राजसमंद.प्रदेश में बंसत पंचमी से ही फाग उत्सव की धूम शुरू हो जाती है, जो होली पर खत्म हो जाती है. 1 माह तक चलने वाले फाग में श्रद्धालु मंदिरों में रोज अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं और चंग, ढप, झांझ की ताल पर रसिया गाये जाते हैं. लेकिन राजस्थान में एक ऐसी जगह है जहां भगवान को रिझाने के लिए रसिया के साथ गालियों का प्रयोग किया जाता है. हम बात कर रहे हैं राजसमंद में स्थित श्रीनाथद्वारा की, जिसमें गालियों से प्रभु को प्रसन्न किया जाता है.
होली पर खत्म होता है फागोत्सव
नाथद्वार में आने वाले हर दर्शानर्थी के साथ फागोत्सव खेला जाता है, जो होली पर डोल उत्सव के साथ संपन्न जाता है. फागोत्सव से डोल उत्सव तक सभी एक दूसरे को गुलाल लगाकर गालियां देकर अभिवादन करते हैं. इस अनूठी होली में स्थानीय निवासी बढ़चढ़कर भाग लेते हैं.
ठाकुर जी को देते हैं गालियां
मंदिर में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि के दिन से होलकाष्टक लगने के साथ ही रसिया गान में गलियों का प्रयोग शुरु हो जाता है. कीर्तनकार और ग्वालबाल प्रेम पुर्वक भगवान के समक्ष भगवान को और मंदिर के मुखिया को और तिलकायत महाराज श्री को भी गालिया देते हैं.
ठाकुर जी को भाती हैं गालियां
रसिया गीत में दी जाने वाली गालियों में घृणा नहीं बल्कि प्रेम भाव होता है, यही वजह है कि ये ठाकुर जी को बहुत भाती है. रसिया में प्रेम भाव और छेड़छाड़ के गीत गाये जाते है. स्थानीय लोगों में मान्यता है कि सभी ग्वालबाल भगवान के मित्र हैं इसी वजह से प्रमभरी गालियों देकर वे अपने प्रेम का दर्शाते हैं.
श्रीनाथजी में खास तैयारियां
(होली) डोल उत्सव के दौरान खास तैयारियां की जाती है, जिसमें प्रभु श्रीनाथजी को चार राजभोग धराये जाते हैं और शाम को चौथे राजभोग की आरती के दर्शन के साथ एक माह से चल रहे फाग उत्सव का समापन हो जाता है.