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Corona Effect: देसी फ्रिज के नहीं मिल रहे खरीदार...कुम्हार परिवारों पर छाया रोजी-रोटी का संकट

राजस्थान की गर्मी किसी से छुपी हुई नहीं है. यहां शीतल पानी के लिए मिट्टी के मटके और सुराही का खूब इस्तेमाल होता है. हर साल की तरह कुम्हार परिवारों ने इस बार भी बड़ी तादाद में मटके बनाएं हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनके ग्राहक नहीं मिल रहे हैं. कुम्हार परिवार परेशान हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

Potter family, कुम्हार परिवार
कोरोना संकट से बेहाल हुए कुम्हार परिवार.

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Published : Apr 26, 2020, 9:40 AM IST

Updated : Apr 26, 2020, 6:03 PM IST

जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना के संकट के बीच गर्मियों में गरीब का फ्रिज माने जाने वाला मिट्टी का मटका भी बाजार में बनकर तैयार है. लॉकडाउन के बीच इन मटकों को खरीदारों का इंतजार है. माटी को अपनी मेहनत से आकार देकर मटका और सुराई बनाने वाले कुम्हार परिवारों ने गर्मियों के दौरान प्यासे गले को ठंडे पानी से तृप्त करने के लिए इनके निर्माण में अपना खूब पसीना तो बहाया, लेकिन मटकों के खरीददार नहीं मिल रहे हैं. राजधानी जयपुर के धावास इलाके के नजदीक कुम्हार परिवारों के ईटीवी भारत पहुंचा और कुम्हारों से बात की.

देसी फ्रिज के नहीं मिल रहे खरीदार.
हजारों मटके खरीदारों का इंतजार कर रहे हैं:
कुम्हार परिवारों की ढाणी में सिर्फ मिट्टी से बने सामान बनाने का ही काम होता है. इस गर्मी के लिए भी इन परिवारों ने हजारों की संख्या में मिट्टी के मटके सुराही बनाएं और अभी यह काम जारी है. मिट्टी को आकार देते ये कुम्हार इतना तो जानते हैं कि मौजूदा संकट के दौर में उनकी मेहनत और कला के खरीदार नहीं मिलेंगे, लेकिन मिट्टी से मटके बनाने का काम यह यथावत जारी रखे हुए हैं. केवल उम्मीद है तो इस बात की कि, जब लॉकडाउन खत्म होगा तो इसे खरीदने वाले उन तक पहुंचेंगे.
हजारों मटके बनकर तैयार, लेकिन नहीं हैं खरीददार.

बता दें कि, इन परिवारों के द्वारा बनाए गए मटकों की सप्लाई पूरे जयपुर शहर में होती है. मतलब अलग-अलग इलाकों में जो लोग फुटपाथ पर या ठेले पर रखकर मटके बेचते हैं, वो इन्हीं परिवारों से खरीद कर लेकर जाते हैं.

मटकों को तैयार करता कुंभकार.


मार्च से मटकों की बिक्री होती है शुरू:
राजस्थान की गर्मी किसी से छुपी हुई नहीं है और यहां शीतल पानी के लिए मिट्टी के मटके और सुराही का खूब इस्तेमाल होता है. यही कारण है कि, इन परिवारों ने हमेशा की तरह इस बार भी बड़ी तादात में मटके बनाएं लेकिन मार्च में जब गर्मी शुरू हुई तब प्रदेश में कोरोना का प्रकोप भी शुरू हो गया जिसके चलते राजस्थान में लॉकडाउन कर दिया गया.
खरीददार नहीं होने के बाद भी तैयार करते मिट्टी के बर्तन.

ऐसे में अब इन परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट भी खड़ा होने लगा है. इन परिवारों का कहना है कि, पहले तो मटके बनाने के लिए मिट्टी और दूसरे सामान के लिए उन्होंने बाजार से कर्जा लिया और अब भी उसी कर्जे के जरिए वह अपने परिवार को खाना खिला पा रहे हैं, लेकिन हालात नहीं सुधरे तो रोजी रोटी का भी संकट खड़ा हो जाएगा.

सरकार से मदद की उम्मीद:
मिट्टी से मटके बनाकर बेचने वाले इन परिवारों की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. संकट की इस घड़ी में इन्हें भी सरकारी मदद की दरकार है लेकिन अब तक किसी भी प्रकार की मदद इनके घर तक नहीं पहुंची. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान इन लोगों ने यह भी बताया कि ना तो स्थानीय पार्षद और ना ही विधायक अब तक इनके पास आया है और ना ही उन्हें कोई सरकारी मदद दी गई है.

घड़े को आकार देता कुंभकार युवक.
यह परिवार बाहर अलग-अलग इलाकों में जो लोग मटके बेचते हैं उनके लिए मटके बनाने का काम करते हैं. उन्हें छोटा मटका 20 से 25 तक तो बढ़ा मटका 30 से 40 रुपए तक देते हैं. लेकिन रिटेल में बढ़ा मटका 50 से 60 तक और छोटा मटका 35 से 45 रुपये तक बिकता है. इसी तरह डिजाइन दार मटका जिसमें टोटी भी लगी होती है वह महिला होता है उसकी कीमत 120 से लेकर 150 रुपये तक होती है. वहीं सुराही की कीमत 40 से 80 रुपये तक होती है.

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फिलहाल, इन परिवारों को उम्मीद है कि, जल्द ही कोरोना का यह संकटकाल खत्म होगा और एक बार फिर से जनजीवन पटरी पर आएगा. इनकी मेहनत और काम के खरीदार भी होंगे और इन परिवारों पर आए रोजी रोटी के संकट का समाधान भी हो पाएगा. लेकिन उम्मीद का चक्का तब तक चलाएं, रोजी-रोटी और परिवार चलाने के लिए इन परिवारों को भी सरकार से आर्थिक मदद की उम्मीद है.

Last Updated : Apr 26, 2020, 6:03 PM IST

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