मुस्लिम वोट बैंक के लिए बसपा ने सालों पुरानी अदावत भुलाकर सपा से दोस्ती की और चुनावी बिसात बिछाने में जुट गई. सपा से दोस्ती के बावजूद बसपा के अंदर बिखराव और नाराजगी जारी है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी से शुरू हुआ पार्टी के पुराने वफादारों का जाना बदस्तूर जारी है और जो पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है.

बसपा में नहीं रुक रहा बगावत का दौर

बीते विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के फंड में घपलेबाजी से पैदा हुआ विवाद पार्टी प्रमुख मायावती और उनके पुराने सिपहसालार नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बसपा को अलविदा कह दिया था. दलित वोट बैंक के सहारे रहने वाली मायावती ने 2014 के हश्र को देखते हुए अपने वजूद को बचाने के लिए सपा से हाथ मिलाना बेहतर समझा.

लिहाजा सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ तो माना जाने लगा कि चुनाव में दलित पिछड़े और मुसलमान वोट बैंक से दोनों ही पार्टियां एक नई शक्ति के तौर पर उभरेंगी. सपा-बसपा का यह मजबूत गठजोड़ कितने वोट बैंक को तब्दील करेगा यह तो लोकसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे, लेकिन पार्टी के अंदर पुराने वफादारों की नाराजगी खत्म होती नहीं दिख रही है. यही वजह है कि बसपा से नेताओं का पलायन लगातार जारी है.

बसपा में नहीं रुक रहा बगावत का दौर.

इन नेताओं ने छोड़ा बसपा का साथ

सीतापुर की पूर्व सांसद कैसर जहां
दो बार विधायक रहे जास्मीन अंसारी
सिराथू से पूर्व विधायक राम सजीवन निर्मल
बसपा सरकार के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री और एमएलसी अतहर खान
सलेमपुर से बसपा के पूर्व सांसद बब्बन राजभर

बसपा सरकार के पूर्व मंत्री और आगरा के छात्र नेता देवेंद्र सिंह चिल्लू

रालोद से बसपा में आए उमेश सेतिया

रामवीर उपाध्याय के भाई मुकुल उपाध्याय

यह वो नाम है जो हाल ही में बसपा और बसपा प्रमुख से नाराज होकर पार्टी छोड़कर चले गए हैं. 2014 से 2019 तक के इस राजनीतिक समर में बसपा के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं, क्योंकि इस बार जहां एक तरफ नसीमुद्दीन सिद्धिकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक जैसे कद्दावर नेता पार्टी के साथ नहीं होंगे तो वहीं कई पुराने नेता भी पार्टी को छोड़कर लगातार अलविदा कह रहे हैं. लिहाजा अब देखना होगा कि बदली परिस्थितियों से बसपा कितना मुकाबला कर पाती है.

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