झुंझुनू. शेखावाटी का गौरवशाली इतिहास रहा है. यहां से सैकड़ों जवानों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की. ऐसा ही ना भूलने वाला इतिहास 8 जाट रेजीमेंट का है. जिसकी स्थापना 14 दिसंबर 1959 को हुई. सेना में अभूतपूर्व वीरता पूर्ण इतिहास वाली 8 जाट रेजीमेंट अपनी स्थापना का 60वां साल मना रही है. इस अवसर पर झुंझुनू में यूनिट के पूर्व सदस्य एकत्रित हुए. जहां ईटीवी भारत ने उनसे से बातचीत की उनकी शहादत और बहादुरी के बारे में जाना.
अपने 60 साल के समय में यूनिट 18 शहीदों और मरणोपरांत वीर चक्र सहित कई मैडल के साथ गौरव पूर्ण इतिहास लिए हुए हैं. 60वें स्थापना दिवस के अवसर पर अपने वीर शहीद साथियों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे रेजिमेंट के पूर्व सदस्यों की आंखें नम हो गई. भले ही बलिदान की उसकी परंपरा रही हो लेकिन 2018 में सिक्किम में राजकुमार और जून 2019 में ही उसके दो जवानों रामवीर और सोमवीर ने हाल ही में शहादत दी है.
71 की लड़ाई और कारगिल में दिखाया था अदम्य साहस
रेजिमेंट के ऑनरेरी कैप्टन गणपत राम ने बताया कि किस प्रकार विपरित परिस्थितियों में जाट रेजीमेंट ने 1971 की लड़ाई में अदम्य साहस दिखाया था. साथ ही कारगिल युद्ध में भी उसके नाम दिए हुए टास्क की पहाड़ी पर कब्जा कर अपनी वीरता का परिचय दिया. कारगिल युद्ध में शामिल जेसीओ ने बताया कि पहाड़ की उचाई, लो ऑक्सीजन और दुश्मनों की गोलियों के बीच साहस दिखाते हुए टास्क की पहाड़ी पर कब्जा किया.
93 साल की उम्र में भी याद है बहादुरी के किस्से
वहीं टुकड़ी के इतिहास के बारे में उम्र के हिसाब से यूनिट के सबसे सीनियर सदस्य सूबेदार मेजर शिवराम ने बताया कि स्थापना के समय से ही वो यूनिट के साथ हैं. यूनिट की बहादुरी ऐसी थी कि उस समय जितने भी जवान थे, उनको स्पेशल प्रमोशन दिया गया. ज्यादातर लोग सिपाही से भर्ती होकर सूबेदार, कैप्टन, मेजर तक पहुंच गए हैं. उनकी उम्र 93 साल से ज्यादा है. इसलिए कुछ यादाश्त कमजोर हो गई है. इसके बाद भी उनको याद है कि जाट रेजीमेंट का हिस्सा 8 जाट अपने आप में शानदार यूनिट है.