जैसलमेर. भारत-पाक सरहद पर भारत की रखवाली करने वाली तनोट माता जिन्हें थार की वैष्णो देवी, सैनिकों की देवी और रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है. 1965 और 71 में भारत-पाकिस्तान के हुए युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाली तनोट माता भारत-पाक सीमा पर बसे सरहदी जिले जैसलमेर के तनोट ग्राम पंचायत में इनका मंदिर स्थित है. जहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में भक्त और पर्यटक यहां आते हैं. जिसमें राजस्थान के साथ ही भारत के अन्य राज्यों से भी यहां लोग आकर माता के धोक लगाते हैं और मनोकामना मांगते हैं. वहीं, इस माता के मंदिर की पूजा अर्चना का पूरा जिम्मा भारत की प्रथम सुरक्षा पंक्ति बीएसएफ के जवानों के कंधों पर हैं. इस दौरान यहां मंदिर परिसर में तनोट माता के दर्शन को नवरात्रि के अवसर पर विशाल जनसमूह उमड़ता है.
बीएसएफ डीआईजी ने किया भूमि पूजन : इस बम वाली माता के मुख्य मंदिर के पीछे जहां पूर्व में रेत के टीलो के नीचे तनोट माता की दबी हुई मूर्तियां मिली थी. वहां मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है. जिसका भूमि पूजन किया गया. इस दौरान इस मंदिर के निर्माण का बेड़ा सीमा सुरक्षा बल ने उठाया है. भूमि पूजन के दौरान महंत नारायण गिरी के निर्देशन में बीएसएफ के डीआईजी असीम व्यास ने भूमि पूजन किया. वही इस दौरान बीएसएफ के आलाधिकारियों के परिवारों के साथ ही जनप्रतिनिधि भी इस कार्यक्रम के साक्षी बने.
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर विश्व विख्यात शक्तिपीठ तनोट माता के नए मंदिर की रखी नींव इस दौरान असीम व्यास के साथ ही 166वीं बीएसएफ बटालियन के सभी अधिकारी अपने परिवार के साथ महंत नारायणगिरी दूधेश्वर नाथ मंदिर गाजियाबाद यूपी, रानी भटियाणी मंदिर जसोल के कुंवर हरिचंद चन्द्र सिंह के साथ ही जनप्रतिनिधि और भामाशाह भी उपस्थित रहे.
भूमि पूजन के दौरान जसोल माता राणी भटियाणी संस्थान की ओर से चांदी की सामग्री निर्माण कार्य के लिए दी गई. वहीं, तनोट माता मंदिर के नए निर्माण कार्य को शुरू करने के लिए मुख्य मंदिर के पीछे भूमि पूजन जहां किया गया. उसके बाद नए मन्दिर की भूमि पर खुदाई का काम भी शुरू किया गया और तनोट माता मंदिर के मुख्य प्रांगण में पूजा अर्चना कर दर्शनार्थियों के लिए प्रसाद वितरण का भी कार्यक्रम आयोजित हुआ. जहां दर्शनार्थियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की गई.
भामाशाह ने दी सहयोग राशि : बता दें कि बीएसएफ इस मंदिर का निर्माण बीएसएफ के जवानों और भामाशाह के सहयोग से करने जा रहा है. जिसके लिए जैसलमेर जिले के समाजसेवी और भामाशाह जगदीश सुथार की तरफ से जहां 25 लाख रुपए की धनराशि दी गई. वहीं, भामाशाह तेजसिंह ने 1 लाख रुपये और जसोल माता मंदिर के महंत हरिश्चंद्र सिंह की तरफ से 50 हजार रुपये. महंत नारायण गिरी ने 11 हजार रुपये की सहयोग राशि दी. इसी के साथ भामाशाहों के सहयोग की ये श्रंखला लगातार जारी है.
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सरहद की रक्षक 'बम वाली' देवी : दरअसल, लगभग 1200 वर्ष पूर्व यहां तनोट माता के निज मंदिर का निर्माण हुआ था उस समय जैसलमेर की राजधानी तनोट थी. कालांतर में देखभाल के अभाव में ये मंदिर मिट्टी में दब गया था. 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान बीएसएफ के जवानों ने इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा उठाया और इस दौरान युद्ध में पाकिस्तान की सेना की तरफ से जहां सैकड़ों बम गिराए गए थे. वहीं, तनोट माता के प्रताप से ये बम डिफ्यूज हुए थे और जिसके कारण बीएसएफ के जवानों की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था बढ़ती गई. अब बीएसएफ ने मंदिर परिसर के पीछे तनोट माता के नवनिर्मित मंदिर बनाने का जिम्मा उठाया है.
रेत के टीलो के नीचे तनोट माता की दबी हुई मूर्तियां मिली थी मंदिर की भूमि का पूजन करवाने वाले दूधेश्वर नाथ मंदिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश के महंत नारायण गिरी ने बताया कि माता के मंदिर का पूजन किया जिसका शिलान्यास किया. जब से मोदीजी सरकार में आए हैं तब से राम मंदिर, महाकाल आदि मंदिरों का बड़े स्तर पर जीर्णोद्धार और निर्माण किया गया हैं. हमारे गृह मंत्री अमित शाह ने तनोट क्षेत्र का विकास करने के लिए जो शिलान्यास किया हैं उससे यहां के विकास के द्वार खुलेंगे. अब यहां जन सहयोग के माध्यम से बीएसएफ द्वारा भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा.
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बीएसएफ अधिकारियों ने बताया कि मंदिर के भव्य निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया हैं. सीमा सुरक्षा बल सीमा की रक्षा और चौकसी के लिए सीमा क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के लिए भी बहुत से कार्यक्रम चलाता हैं. अभी इस मंदिर का संचालन एक ट्रस्ट के माध्यम से बीएसएफ की तरफ से किया जाता हैं. इस ट्रस्ट द्वारा आने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला, चिकित्सा सुविधा और लंगर की व्यवस्था भी की जाती हैं और आवश्यकता पड़ने पर सीमाक्षेत्र में रहने वाले गरीब परिवाओं की बच्चियों की शादी में भी ट्रस्ट द्वारा मदद की जाती हैं. इस बात में कोई अतिश्योक्ति नही हैं कि माता तनोट ने सीमा क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों और सैनिकों की हमेशा मदद की हैं.
बीएसएफ नॉर्थ के उप महा निरीक्षक असीम व्यास ने बताया कि यहां पर जो मंदिर स्थापित हुआ था वो लगभग 1200 पूर्व हुआ था. इस मंदिर की स्थापना 878 विक्रम संवत में हुई थी. जो कि प्राकृतिक आपदाओं और विपदाओ के करना कालांतर में रेत से दब गया था. 1965 की लड़ाई में माता के चमत्कार से यहां की पोस्ट और मंदिर की सुरक्षा हुई थी और उसके तुरंत बाद माता के सेवक जो दाता के नाम से प्रसिद्ध थे गुमानसिंह जो कि बीएसएफ के जवान थे को माता ने दर्शन दिया और कहा कि मुझे उक्त स्थान से निकालकर मंदिर में स्थापित करो. उनके स्वप्न वाले स्थान पर माता की 7 महीनो की मूर्ति निकली और उसे मंदिर में स्थापित किया गया. समय के साथ ये विचार आया कि यहां पर जा सभी मंदिरों को भव्यता दी जा रही हैं तो क्यों न माता के मंदिर को भव्य रूप दिया जाए. इसी को लेकर जहां से माता प्रकट हुई थी उसी जगह नया मंदिर बनाने की कवायद शुरू की गई हैं.