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प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी 225 रुपए, सरकारी विद्यालयों में कुक कम हेल्पर की मानदेय सिर्फ 44 रुपए

प्रदेश में कुक कम हेल्पर को रोजाना को सिर्फ 44 रुपये ही मिलते है. पहले सिर्फ इनको खाना बनाना पड़ता है, लेकिन अब इन्हें सुबह का दूध भी गर्म करना पड़ता है. जबकि न्यूनतम मानदेय 225 रुपए का होता है. ऐसे में ये इतने कम मानदेय में अपना खर्च कैसे चलाएंगी, कुछ कहा नहीं जा सकता.

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कुक कम हेल्पर को दिया जा रहा रोजाना का 44 रुपया मानदेय

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Published : Jan 16, 2020, 5:20 PM IST

भोपालगढ़ (जोधपुर).जिले के भोपालगढ़ सहित प्रदेश में आठवीं तक के सरकारी विद्यालयों में रसोई की गर्मी में तपकर बच्चों के लिए दूध गर्म करने से लेकर दोपहर का भोजन तैयार करने वाली कुक कम हेल्परों का आर्थिक शोषण हो रहा है. दरअसल, कुक कम हेल्पर को जो मानदेय दिया जा रहा है, वह अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी का चौथा हिस्सा भी नहीं है.

कुक कम हेल्पर को दिया जा रहा रोजाना का 44 रुपया मानदेय

राजस्थान सरकार ने बीते साल मार्च माह में ही प्रदेश में अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 225 रुपए प्रतिदिन यानि 5850 रुपए प्रतिमाह की थी, जबकि कुक कम हेल्पर का मानदेय मात्र 1320 रुपए महीना है. यानी एक दिन के मात्र 44 रुपए ही उनकों दिए जा रहे है. खास बात यह कि विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री का वेतन जब चाहे बढ़ा लिया जाता है, लेकिन गर्मी में भट्टी के पास तपने वाली कुक कम हेल्पर का मानदेय बढ़ाने की बजाए आंकड़ों में खेल खेला जा रहा है.

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बता दें कि पिछले काफी समय से कुक कम हेल्पर की मानदेय बढ़ाने की मांग की जा रही थी, जिसको लेकर बीते साल सरकार ने 1000 रुपए से बढ़ाकर 1320 रुपए का मानदेय किया, लेकिन इतने में कुक कम हेल्पर के लिए महीने का खर्च चलाना बेहद मुश्किल है. पहले जहां कुक कम हेल्पर को दोपहर का भोजन ही पकाना पड़ता था, लेकिन बीते साल सरकार के बच्चों को दूध पिलाने की योजना शुरू करने के कारण कुक कम हेल्पर का काम अब और भी बढ़ गया है.

दरअसल, बच्चों को दूध प्रार्थना के बाद दिया जाता है. इसलिए उन्हें दूध गर्म करने के लिए सुबह जल्दी आना पड़ता है. वहीं नरेगा में श्रमिकों को 200 से 250 रुपए प्रतिदिन मजदूरी मिलती है. ऐसे में पोषाहार पकाने के लिए कुक कम हेल्पर को इतने कम मानदेय में उनका जीवन काफी मुश्किलों भरा है.

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