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हर दूसरे साल कोटा में डेंगू का जानलेवा खतरा, सरकारी सिस्टम के चलते उपचार में पॉजिटिव, लेकिन रिकॉर्ड में नेगेटिव

कोटा में इस साल फिर डेंगू का ग्राफ बढ़ने लगा है. कोटा में अब तक कुल 230 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं, जो सरकारी आंकड़ों के अनुसार है. सरकारी सिस्टम के चलते मरीजों का उपचार डेंगू की गाइडलाइन के अनुसार तो हो रहा है, पर फिर भी उन्हें डेंगू का मरीज नहीं माना जा रहा. पढ़िए ये रिपोर्ट...

Dengue Cases in Kota
Dengue Cases in Kota

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 26, 2023, 11:27 PM IST

हर दूसरे साल कोटा में डेंगू का जानलेवा खतरा

कोटा.डेंगू का ग्राफ कोटा संभाग में एक साल छोड़कर बढ़ता रहा है. पिछले कुछ साल के ट्रेंड को देखें तो कोटा पर इस साल फिर डेंगू का खतरा मंडराने लगा है. अगस्त माह में अब तक 230 से ज्यादा पॉजिटिव केस कोटा में सामने आ चुके हैं, जबकि कोटा संभाग का आंकड़ा 256 पहुंच गया है. हालांकि ये सरकारी आंकड़े हैं, क्योंकि सरकार एलिसा (ELISA) टेस्ट वाले मरीजों को ही पॉजिटिव मानती है. वहीं, कार्ड टेस्ट से देखें तो अस्पतालों में डेंगू के अब तक 2000 से ज्यादा लोग संक्रमित सामने आ चुके हैं.

पॉजिटिव मरीज में अंतर :सरकारी सिस्टम में चिकित्सक डेंगू पॉजिटिव केवल एलिसा टेस्ट वाले मरीजों को ही मानते हैं, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में कार्ड टेस्ट में पॉजीटिव आने और प्लेटलेट्स गिरने को ही पॉजिटिव मान लिया जाता है. चिकित्सक ऐसे मरीजों का डेंगू की गाइडलाइन के अनुसार ही उपचार करते हैं. सरकारी अस्पतालों में भी प्लेटलेट गिरने पर डेंगू का उपचार होता है. वर्तमान में कोटा में करीब 400 से 500 मरीज अस्पताल में भी भर्ती हुए हो चुके हैं, जिन्हें डेंगू सस्पेक्ट मानते हुए उपचार दिया गया है. इनमें से दो की मौत की बात भी सामने आ रही है. हालांकि चिकित्सा विभाग के रिकॉर्ड में इन दो मौतों का जिक्र नहीं है. डिप्टी सीएमएचओ डॉ. घनश्याम मीणा का कहना है कि कोटा में डेंगू से अभी तक कोई मौत सामने नहीं आई है. डेंगू से मौत होने पर भी उस मरीज की डेथ ऑडिट होती है. हालांकि यह एलिसा टेस्ट में पॉजिटिव नहीं आए थे. सरकार कार्ड टेस्ट के मरीज को संक्रमित नहीं मानती है.

इस साल ऐसे बढ़ा ग्राफ

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कोचिंग एरिया में हुआ बड़ा आउटब्रेक :कोटा शहर के तलवंडी इलाके में बड़ा आउटब्रेक सामने आया है. इंद्रविहार, राजीव गांधी नगर, महावीर नगर और तलवंडी एरिया में बड़ी संख्या में मरीज सामने आ रहे हैं. इनमें कोचिंग छात्र भी शामिल हैं. कोचिंग एरिया में डेंगू के केस सबसे ज्यादा आ रहे हैं. इसकी पुष्टि कोटा के डिप्टी सीएमएचओ डॉ. मीणा ने की है. उनका कहना है कि कोचिंग छात्र अपने रूम में ज्यादातर समय लोअर और टीशर्ट में ही रहते हैं. ऐसे में मच्छर काटने के चांसेज ज्यादा होते हैं. पीजी और हॉस्टल में कूलर होते हैं, जिसके जरिए भी एडीज मच्छर का लार्वा उन्हें मिल जाता है. ऐसे में लगातार केसेज बढ़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि कोचिंग संस्थान और हॉस्टल में जाकर बच्चों के बीच अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाया गया है. साथ ही उन्हें अपने कूलर और आसपास की जगह को लगातार साफ करने के लिए भी निर्देशित किया है.

बढ़ गई है प्लेटलेट्स की मांग :कोटा शहर में सिंगल डोनर प्लेटलेट की डिमांड अचानक से बढ़ गई है, क्योंकि मरीज एलिसा टेस्ट में तो पॉजिटिव नहीं आ रहा है, लेकिन कार्ड टेस्ट में पॉजीटिव आने पर उन्हें प्लेटलेट चढ़ानी पड़ रही है. ऐसे में सिंगल और रैंडम डोनर प्लेटलेट दोनों की ही डिमांड आ रही है. इसके लिए अभियान चलाने वाले भुवनेश गुप्ता का कहना है कि बीते 15 दिन में अचानक से डिमांड 4 गुना से ज्यादा बढ़ गई है. पहले जहां 5 से 7 के बीच एसडीपी रोज हो रही थी, अब यह बढ़कर 30 से 40 के बीच हो रही है. इनमें सरकारी और प्राइवेट सभी अस्पताल शामिल हैं.

