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स्पेशल रिपोर्टः रेजीमेंट 8 जाट के 60 साल, वीरता और बलिदान से भरा है इतिहास - 8 जाट रेजिमेंट के 60 साल

भारतीय सेना में अभूतपूर्व वीरता पूर्ण इतिहास वाली 8 जाट रेजीमेंट अपने स्थापना का 60वां साल मना रही है. इस अवसर पर झुंझुनू में यूनिट के पूर्व सदस्यों से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. इस दौरान भारत के वीरों और पूर्व सैनिकों ने अपने गौरवमयी इतिहास और वीरता को याद किया. साथ शहीद साथियों को याद कर सबकी आंखें भी नम हो गई.

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Published : Nov 4, 2019, 3:09 PM IST

Updated : Nov 4, 2019, 11:00 PM IST

झुंझुनू. शेखावाटी का गौरवशाली इतिहास रहा है. यहां से सैकड़ों जवानों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की. ऐसा ही ना भूलने वाला इतिहास 8 जाट रेजीमेंट का है. जिसकी स्थापना 14 दिसंबर 1959 को हुई. सेना में अभूतपूर्व वीरता पूर्ण इतिहास वाली 8 जाट रेजीमेंट अपनी स्थापना का 60वां साल मना रही है. इस अवसर पर झुंझुनू में यूनिट के पूर्व सदस्य एकत्रित हुए. जहां ईटीवी भारत ने उनसे से बातचीत की उनकी शहादत और बहादुरी के बारे में जाना.

8 जाट रेजिमेंट के 60 साल होने पर कार्यक्रम

अपने 60 साल के समय में यूनिट 18 शहीदों और मरणोपरांत वीर चक्र सहित कई मैडल के साथ गौरव पूर्ण इतिहास लिए हुए हैं. 60वें स्थापना दिवस के अवसर पर अपने वीर शहीद साथियों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे रेजिमेंट के पूर्व सदस्यों की आंखें नम हो गई. भले ही बलिदान की उसकी परंपरा रही हो लेकिन 2018 में सिक्किम में राजकुमार और जून 2019 में ही उसके दो जवानों रामवीर और सोमवीर ने हाल ही में शहादत दी है.

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71 की लड़ाई और कारगिल में दिखाया था अदम्य साहस

रेजिमेंट के ऑनरेरी कैप्टन गणपत राम ने बताया कि किस प्रकार विपरित परिस्थितियों में जाट रेजीमेंट ने 1971 की लड़ाई में अदम्य साहस दिखाया था. साथ ही कारगिल युद्ध में भी उसके नाम दिए हुए टास्क की पहाड़ी पर कब्जा कर अपनी वीरता का परिचय दिया. कारगिल युद्ध में शामिल जेसीओ ने बताया कि पहाड़ की उचाई, लो ऑक्सीजन और दुश्मनों की गोलियों के बीच साहस दिखाते हुए टास्क की पहाड़ी पर कब्जा किया.

93 साल की उम्र में भी याद है बहादुरी के किस्से

वहीं टुकड़ी के इतिहास के बारे में उम्र के हिसाब से यूनिट के सबसे सीनियर सदस्य सूबेदार मेजर शिवराम ने बताया कि स्थापना के समय से ही वो यूनिट के साथ हैं. यूनिट की बहादुरी ऐसी थी कि उस समय जितने भी जवान थे, उनको स्पेशल प्रमोशन दिया गया. ज्यादातर लोग सिपाही से भर्ती होकर सूबेदार, कैप्टन, मेजर तक पहुंच गए हैं. उनकी उम्र 93 साल से ज्यादा है. इसलिए कुछ यादाश्त कमजोर हो गई है. इसके बाद भी उनको याद है कि जाट रेजीमेंट का हिस्सा 8 जाट अपने आप में शानदार यूनिट है.

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यूनिट का इतिहास रखा है सुरक्षित

यूनिट के पूर्व सदस्य सूबेदार दरिया सिंह लंबे समय तक यूनिट का हिस्सा रहे. वो बताते है कि 8 जाट के शुरु से लेकर अब तक के बहादुरी के सारे किस्से परत दर परत सुरक्षित है. टुकड़ी कहां-कहां रही, कहां से कहां तक पहुंची, किस-किस ऑपरेशन का हिस्सा रही, कहां-कहां कौन शहीद हुआ, किस को मैडल मिले हुए हैं. इसके अलावा कहां-कहां गोल्ड मैडल मिले. पलटन का इतिहास चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के यहां लिखा हुआ है.

1971 की लड़ाई में कैप्टन राठी को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. जो 7 दिसंबर 1971 को शहीद हुए थे. वहीं कैप्टन सिसोदिया को सेना मैडल दिया गया. सन 1971 की लड़ाई में आठ जाट ने पुंछ में मोर्चा संभाला था. जिस लड़ाई में बहादुरी दिखाते हुए पलटन के 7 जवान शहीद हो गए.

जिंदगी मुश्किल है लेकिन साहस न होगा कम

अपनी जवानी में देश की सेवा करने वाले वीरों की जिन्दगी कई बार ढलती उम्र में परेशानियों से भरी होती है. यूनिट के कई जवान ऐसे भी हैं जो आमने-सामने की लड़ाई में हाथ-पैर गंवा चुके हैं. पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान लाइन ऑफ कंट्रोल पर चाको पोस्ट पर अपना हाथ गंवा चुके नायक टीएस रामजीलाल बताते हैं कि हाथ गंवाने के बाद भी 7 साल विभाग में रहकर सेवा की. जिसके बाद वे सेवानिवृत्त हो गए. हाथ नहीं है तो परेशानी है तो लेकिन जिंदगी चल रही है.


ये वो सैनिक है जिन्होंने भारत माता की सेवा की है. सभी 8 जाट यूनिट के सदस्य हैं और अपनी यूनिट की बहादुरी का गर्व भी है. आज भी 'जाट बलवान जय भगवान' के नारे के साथ ही इनकी रगों में खून गर्म हो जाता है, भुजाएं फड़कने लगती हैं. जिंदगी भर देश की सेवा कर अब रिटायरमेंट के बाद भी इनमें वही जोश और जज्बा भरा है.

Last Updated : Nov 4, 2019, 11:00 PM IST

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