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खल आयात करने के आदेश से सोयाबीन के भाव में अब तक की बड़ी गिरावट, किसानों को हो रहा नुकसान

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Published : Aug 15, 2021, 3:49 PM IST

कोटा में सोयाबीन की आवक जारी है लेकिन सोयाबीन के भाव (Soybean price) में बड़ी गिरावट आई है. कोटा मंडी के व्यापारियों का मानना है कि सरकार के खल आयात करने के आदेश के बाद भाव गिरे हैं.

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सोयाबीन के दाम में गिरावट

कोटा. सोयाबीन की आवक अभी भी जारी है लेकिन पिछले 1 सप्ताह में सोयाबीन के भाव गिर गए हैं. इनमें करीब 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. भामाशाह कृषि उपज मंडी में पिछले सप्ताह सोयाबीन के दाम किसानों को 10000 से भी ज्यादा मिल रहे थे. अब बीते 7 दिनों में लगातार सोयाबीन के भाव गिर रहे हैं, जो कि 8500 रुपए के आसपास पहुंच गए हैं.

भामाशाह मंडी में लगातार सोयाबीन की आवक अभी भी जारी है लेकिन बीते 1 सप्ताह में सोयाबीन के भाव धड़ाम से नीचे गिर गए हैं. और इनमें करीब 20 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. जो कि करीब 2 हजार रुपए के आसपास है. भामाशाह कृषि उपज मंडी में पिछले सप्ताह सोयाबीन के दाम किसानों को 10000 से भी ज्यादा मिल रहे थे. कई बार तो 11000 रुपए क्विंटल सोयाबीन मंडी में किसानों ने बेची है.

सोयाबीन के दाम में गिरावट

अब सोयाबीन के 8500 रुपए के आसपास पहुंच गए हैं. हालांकि, सोयाबीन की आवक अभी कम है लेकिन फिर भी किसानों को लगातार अब इससे नुकसान हो रहा है. वर्तमान में मंडी में 4 से 5 हजार क्विंटल के आसपास रोज सोयाबीन की आवक हो रही है.

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कोटा मंडी के व्यापारी और एक्सपर्ट मुकेश भाटिया का मानना है कि पहली बार इतना ज्यादा दाम सोयाबीन के गिरे हैं. केंद्र सरकार ने एक आदेश अभी जारी किया है. जिसके तहत 15 लाख टन सोयाबीन की खल विदेशों से आयात की अनुमति दी गई है. इसी के कारण यह गिरावट आई. जबकि पहले से ही बाहर से सोयाबीन की खल को आयात करने के आदेश सरकार ने दिए हुए हैं. जिसे सामान्य प्रक्रिया फॉर्म 23 के तहत मंगाया जा सकता है. मुकेश भाटिया का यह भी कहना है कि सोयाबीन के दाम मंडी में कम हो गए हैं. जबकि तेल के दामों में किसी भी तरह की कमी अभी नजर नहीं आई है.

फसल अगली कमजोर, फिर भी गिरावट

हाल ही में सोयाबीन की जो फसल बोई गई थी. उसमें भी काफी बड़ा नुकसान हाड़ौती में अतिवृष्टि से सामने आया है. जिसके चलते अगली फसल कमजोर होगी. ऐसे में इस बार उत्पादन की कम ही संभावना है लेकिन फिर भी दामों में गिरावट हुई है.

आंकड़ों की बात की जाए तो हाड़ौती में जहां पर 28 लाख 36 हजार बीघा भूमि पर फसल की जानी थी लेकिन उसकी जगह 24 लाख 55 हजार बीघा पर ही किसानों ने अपनी खेती की है. उसमें भी करीब 90 फीसदी तक खराबा हुआ है.

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