पाली.कोरोना वायरस संक्रमण के बाद संपूर्ण देश में लॉकडाउन को लेकर पाली में 59 दिन बीतने को हैं. इन 59 दिनों में पाली का एक भी श्रमिक अपने घर से बाहर नहीं निकल पाया है और न ही उसे किसी भी प्रकार का रोजगार मिल पाया है. दिहाड़ी मजदूरी करने वाला यह श्रमिक सुबह मजदूरी कर शाम को अपने घर भोजन लेकर जाता था. लेकिन इन 2 माह में इनकी स्थिति पूरी तरह से बिगड़ चुकी है. ये लोग अपने घरों में ही रह सके, इसके लिए प्रशासन ने राशन और सूखी सामग्री डोर-टू-डोर सप्लाई कराने को लेकर व्यवस्था के बड़े-बड़े दावे किए थे. अधिकारियों द्वारा प्रतिदिन दावे किए जा रहे थे कि पाली में सभी जरूरतमंद परिवारों तक भोजन के पैकेट की सामग्री पहुंच रही है. अधिकारियों के दावे इन गरीबों के मायूस चेहरे और इनके घरों में पड़े राशन कार्ड को देखने के बाद खोखले से नजर आ रहे हैं.
डोर-टू-डोर सप्लाई की बात तो दूर, प्रशासन इन दो माह में एक बार भी इनके घरों के पास नहीं पहुंच पाया. इसकी गवाह इनके हाथों में पड़े राशन कार्ड बता रहे हैं. सैकड़ों परिवार हैं, जिनके राशन कार्ड में आज तक रसद विभाग की सील तक नहीं लग पाई है. कई परिवार ऐसे भी हैं, जिन्हें पिछले दो माह से एक बार ही राहत किट नहीं मिल पाई. ऐसे में जब यह गरीब अपना राशन मांगने के लिए सड़कों पर जाने लगा तो कभी पुलिस ने उसे रोका तो कभी अधिकारियों ने उन्हें कार्यालय से खदेड़ा. थका हारा यह गरीब फिर से अपने घर की तरफ लौटा और इनका चेहरा सिर्फ भामाशाह की राह ताकता रहा.
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ईटीवी भारत की टीम ने पाली प्रशासन की ओर से किए जा रहे इन दावों की हकीकत जानने की कोशिश की. पाली शहर के सबसे गरीब तबके वाला क्षेत्र बजरंगवाडी, यहां पर ईटीवी भारत को कई परिवार मिले, जिन्होंने अपने घर की स्थिति बताई. कई परिवारों ने बताया कि वे लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और सुबह-शाम अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं. पिछले 2 महीने से वह पूरी तरह से बेरोजगार हैं. कई लोगों के पास एपीएल और बीपीएल के राशन कार्ड भी हैं. प्रशासन की ओर से कई लोगों को 2 महीने में एक बार राहत के दिया गया है और सैकड़ों लोग इससे अब भी वंचित हैं, जिन लोगों को राहत किट मिला. उनके लिए वह 2 या 3 दिन का परचून था. परिवार में 9 से 10 सदस्य, राहत किट में 5 किलो आटा, 1 किलो दाल, 1 किलो तेल और नाम मात्र के मसाले. ऐसे में यह गरीब न तो अपने घर से बाहर निकल पाए और न ही किसी को अपनी जरूरत बता पाया.
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