जयपुर. राजधानी जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी मंदिर में न सिर्फ भगवान श्री कृष्ण के विग्रह के दर्शन को श्रद्धालु लालायित रहते हैं, बल्कि यहां रत्न, आभूषण और कीमती धातु से सजी-धजी झांकियां भी भक्तों और पर्यटकों का मन मोहती हैं. शुक्रवार को जलविहार की झांकी में ठाकुर जी को ठंडक पहुंचाने के लिए रियासत कालीन चांदी के फव्वारे से जलविहार कराया गया. इसी तरह मकर सक्रांति पर चांदी की चरखी और सोने की पतंग उड़ाते ठाकुर जी की झांकी सजती है. यही नहीं, गोवर्धन पूजा वाले दिन तो ठाकुर जी को सोने-चांदी और रत्नों से जड़ित पोशाक भी धारण कराई जाती है.
कभी पीतांबर, तो कभी धवल, कभी लहरिया, तो कभी गोटा पत्ती. यही नहीं, सोने-चांदी और रत्नों से जड़ित पोशाक भी भगवान श्री गोविंद देव जी को धारण कराई जाती रही है. दरअसल, स्टेट पीरियड में ठाकुर जी को पूर्व राज परिवार की ओर से ही पोशाक धारण कराई जाती थी, लेकिन आजादी के बाद भगवान के प्रति भक्तों की आस्था को मद्देनजर रखते हुए नई परंपरा शुरू हुई. जिसमें भक्तों की ओर से अर्पित की गई पोशाक को भी धारण कराया जाना शुरू किया गया.
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मंदिर प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार अब तक करीब 21 हजार से ज्यादा पोशाक ठाकुर जी को अर्पित की जा चुकी है और अनवरत ये दौर जारी है. आलम ये है कि ठाकुर जी को धारण कराई हुई पोशाकों का भंडार ग्रह भी करीब एक दशक पहले भर गया था. ऐसे में श्रद्धालुओं को ठाकुर जी को धारण कराए गए पोशाक प्रसाद स्वरूप लौटाना भी शुरू किया गया. हालांकि, मंदिर की पुरानी परंपराओं के अनुसार कुछ विशेष दिन ऐसे हैं, जब ठाकुर श्री को निर्धारित पोशाक ही धारण कराई जाती है. जिनमें से एक है गोवर्धन पूजा.
जब भगवान को 100 साल पुरानी पूर्व महाराजा माधो सिंह की ओर से अर्पित की गई सोने-चांदी-जरी से जड़ित पोशाक धारण कराई जाती है. इसी तरह शुक्रवार का दिन भी खास था. हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा पर भगवान को धवल वस्त्र धारण कराकर रियासत कालीन चांदी के फव्वारे से जलविहार कराया जाता है. शनिवार से सबसे ज्यादा तपिश वाला जेष्ठ का महीना शुरू होगा. इससे पहले वैशाख की पूर्णिमा पर गर्मी से शीतलता प्रदान करने के लिए गोविंद देव जी मंदिर प्रांगण में जल यात्रा उत्सव की शुरुआत हुई.
ये जलविहार ज्येष्ठ महीने में अलग-अलग दिन होगा। इसके साथ ही तरबूज, खरबूजे, आम, जामुन, लीची सहित अन्य ऋतु फल अर्पित किए गए. वहीं, शरबत का भोग लगाया गया. ठाकुर जी को चंदन का लेप लगाकर, रियासत कालीन चांदी के फव्वारे से शीतलता प्रदान की गई. ठाकुर जी को ये सेवा 4 जून जेष्ठाभिषेक तक विशेष अवसरों पर होगी. वैशाख पूर्णिमा के मौके पर जलविहार की झांकी का समय अभी 15 मिनट और बढ़ाया गया.
वहीं, गोविंद देव जी में मकर सक्रांति पर्व पर भी सोने-चांदी से बने चरखी और पतंग की झांकी सजती है, जिसमें ठाकुर श्री जी सोने की पतंग उड़ाते हैं और राधा रानी अपने हाथों में चांदी की चरखी थामे रखती हैं. मंदिर में ऐसे अनेक श्रद्धालु है, जो इन सभी झांकियों के सालों से दर्शन करते आ रहे हैं. कुछ परिवारों की तो कई पीढ़ियां भगवान के दर्शन के लाभ ले चुकी हैं और ये दौर आज भी जारी है.