चितलवाना (जालोर).जिले में तीन दिवसीय जालोर महोत्सव का आगाज बड़े ही अलग तरीके से हुआ. पर्यटन विभाग, जिला प्रशासन और जालोर विकास समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में तीन दिवसीय जालोर महोत्सव की शुरुआत हुई. चितलवाना में हुए कार्यक्रम, जालोर जिले के सभी कार्यक्रमो में अनोखे तरीके से प्रदर्शित किया गया. जो पूरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है.
जालोर महोत्सव में झलके परंपरागत खेल दरअसल इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते प्रभाव से परंपरागत खेलों की दुनिया सिमट गई है. आज के वक्त के बच्चों से लेकर युवा वर्ग टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर पर ही अपने मनोरंजन के साधनों की तलाश कर सुकून महसूस कर रहा है. लिहाजा वर्तमान समय में दिनों दिन एक-एक कर मैदानी खेल का नाम और अस्तित्व मिटता जा रहा है. इन समस्याओं को लेकर जालोर महोत्सव के दौरान चितलवना विकास समिति और प्रशासन ने पहल करते हुए लुप्त हो चुके परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जालोर महोत्सव के दौरान परंपरागत खेलों को शामिल किया गया.
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जिससे आज के समय में मोबाइल और इंटरनेट में अपना समय व्यतीत कर रहे युवा इन खेलों को खेलें. जालोर महोत्सव के दौरान घी-पिणी, घोड़ा-कबड्डी, आंदर घोटो, रस्सा कस्सी, म्यूजिकल चेयर, गिल्ली-डंडा सहित कई खेलों का आयोजन किया गया. जिसमें केवल बच्चे ही नहीं बुजुर्ग और उपखण्ड अधिकारी, विकास अधिकारी, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी और प्रधानाचार्य सहित तहसील और उपखण्ड मुख्यालय में कार्यरत कर्मचारियों ने भी भाग लिया. वहीं इन खेलों को देखने के लिए हजारों की संख्या में ग्रामीण और उपखण्ड क्षेत्र के दर्शकों ने आनंद लिया.
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उपखण्ड अधिकारी मासिंगाराम जांगिड़ ने कहा कि टीवी और इंटरनेट के इस युग में मैदानी खेल विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है. मैदानी खेल के रूप में जहां एकमात्र क्रिकेट का साम्राज्य है. बच्चे विभिन्न मैदानी खेल को भुलाकर वीडियो गेम्स में समय गंवा रहे हैं. इस आयोजन से इस प्रकार का माहौल बने की बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया से हटकर परंपरागत खेल खेलें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ''मन की बात'' के 44वें संस्करण में परंपरागत खेलों को प्रोत्साहन देने की बात कही है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ''मन की बात'' कार्यक्रम के 35वें संस्करण में भी आउटडोर गेम्स को लेकर चिंता जाहिर करते हुए उन्हें संरक्षण प्रदान करने की बात कही थी.
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मन की बात में मोदी जी ने कहा कि तब उन्होंने कहा था कि ''एक जमाना था जब मां बेटे से कहती थी कि बेटा, खेलकर घर वापस कब आओगे और एक आज का जमाना है जब मां बेटे से कहती है कि बेटा, खेलने के लिए घर से कब जाओगे.'' हमारे समाज में अक्सर बड़े-बुजुर्गो के मुंह से कहावत सुनने को मिलती है कि “खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब और पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब” मगर आज के बच्चों का जीवन केवल किताबों तक ही सीमित होकर रह गया. पढ़ाई के साथ खेल भी बहुत ही जरूरी है.
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उपखंड अधिकारी ने कहा कि यहां मिल्खा सिंह से लेकर मेजर ध्यानचंद जैसे हॉकी के जादूगर ने जन्म लिया है. सचिन से लेकर साइना तक और मिताली से लेकर कृष्णा पूनिया तक के खिलाड़ियों ने दमखम के साथ विश्वपटल पर तिरंगे का नाम ऊंचा किया है. आज इन्हीं सब से प्रेरणा लेकर बच्चों में खेलों के प्रति उत्साह और आशा का माहौल बनाने की जरूरत है क्योंकि देश की एकता को बरकरार रखने के लिए भाईचारे, प्रेम और मैत्री की भावना इन्हीं खेलों से विकसित की जा सकती है.
इसलिए खेल संस्कृति को एक बार फिर से जीवित करने की जरूरत है. फिलहाल चितलवाना में जालोर महोत्सव के दौरान हुए कार्यक्रमों की चर्चा पूरे जालोर जिले में हो रही है. वहीं, खिलाड़ियों का भी कहना है कि ये परंपरागत खेल बहुत अच्छे हैं जो बिना पैसे खर्च किये खेले जा सकते हैं. वहीं, इनमें शारीरिक कसरत भी ज्यादा होती है जो दूसरे खेलों में नहीं होती. प्रसाशन का यह प्रयास सराहनीय है.