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स्पेशल रिपोर्टः 26/11 हमले में इस MARCOS कमांडो ने निभाई थी अहम भूमिका

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Published : Nov 26, 2019, 11:31 PM IST

26 नवंबर 2008 हिंदुस्तान के इतिहास की ये मनहूस तारिख कौन भूल सकता है. मुंबई में आतंकियों की तबाही से जब पूरा देश सहम गया था. पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही थी और आतंकवादी 164 लोगों को मौक की नींद सुला चुके थे. इस बीच इन खूंखार आतंकियों से निपटने के लिए भारत के सबसे खतरनाक और जाबांज मारकोस कमांडो ने मोर्चा संभाला था. इन्हीं में से एक थे सिरोही जिले के बसंतगढ़ के रहने वाले हिम्मत सिंह राव जो इस पूरे आपरेशन का हिस्सा थे...पढ़ें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

हिम्मत सिंह राव, मार्कोस कमांडो, Himmat Singh Rao, Marcos Commando
26/11 हमले के हीरो थे सिरोही के हिम्मत सिंह राव

सिरोही. मुंबई में 26 नवंबर 2008 को आतंकी हमला हुआ, जिससे पूरी मुंबई दहल उठी थी. आतंकी हमले में कई लोग मारे गए. जिसके बाद आतंकवादियों को काबू करने और फिर से अमन-चैन लौटाने के लिए मारकोस कमांडो की खास भूमिका रही. उसी कमांडो टीम का हिस्सा रहे हिम्मत सिंह राव मूल रूप से राजस्थान के सिरोही जिले के बसंतगढ़ के रहने वाले है. हिम्मत सिंह राव वर्तमान में उदयपुर जिले के झाडोल में प्रशिक्षु नायब तहसीलदार हैं.

26/11 हमले के हीरो थे सिरोही के हिम्मत सिंह राव

सिरोही जिले के बसंतगढ़ निवासी हिम्मत सिंह राव 18 साल के थे तब 1999 में बतौर इंजीनियरिंग मैकेनिक भारतीय नेवी में शामिल हुए. कम समय में ही 2004 में वे सबसे जांबाज माने जाने वाले मारकोस कमांडो के लिए चयनित हुए और मार्कोस बने. उन्होंने कई तरह के कठिन प्रशिक्षणों के साथ स्नाइपर, माउंटेनियरिंग बेसिक और एडवांस की ट्रेनिंग भी ली.

साल 2014 में सेना से सेवानिवृत्ति के बाद दो साल उदयपुर में रहकर उन्होंने आरएएस की तैयारी की. जिसके बाद वो चित्तौड़ जिले के कपासन में बतौर आबकारी निरीक्षक के पद पर भी रहे. हिम्मत सिंह राव ने दोबारा आरएएस की परीक्षा दी जिसमें वो तहसीलदार सेवा के लिए चयनित हुए. हिम्मत सिंह की पत्नी हुकम कंवर भी तहसीलदार हैं.

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हिम्मत सिंह राव बताते हैं कि 26 नवंबर 2008 को रात में करीब 9.30 बजे थे. मारकोस कमांडो टीम के रूप में हमारी पोस्टिंग नवी मुंबई के पास आइलैंड में थी. अचानक टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश होती है कि मुंबई में फिर गैंगवार हुआ, जिसमें कई लोगों के मरने की खबर है. वहीं, कुछ देर बाद बता चला कि यह गैंगवार नहीं बल्कि आतंकी हमला है. गेट वे आफ इंडिया के पास लियो पार्ड केफे, होटल ताज, होटल ट्राइडेन्ट, सीएसटी और नरीमन हाउस इन जगहों पर आंतकियों ने अंधाधुंध फायरिंग के साथ कुछ जगहों पर लोगों को बंदी बना लिया है.

साथ ही हिम्मत सिंह बताते है कि खबर सुनते ही हम लोग अलर्ट हो गए क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर मारकोस को एप्रोच की जाती है. जिसके बाद 10 से 15 मिनट में काॅल आ भी गई. मैं तीसरी टीम का सदस्य था. जहां हमले हुए वह जगह दूर थी. हमारी टीम समुद्री रास्ते से वहां पहुंची और अलग-अलग बट गई. मार्कोस टीम दीवारों और पाइप के सहारे होटल ताज में घुसी. दो बार आंतकियों से सीधी मुठभेड़ होती है.

क्योंकि वहां वीआईपी गेस्ट सहित कई लोग फंसे होते हैं, इसलिए हमारे लिए सीधी फायरिंग करना आसान नहीं था. हमारी प्राथमिकता आतंकियों को और डैमेज करने से रोकना और सभी को वहां से सुरक्षित निकालना था. जिसमें हम कामयाब रहे. रात 11.30 बजे से सुबह तक चले रेस्क्यू में हमने 175 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया.

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हालांकि, आंतकवादी इससे पहले कई लोगों को मार चुके थे. होटल ताज मे आतंकियों के ग्रेनेड, जिंदा कारतूस, हथियार और कुछ वस्तुएं बरामद की गई. हिम्मत सिंह ने बताते हैं कि इस दौरान कमांडो प्रवीण गंभीर रूप से चोटिल हो गए थे.

जेहन में मौत नहीं, सिर्फ मिशन

हिम्मत सिंह कहते हैं कि 26 नवंबर 2008 का यह रेस्क्यू उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और यादगार मिशन रहा. वहीं, जब उनसे ये पूछा गया कि ऐसे भीषण समय में खुद को बचाने के लिए उन्होंने क्या सोचा था. इस सवाल पर हिम्मत सिंह ने कहा कि यह बात तो जहन में आती ही नहीं है. हमारे सामने सिर्फ और सिर्फ मिशन होता है.

मार्कोस की तैयारी और हमारा साजो सामान इतना आला दर्जे का होता है कि वो किसी भी विपरीत परिस्थिति के लिए सक्षम होते हैं. हिम्मत सिंह राव ने बताया कि आतंकियों से मुठभेड़ के समय वे गेट वे आफ इंडिया पर अपनी स्नाईपर के साथ तैनात थे. जिससे कोई भी आतंकी भागने के कामयाब ना हो पाए.

हिम्मत सिंह के अनुसार ताज होटल वहां से 300 मीटर दूरी पर है. जहां अंदर और बाहर कई लोग जमा थे. जैसे ही उन्हें पता चला कि मारकोस कमांडो आ चुके हैं, वो नारे लगाते हुए हमारा उत्साह बढ़ाने लगे. उन्होंने मान लिया कि जैसे अब कोई खतरा ही नहीं है और उन्हें ऐसा देख कर लगा कि मैंने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है.

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