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Special: जल सरंक्षण ने बदल दी झुंझुनू के इस गांव की किस्मत, बढ़ गया फसलों का उत्पादन

झुंझुनू के इस्माइलपुर गांव में महज एक दशक पहले केवल रेत के टीले थे और पानी एकदम खारा था. लेकिन, अब इस गांव की तस्वीर जल सरंक्षण की वजह से बदल चुकी है. साल भर में ये गांव करीब 53 लाख लीटर पानी को वापस भूगर्भ में भेजता है और बारिश के पानी से यहां खेतों में सिंचाई होती है. इससे फसलों का उत्पादन बढ़ गया है.

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जल सरंक्षण से बदले झुंझुनू के इस्माइलपुर गांव के हालात

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Published : Nov 5, 2020, 7:23 PM IST

झुंझुनू. कुछ करने की जिद हो तो बाधाएं कैसे दूर होती है, शेखावाटी का इस्माइलपुर गांव यही कहानी बताता है. हरियाणा की सीमा पर बसे झुंझुनू केचिड़ावा कस्बे से सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी पर इस्माइलपुर गांव स्थित है. कहने को ये शेखावाटी के अन्य इलाकों की तरह सामान्य गांव है. लेकिन, यहां पर जल सरंक्षण के लिए जो काम हुआ है, उसे देखकर समझा जा सकता है कि देखते ही देखते किसी गांव की किस्मत पानी कैसे बदल देता है.

जल सरंक्षण से बदले झुंझुनू के इस्माइलपुर गांव के हालात

महज एक दशक पहले इस गांव में केवल रेत के टीले थे और पानी एकदम खारा था. लेकिन, अब इस गांव की तस्वीर बदल चुकी है. रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के सहयोग से इस्माइलपुर गांव में पानी की एक-एक बूंद सहेजने की शुरुआत हुई. 145 परिवारों वाले इस गांव के हर गांव में बरसाती पानी का टांका बनाया गया. गांव की सड़कों से मैदानों में गिरने वाले बारिश के पानी के लिए बड़े तालाब बनाए गए. गंदे पानी को भी जमीन में पहुंचाया गया और फिर यहां प्रदेश का पहला पुनर्भरण कुआं बना. साल भर में ये गांव करीब 53 लाख लीटर पानी को वापस भूगर्भ में भेजता है. बारिश के पानी से खेतों में सिंचाई होती है.

हर घर में टांका, गांव में 2 तालाब बनाएं
बारिश का पानी एकत्रित करने के लिए गांव के हर घर में सेवा संस्थान में टांके बनवाए. इस तरह 37 लाख लीटर बरसाती पानी मिल रहा है. गैरों में बने टांकों से ओवर फ्लो पानी को सड़कों पर पाइपलाइन से जोड़ा गया. इस तरह इस पानी को तालाब तक पहुंचाया गया. ये तालाब लबालब होने पर शेष पानी को पुराने कुओं में डाला गया. इसी तरह रसोई और स्नानघर से निकलने वाले पानी के संरक्षण के लिए एक गहरा कुआं खोदा गया, जिससे ये पानी जमीन में जाकर भूजल स्तर को बढ़ा सके. गांव वाले हर साल करीब करोड़ों लीटर पानी बचा लेते हैं. इससे भूजल स्तर बढ़ा है. पीने के लिए उन्हें भूजल की जरूरत नहीं होती. इसके लिए पानी टैंकों में एकत्रित रहता है और भूजल केवल सिंचाई के काम आता है.

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10 साल में काफी बढ़ गया उत्पादन

पहले पीने के लिए खारा पानी मिलता था. खेतों में सिंचाई नहीं होती थी. अब हर घर में मीठे पानी का टांका है. खेतों तक फव्वारा सिस्टम पहुंचा है. पहले कम पानी होने से एक-दो फसलें ही होती थीं, वो भी कम सिंचाई वाली. अब गेहूं चना सरसों जैसी फसलें होती हैं. एक दशक पहले करीब 50 क्विंटल का उत्पादन होता था. लेकिन, अब उत्पादन बढ़कर करीब 1000 क्विंटल हो गया है. पानी नहीं होने से यहां सामान्य पेड़ ही नहीं लगते थे. लेकिन, अब 5.8 हेक्टेयर भूमि पर करीब 3000 फलदार पौधे और सामुदायिक भूमि पर लगभग 7000 फलदार और छायादार पेड़ हैं. गांव के गंदे पानी को पाइपों के जरिए भूगर्भ में उतारा जाता है. इससे गांवों को कीचड़ और गंदगी से मुक्ति मिली.

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जल स्तर देखकर की जा रही फसल की बुवाई

80 फीट गहरे गांव में प्रदेश का पहला पुनर्भरण कुआं बनाया गया है. इसके लिए गांव के देवी सिंह, राजेंद्र सिंह और नरपत सिंह शेखावत ने भूमि दान दी. इसके पास ही पेजोमीटर लगे हैं. किसान इसे देखकर जल स्तर का पता लगाते हैं. जल स्तर अच्छा हो तो ज्यादा सिंचाई वाली फसल बोते हैं और कम है तो कम पानी वाली फसल बोते हैं.

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