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स्पेशलः राजनीति की भेंट चढ़ी सीकर की प्याज मंडी, गहलोत के बजट 2021 से किसानों में जगी आस

सीकर में प्याज की मंडी बनकर तैयार है. प्रदेश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक जिला सीकर में देसी प्याज की आवक शुरू हो गई है, लेकिन मंडी में काम अभी तक शुरू नहीं होने से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. भंडारण की व्यवस्था नहीं होने से किसानों को मजबूरन अपनी फसल को औने पौने दाम पर बेचना पड़ता है.

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Published : Feb 22, 2021, 2:24 PM IST

Rajasthan budget 2021, सीकर की प्याज मंडी
गहलोत के बजट 2021 से किसानों में जगी आस

सीकर. प्रदेश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक जिला सीकर में देसी प्याज की आवक शुरू हो गई है. जिले के प्याज उत्पादन क्षेत्र में अब किसान धीरे-धीरे प्याज की खुदाई शुरू करने लगे हैं और मंडी में भी सीकर का प्याज आने लगा है. लंबे समय से सीकर के किसान प्याज मंडी की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस बार भी प्याज मंडी में कारोबार शुरू नहीं हो पाया है. ऐसे में एक बार फिर से किसानों के सामने प्याज के स्टोरेज की समस्या रहेगी और किसानों को सस्ती दरों पर अपना प्याज बेचना पड़ेगा. जिले में पिछले 20 साल से प्याज मंडी के नाम पर राजनीति हो रही है और हर बार सरकार प्याज मंडी शुरू करने वादा होता है, प्याज मंडी बनकर तैयार भी हो गई है, लेकिन इस बार भी वहां पर काम शुरू नहीं हो पाया है, हालांकि प्याज की आवक शुरू हो गई है.

राजनीति की भेंट चढ़ी सीकर की प्याज मंडी

सीकर जिले की बात करें तो यहां पर प्याज का बड़े स्तर पर उत्पादन होता है और कई गांव में किसान केवल प्याज की खेती करते हैं. जिले के धोद विधानसभा क्षेत्र के गांव में सबसे ज्यादा प्याज उत्पादन होता है. इसके साथ-साथ लक्ष्मणगढ़ इलाके में भी प्याज की बुवाई होती है. प्याज मंडी की मांग यहां काफी पुरानी है और पिछले 20 साल से इसी पर राजनीति हो रही है.

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साल 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सीकर में रसीद पूरा गांव में प्याज मंडी की घोषणा की थी. उसके बाद सरकार बदल गई और प्याज मंडी की मांग अधूरी रह गई. हर बार प्याज के सीजन में किसान परेशान होते रहे हैं, लेकिन मंडी की सौगात नहीं मिल पाई. 2017 में प्याज मंडी स्वीकृत की गई और उसके बाद काम भी शुरू हो गया. अब यह प्याज मंडी बनकर तैयार भी हो चुकी है, लेकिन इसके बाद भी यहां मंडी शुरू नहीं की गई है और इस बार का सीजन शुरू हो चुका है, इसलिए किसानों को इस बार भी राहत नहीं मिलने वाली है.

15000 हेक्टर में प्याज की बुवाई

जिले में करीब 15000 हेक्टर में प्याज की बुवाई की गई है और 100000 किसान प्याज उत्पादन करते हैं. हर साल जिले में औसतन 5 लाख मैट्रिक टन प्याज का उत्पादन होता है. प्याज मंडी नहीं होने की वजह से किसानों को जल्दबाजी में अपना प्याज बेचना पड़ता है और उसकी कीमत भी नहीं मिल पाती है.

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4 से ₹6 किलो तक में बेचना पड़ता है प्याज

सितंबर के महीने से लेकर जनवरी तक प्याज के भाव तेज रहते हैं, लेकिन उस वक्त तक सीकर का प्याज रुकता नहीं है. इस इलाके में पैदा होने वाला प्याज मीठा प्याज माना जाता है और जल्दी खराब होता है. भंडारण की व्यवस्था नहीं होने की वजह से किसान खेत से तुरंत ही प्याज बेचने के लिए आता है. एक साथ प्याज की ज्यादा आवक होने की वजह से किसानों को 4 से ₹6 किलो तक में प्याज बेचना पड़ता है, जबकि किसान की लागत ही इससे ज्यादा आती है. अगर प्याज मंडी शुरू हो जाए और प्याज के भंडारण की व्यवस्था हो तो किसान अपने प्याज को ऑफ सीजन तक बचा कर रख सकता है और अपनी फसल को अच्छे दामों पर बेच सकता है.

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