झुंझुनू.आज कोई संस्थान यदि 25 वर्ष भी पूरा करता है, तो उत्सव मनाया जाता है. लेकिन झुंझुनू में एक ऐसा स्कूल मौजूद है, जो 200 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. इतने वर्षों में इस संस्थान ने भले ही कोई प्रगति नहीं की हो और सामान्य स्कूल के रूप में संचालित हो, लेकिन इसे झुंझुनू का सबसे पुराना स्कूल होने का गौरव हासिल है.
झुंझुनू का 200 साल पुराना स्कूल स्कूल की बनावट भी यह बता देती है कि यह कितना पुराना हो सकता है. यहां पढ़े हुए स्टूडेंट भी अपने आप में शिक्षा के विकास के चरण बताते हैं. उनका कहना है कि किसी समय लोग पढ़ना चाहते थे, लेकिन किताबें तक नहीं होती थी. इसी तरह उस समय लोग सुविधाओं के अभाव में भी शिक्षा की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देते थे, जबकि आज बड़े-बड़े स्कूल केवल शिक्षा की गुणवत्ता का दिखावा करते हैं.
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पुरखों की शिक्षा के प्रति सोच को दर्शाता है यह स्कूल
आज शिक्षा को लेकर देश और प्रदेश में झुंझुनू जिले का नाम सबसे आगे है, लेकिन इसकी शुरुआत आज से बहुत साल पहले हमारे पूर्वजों ने की. जब कोई शिक्षा का महत्व भी नहीं समझता था, तब हमारे यहां सरकारी स्कूल खुल चुके थे. झुंझुनू शहर का सिटी स्कूल इसी का उदाहरण है. इसी साल सिटी स्कूल को स्थापित हुए पूरे 200 साल हो चुके हैं. प्रारंभिक स्तर पर यह दूसरी कक्षा तक संचालित होती थी. जिसके बाद 1938 तक ये स्कूल प्राथमिक और उसके बाद उच्च प्राथमिक स्तर पर क्रमोन्नत हुआ.
अंग्रेजों की छावनी के पास बना हुआ है यह स्कूल
आजादी से पहले हरियाणा, पंजाब और राजस्थान को पेप्सू स्टेट कहा जाता था, जो पटियाला राजशाही के अधीन आता था. पटियाला राजशाही ने इस हेड क्वार्टर की जिम्मेदारी जयपुर स्टेट को सौंप रखी थी. उस वक्त खेतड़ी स्टेट जयपुर से अलग था. इसकी स्थापना जयपुर के शासक महाराजा सवाई सिंह की पहल पर की गई थी, उस वक्त यह अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी. इस छावनी को पटियाला हाउस कहा जाता था. इसमें पटियाला से एक अंग्रेज अफसर अधिकारी बन कर आए थे. जिन्होंने इस स्कूल को राज स्कूल का नाम दिया. करीब 100 साल बाद इसे सिटी स्कूल कहा जाने लगा तब से इस स्कूल को इसी नाम से जाना जाता है.
पुराने स्टूडेंट आज भी करते हैं यादें ताजा
यहां आसपास के लोग बताते हैं कि यह स्कूल 1820 का बना हुआ है. स्कूल के पास 1948 से अब तक का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है. इसके अलावा पुराने दस्तावेजों को खंगाला जाए तो यह सामने आ जाता है कि ये स्कूल 200 साल पुराना है.
यहां के पुराने स्टूडेंट बताते हैं कि उस वक्त पहला दर्जा और दूसरा दर्जा के बाद पहली और दूसरी कक्षा शुरू होती थी. छतरियों में स्कूल लगा करती थी. अंग्रेज अफसरों ने यूपी से आए शिक्षक लगा रखे थे. आजादी के बाद जिस भवन में स्कूल चलने लगा, वह पहले अंग्रेजों का बड़ा अस्तबल हुआ करता था. एक क्लास में 20 छात्र पढ़ते थे. दो स्थानीय शिक्षक भी लगे हुए थे. उनमें एक चंद्र दत्त सैनिक थे. आगे की पढ़ाई के लिए मल्टीपरपज स्कूल बनी हुई थी. जिसमें कलेक्टर कार्यालय भी चलता था.
सिफारिश से होता था एडमिशन
सिटी स्कूल स्थानीय स्तर पर अकेला स्कूल था. जिसमें पढ़ने के लिए जाते थे. इसमें एडमिशन भी शिक्षकों की सिफारिश पर ही होता था. जिनमें पढ़ने की ललक होती, उनको गुरु जी खुद बुलाकर लेकर जाते थे. अंग्रेज छावनी के बगल में चार छतरियां बनी थी. उसमें दर्जे के अनुसार क्लास वार पढ़ाई कराते थे. कमजोर छात्रों का विशेष ध्यान रखा जाता था. उसके बाद यूपी से आए एक शिक्षक ने पहली निजी स्कूल शुरू की थी. जिसे महल स्कूल के नाम से जानते हैं.
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सबके पास नहीं होती थी किताबें
एक अन्य छात्र बताते हैं कि सिटी स्कूल में 1956 में पढ़ा करते थे. पांचवीं तक स्कूल थी एक बड़ी कक्षा हॉल में चला करती थी. हमारे समय में गुलझारीलाल सैन, निजामुद्दीन अध्यापक हुआ करते थे. दो-तीन शिक्षक पूरे स्कूल को संभालते थे. आठवीं पास को शिक्षक लगा देते थे. अनुशासन पर पूरा जोर रहता था, शिक्षक स्कूल नहीं आने वालों को सख्त सजा मिलती थी. किताबें इक्के-दुक्के छात्र के पास होती थी.