जयपुर.पुलवामा आतंकी हमले भारत के 40 जांबाज देश के लिए कुर्बान हो गए थे. इन वीर जवानों की कुर्बानी में जयपुर जिले के गोविन्दपुरा बासड़ी गांव के रोहिताश लाम्बा भी शामिल थे. इन जवान शहीदों की सहादत को कभी भूला नहीं जायेगा, लेकिन लगता है सरकार शहीद की शहादत को भुला बैठी है. सरकार द्वारा की गई घोषणा महज घोषणाएं होकर रह गई. ना स्कूल का नामकरण शहीद के नाम पर हुआ और ना शहीद के परिजन को नौकरी मिली.
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शहीद की वीरांगना ने की 50 लाख रुपए लौटाने की बात
ईटीवी भारत से बात करने के दौरान अपने पति को याद करते शहीद की वीरांगना की आंखों में आसूं आ गए. उन्होंने बताया कि एक भी ऐसा दिन नहीं जाता, जब वो याद नहीं आते हो. पल-पल उनकी याद सताती है. ऐसा लगता है कि ड्यूटी पर है और आज-कल में घर वापस आ जाएंगे. वहीं सरकार की ओर से घोषणाओं को पूरा नहीं करने और सरकार की कार्यशैली से नाराज रोहिताश लाम्बा की वीरांगना ने तो सरकार की ओर से मिली 50 लाख रुपए की राशि वापस देने की बात कह दी. पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए रोहिताश लांबा का जन्म 14 जून 1991 को गोविंदपुर बासड़ी गांव में हुआ था. रोहिताश लांबा 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे. वर्ष 2013 में प्रशिक्षण के बाद ड्यूटी ज्वाइन की. शहीद रोहिताश के एक साल का बेटा ध्रुव है. एक भाई जितेंद्र कुमार है और बूढ़े मां-बाप हैं. जिनकी सेवा जितेंद्र कुमार और वीरांगना मंजू देवी करती है.
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आर्थिक मदद तो मिली, लेकिन सम्मान के लिए नहीं हुआ काम
शहीद की शहादत को कोई भुला नहीं सकता. लेकिन शहीद परिवार के दर्द को जानकर लगता है कि सरकार शहीद को भूल गई. हालांकि शहीद के परिजनों को आर्थिक मदद के तौर पर प्रदेश सरकार ने 50 लाख रुपए का पैकेज दिया था, तो वहीं केंद्र सरकार ने 80 लाख रुपए देकर आर्थिक सहायता की थी. वहीं भामाशाहों ने भी शहीद परिवार की बढ़ चढ़कर मदद की थी. शहीद की अंतिम यात्रा में कई मंत्री, नेता, अधिकारी पहुंचे थे. उस समय की गई घोषणाओं को 1 साल गुजर गया. लेकिन, अब तक ये घोषणाएं पूरी नहीं है. अब तक ना तो स्कूल का नामकरण शहीद के नाम पर हुआ और ना ही किसी को सरकारी नौकरी मिली है. इतना ही नहीं शहीद स्मारक के नाम का बजट भी अभी तक स्वीकृत नहीं हुआ है.
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सरकार से उम्मीद में शहीद परिवार
जहां देश की सुरक्षा के लिए न्योछावर एक बेटे, एक पति का शरीर तिरंगे में लिपटे हुआ आता है. तो हर देखने वाली आंख नम हो जाती है. पिता अपने जिगर के टुकड़े को खो देता हैं, मां की गोद सूनी हो जाती हैं. बहिन का भाई दुनिया को छोड़ चला जाता हैं, पत्नी का सिंदूर उजड़ जाता है. रोहिताश लाम्बा को एक साल होने जा रहे हैं. अब उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार शहीद परिवार की इस पीड़ा को समझ कर. सरकारी स्कूल का नाम शहीद के नाम पर करें और शहीद स्मारक का काम भी पूरा कराएं.