लखनऊ: दलित वोट बैंक के साथ पिछड़ा मुस्लिम वोट बैंक के लिए बसपा ने सालों पुरानी अदावत भुलाकर सपा से दोस्ती की और चुनावी बिसात बिछाने में जुट गई. सपा से दोस्ती के बावजूद बसपा के अंदर बिखराव और नाराजगी जारी है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी से शुरू हुआ पार्टी के पुराने वफादारों का जाना बदस्तूर जारी है और जो पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है.
बीते विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के फंड में घपलेबाजी से पैदा हुआ विवाद पार्टी प्रमुख मायावती और उनके पुराने सिपहसालार नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बसपा को अलविदा कह दिया था. दलित वोट बैंक के सहारे रहने वाली मायावती ने 2014 के हश्र को देखते हुए अपने वजूद को बचाने के लिए सपा से हाथ मिलाना बेहतर समझा.
लिहाजा सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ तो माना जाने लगा कि चुनाव में दलित पिछड़े और मुसलमान वोट बैंक से दोनों ही पार्टियां एक नई शक्ति के तौर पर उभरेंगी. सपा-बसपा का यह मजबूत गठजोड़ कितने वोट बैंक को तब्दील करेगा यह तो लोकसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे, लेकिन पार्टी के अंदर पुराने वफादारों की नाराजगी खत्म होती नहीं दिख रही है. यही वजह है कि बसपा से नेताओं का पलायन लगातार जारी है.
इन नेताओं ने छोड़ा बसपा का साथ