देखें पिछले कुछ सालों का ट्रेंड

उपयुक्त तापमान से बढ़ रहा आउटब्रेक :कोटा के संयुक्त निदेशक डॉ. सतीश खंडेलवाल का कहना है कि अमूमन तौर पर सितंबर-अक्टूबर में बारिश के बाद डेंगू का आउटब्रेक होता है, लेकिन इस बार यह आउटब्रेक जुलाई अंतिम और अगस्त की शुरुआत में ही हो गया था. वर्तमान में भी तापमान 30 डिग्री के आसपास दिन में रहता है, जो डेंगू के मच्छर एडीज के पनपने के लिए उपयुक्त होता है. ऐसे में मामले बढ़ रहे हैं.

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सरकार नहीं मान रही 2 की मौत :कोटा में दो लोगों की मौत भी डेंगू के चलते होना सामने आ रही है. हालांकि दोनों कार्ड टेस्ट में कंफर्म थे, लेकिन एलिसा टेस्ट में नहीं थे. ऐसे में सरकारी रिकॉर्ड में इन्हें डेंगू से मौत नहीं माना गया है. इनमें पहली मौत 17 अगस्त को तलवंडी निवासी कृष्ण टुटेजा की हुई है, जो वल्लभबाड़ी में निजी स्कूल की संचालक थीं और निजी अस्पताल में डेंगू का उपचार करवा रही थीं. इसके बाद इन्हें जयपुर रेफर कर दिया था. ब्रेन हेमरेज और मल्टी ऑर्गन फेलियर होने पर उन्हें जयपुर में भर्ती करवाया गया, जहां पर उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया. दूसरा मृतक पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल का भतीजा विजय है, जिसकी मौत 22 अगस्त को हुई है.

डेंगू मच्छर का लार्वा नष्ट कर रही टीम

ट्रेंड पर रिसर्च की जरूरत :डॉ. मीना का कहना है कि एक साल छोड़कर केस बढ़ना एक ट्रेंड ही है. यह ट्रेंड क्यों बना हुआ है, यह समझ के बाहर है. डेंगू बारिश के ऊपर ही निर्भर है. बारिश में जब काफी ज्यादा गैप होता है, तब मच्छर को पनपने का मौका मिल जाता है. वर्तमान में गर्मी ज्यादा हो गई. इसके चलते लोगों के घरों में अब तक कूलर चल रहे हैं और यह मच्छर के लिए प्रतिकूल वातावरण भी बन गया है. लगातार मच्छरों की ब्रीडिंग बढ़ गई है और इसी के चलते केस भी सामने आए हैं, हालांकि 1 साल छोड़कर 1 साल का ट्रेंड पर रिसर्च की ज्यादा जरूरत है.

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कूलर तक पहुंचना मुनासिब नहीं :एंटोमोलॉजिस्ट डीपी चौधरी का कहना है कि ज्यादातर डेंगू फैलाने वाले एडीज मच्छर का लार्वा कूलर के अंदर ही मिल रहा है. कोटा कोचिंग एरिया में कई मंजिल ऊंचे मकान हैं. ऐसे में वहां पर कूलर भी काफी ऊंचाई पर लगाए गए हैं, जहां पर जाना संभव नहीं है. उन्हें सीधा भर दिया जाता है और सालों तक खोला नहीं जाता. यही मच्छरों के लिए वरदान साबित हो रहा है. ऐसी जगह पर मच्छर आसानी से ब्रीडिंग कर रहे हैं और बीमारी को बढ़ा रहे हैं.

रोज हो रहा 5000 घरों का सर्वे :डॉ. घनश्याम मीणा का कहना है कि करीब 200 से 300 लोगों की टीम डेंगू की रोकथाम के लिए लगाई गई है. रोज घर-घर सर्वे हो रहे हैं. पॉजिटिव केस आने के बाद 50 घरों का सर्वे करवाया जा रहा है. करीब 4 से 5 हजार घरों का सर्वे रोज हो रहा है. दूसरी तरफ एंटी लार्वा एक्टिविटी भी की जा रही है. कोचिंग एरिया में फॉगिंग भी हो रही है. जहां पर डेंगू का आउटब्रेक होता है वहां एंटी लार्वा एक्टिविटी के लिए टीम भेज दी जाती है और लार्वा को नष्ट किया जा रहा है.

घर में लगे पौधे भी बन रहे संकट :डीपी चौधरी के अनुसार डेंगू मच्छर के लिए महज 100 मिलीलीटर भरा हुआ पानी भी वरदान हो जाता है, वह इसमें अच्छे से पनपने लग जाता है. घरों में मनी प्लांट, गमले, फ्रिज के पीछे की ट्रे, कूलर, परिंडे भी बड़ा संकट बन रहा है. इसके अलावा घर के बाहर पशुओं के लिए भरी पानी की टंकियों में अधिकांश लार्वा मिल रहा है. ज्यादा बारिश होने पर लार्वा अगर पनपता भी है, तो वह बहकर निकल जाता है. इसके चलते आउटब्रेक कम होता है. ज्यादातर आउटब्रेक सितंबर अक्टूबर में ही सामने आता है, लेकिन इस बार अगस्त में ही केसेज सामने आ रहे हैं.

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