झुंझुनू.राजस्थान के झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे की मूक रामलीला दुनिया में अपनी अलग पहचान (Silent Ramlila of Bissau) रखती है. इस रामलीला की खासियत यह है कि जहां सभी जगह रामलीला नवरात्र स्थापना के साथ शुरू होकर दशहरे या फिर उसके अगले दिन भगवान राम के राज्याभिषेक के साथ पूरी होती है. वहीं, बिसाऊ की रामलीला का मंचन पूरे एक पखवाड़े होता है. रामलीला में सातवें दिन लंका के पुतले का दहन (Lanka combustion in Bissau) होता है. इसके बाद कुंभकरण, मेघनाद और फिर दशहरे की बजाय चतुर्दशी को रावण के पुतले का दहन किया जाता है. वहीं, इस रामलीला के मंचन के दौरान सभी पात्र बिना बोले ही भाव भंगिमाओं के जरिए संवाद स्थापित करने की कोशिश करते हैं. साथ ही अपने मुखौटे से अपनी पहचान को दर्शाते (Dialogue with masks in Bissau Ramlila) हैं. यही कारण है कि इसको मूक रामलीला के नाम से जाना जाता है.
इस तरह की रामलीला का मंचन पूरे संसार में केवल बिसाऊ में ही होता है. यही कारण है कि यह अपने आप में सबसे अनोखी रामलीला है. असल में मूक रामलीला की शुरुआत रामाणा जोहड़ से हुई. तब इसका मंचन गुगोजी के टीले में हुआ करता था. इसके बाद यह स्टेशन रोड शिफ्ट हुआ और (History of Ramlila of Bissau) फिर 1949 से गढ़ के पास बाजार के मुख्य सड़क पर इसका आयोजन शुरू किया गया, जो वर्तमान में जारी है. यदि मूक रामलीला के इतिहास के बारे में बात करें तो अलग-अलग तथ्य मिलते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत करीब 200 साल पहले हुई थी तो वहीं, कुछ 170 साल पहले की प्रथा करार देते हैं.