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शेखावटी में लहलहाई बाजरे की फसल, बुवाई में झुंझुनू प्रदेश में 8वें नबंर पर पहुंचा - बाजरे की रोटी

झुंझुनू के शेखावाटी में इस साल अच्छी बरसात ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी है. इस बार बाजरे की फसल भी भारी मात्रा में हुई है. किसानों के खेतों में इन दिनों बाजरे के ढेर लगे हुए हैं. बाजरे की बुवाई में जिले ने अपना पांच साल का रिकार्ड तोड़ दिया है जिसके बाद झुंझुनू प्रदेश में आठवें स्थान पर आ गया है.

बाजरे की बंपर पैदावार, Bumper yield of millet
खेतों में हुई बंपर बाजरे की फसल

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Published : Oct 13, 2020, 7:44 PM IST

झुंझुनू. जिले के शेखावाटी में इस साल बाजरे की बंपर पैदावार हुई. जहां इस बार खेतों में पकने वाले बाजरे को उसकी जरूरत के मुताबिक जलवायु मिली है. जिसकी वजह से एक ही डोके यानि तने पर दो-दो सिट्टे लगे हुए हैं.

खेतों में हुई बंपर बाजरे की फसल

सिट्टा उस डंठल को कहते हैं, जिस पर बाजरे के दाने लगे हुए होते हैं. यह किसानों के लिए संकेत होता है कि इस बार बाजरे की बंपर फसल होने वाली है. वहीं इस साल किसानों ने बाजरे की बुवाई का अपना पिछले पांच साल का रिकार्ड तोड़ दिया है. इस बार यहां 2 लाख 20 हजार हेक्टेयर में बुआई हुई थी. इस बार बाजरा बुवाई में झुंझुनूं प्रदेश में आठवें स्थान पर है.

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सबसे पहले बोई जाने वाली फसल है बाजरा

पश्चिमी राजस्थान से लगते हुए पाकिस्तान से लेकर थार में सावणी (खरीफ) की फसलों का जिक्र बिना बाजरे के शायद ही पूरा हो. चौमासा यानि बारिश के माह शुरू होते ही पहली बरखा के साथ रेगिस्तानी जिलों का किसान अगर हल पंजाली, कस्‍सी लेकर खेत में पहुंचता है, तो पहली बड़ी फसल बाजरा ही होती है. जेठ में यदि बारिश हो जाए तो पहली बरखा के साथ ही बाजरे के साथ नये साल और जमाने के बीज खेतों में डाल दिए जाते हैं. तपती धूप में उगे बाजरे के छोटे-छोटे हरे पौधे ही गर्मी में मुर्झाए रेगिस्‍तान को धीरे-धीरे हरियाली की चादर ओढ़ता है. यहां का किसान इसके करीब डेढ़ माह बाद ही खरीफ की दूसरी फसलें बोता है.

सबसे बड़ी फसल है बाजरा

शेखवाटी के किसानों के लिए खरीफ की बड़ी फसल बाजरा है. कच्‍चा बाजरा भी हरे चारे के रूप में काम आता है. सूखने के बाद डंठल तोड़ लिए जाते हैं और बचे डंठल या डोके सूखे चारे के रूप में सारल भर पशुओं के काम आता है. बाजरा सिंचाई या नहरों से भी होने लगा है, लेकिन स्‍वाद और पौष्टिकता के हिसाब से बारिश के बारानी बाजरे और उसके खीचड़ का कोई विकल्‍प नहीं है.

बाजरे की रोटी का अपना स्वाद

बाजरे की रोटी की बात तो उसे बनाना और पचाना दोनों ही मुश्किल होता है. यह केवल यहां का किसान ही पचा सकता है, जो मेहनत करता है. बाजरे का खीचड़ बनाना आसान हो सकता है, लेकिन रोटी बनाना नहीं क्‍योंकि बाजरे का आटा, गेहूं की तरह एक साथ नहीं गूंथा जा सकता. हर रोटी के लिए अलग से आटा गूंथना पड़ता है और रोटी को हाथों से ही पलोथना होता है.

यह भी बनता है बाजरे से

बाजरे से राब या राबड़ी, खीचड़, सुखली और ढोकली भी बनती है. बाजरे के आटे में घी और गुड़ मिलाकरा इसका चूरमा भी बनाया जाता है. बाजरे के डोके, सूखे चारे के रूप में पशुओं के काम तो आते ही हैं. ढोंकळे बनाते समय भी उनका इस्‍तेमाल किया जाता है और उनकी खुश्‍बू ढोंकळों के स्‍वाद में चार चांद लगा देती है. देसी घी बाजरे में हो तो बाजरे की रोटी खाने का आनंद ही नहीं है. रात की रोटी सुबह दही में चूर कर खाना भी बेहद पौष्टिक होता हैं.

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जिले में 5 साल में बाजरे की बुवाई

वर्ष हेक्टेयर
2016 222790
2017 219330
2018 212165
2019 205000
2020 220000

बाजरे की बुवाई में प्रदेश में आठवां स्थान

जिले हेक्टेयर
बाड़मेर 743400
जोधपुर 375000
जयपुर 295300
नागौर 290900
सीकर 284000
अलवर 270300
चूरू 259400
झुंझुनू 220000

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