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बयानवीर बने कांग्रेस के लिए संकट, कोई गहलोत- पायलट, तो कोई नौकरशाही, तो कोई मंत्रियों पर खड़े कर रहा सवाल

राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर विधायकों की ओर से अपने ही नेताओं, मंत्रियों पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. इन बयानवीरों से निपटना अब कांग्रेस के लिए नई चुनौती बन गया है.

New Challenge for Congress as its MLAs giving statements against each other and bureaucracy
बयानवीर बने कांग्रेस के लिए संकट, कोई गहलोत- पायलट, तो कोई नौकरशाही, तो कोई मंत्रियों पर खड़े कर रहा सवाल

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Published : Apr 6, 2023, 8:07 PM IST

जयपुर.राजस्थान में वर्तमान गहलोत सरकार का ज्यादातर सयम सरकार को स्थिर रखने की जुगत में निकला है. गहलोत और पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई के चलते हालात ऐसे हो गए कि कांग्रेस विधायक दो धड़ों में बंट गए. विधायकों को अपने-अपने पक्ष में करने के चलते स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि कुछ विधायक गहलोत-पायलट को लेकर, तो कुछ अपनी सरकार और मंत्रियों को लेकर बयानबाजी करने लगे हैं. ऐसे बयानवीरों से निपटना कांग्रेस के लिए चुनौती सा बन गया है.

सरकार पर संकट के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जिन विधायकों ने साथ दिया, उनको पद और वरीयता ज्यादा मिलती गई. ऐसे में वे मुख्यमंत्री पर ही हावी होते नजर आए. यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कई क्षेत्रों में तो विधायकों को ही उनके क्षेत्र का मुख्यमंत्री माना जा रहा है. गहलोत के सामने मुसीबत यह है कि विधायकों को इतनी ताकत देने के बाद भी वे बेलगाम हो गए हैं.

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कुछ विधायक और मंत्री गहलोत और पायलट के मुद्दे पर बयानबाजी करते हैं. तो कुछ मंत्री-विधायक अपनी ही सरकार होते हुए भी नौकरशाही पर जमकर हमला कर रहे हैं, तो कुछ विधायक अपने ही मंत्रियों से नाराज हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार रिपीट करने के लिए गहलोत और पायलट की एकजुटता कांग्रेस के लिए आवश्यक है. इसके साथ ही विधायकों, मंत्रियों को कंट्रोल करना भी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती बन गई है.

रंधावा बोले-होगी कार्रवाईः राजस्थान कांग्रेस में हालात यह हैं कि गहलोत और पायलट के समर्थक विधायक और नेता अपनी ही पार्टी के नेताओं पर बयानबाजी करते रहे हैं. इतना ही नहीं जब पिछले साल 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के समानांतर दूसरी विधायक दल की बैठक हुई और विधायक पायलट और गहलोत गुट में बंटकर बयानबाजी करने लगे तो, एआईसीसी को मजबूर होकर सर्कुलर जारी कर इन विधायकों को बयानबाजी बंद करने की हिदायत देनी पड़ी. कार्रवाई का डर भी दिखाया गया.

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उस सर्कुलर का असर 2-4 महीने तो रहा, लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस पार्टी में बयानबाजी शुरू हो गई है. जिसके चलते कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को यह कहना पड़ा कि अगर कोई नेता नहीं मानता है और बयानबाजी जारी रखता है, तो कार्रवाई के अलावा कांग्रेस पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचता है. लेकिन रंधावा की चेतावनी के 1 दिन बाद ही कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने अपनी ही सरकार के मंत्री शांति धारीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल यह बता दिया कि राजस्थान में कांग्रेस नेताओं के बीच दूरियां आसानी से मिटने वाली नहीं हैं.

पायलट-गहलोत में बंटे विधायकों ने अब फिर शुरू की बयानबाजीःराजस्थान में वर्तमान कांग्रेस सरकार के सामने अगर कोई सबसे बड़ी दिक्कत रही तो वो थी, गहलोत और सचिन पायलट के बीच टकराव. साल 2020 में दोनों नेताओं के बीच टकराव के चलते कांग्रेसी नेता गहलोत और पायलट गुटों में बंट गए. बहरहाल 2020 की परिस्थितियों से बाहर निकल कर कांग्रेस की गाड़ी आगे बढ़ी, तो लगा कि अब कांग्रेस में स्थितियां सामान्य हैं, लेकिन 25 सितंबर को जो घटनाक्रम हुआ उसके बाद एक बार फिर विधायकों ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लिया. उस दौर में हुई बयानबाजी को तो एआईसीसी ने किसी तरह थामा, लेकिन अब एक बार फिर बयानबाजी शुरू हो गई है.

इन नेताओं ने की पायलट-गहलोत मामले में बयानबाजीः

रामलाल जाटः गहलोत सरकार में मंत्री रामलाल जाट ने बीते 10 दिनों में दो बार सचिन पायलट पर निशाना साधा. उन्होंने उदयपुर में नाम लिए बगैर सचिन पायलट को पार्टी के अंदर कोरोना बताया, तो दूसरी बार जयपुर में नाम लिए बगैर सचिन पायलट को दोगला नेता बताया. उन्होंने कहा था कि कुछ नेता दो लाइन राहुल गांधी के पक्ष में बोल देते हैं और उसके बाद अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े कर दोगलापन करते हैं.

रामलाल जाट

हेमारामः रामलाल जाट ने सचिन पायलट पर सवाल खड़े किए तो हेमाराम चौधरी सामने आए और उन्होंने कहा कि कई नेता चाहते हैं कि सचिन पायलट और हेमाराम कांग्रेस पार्टी छोड़ दें, लेकिन हम कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे, हमारे खून में कांग्रेस है. उन्होंने रामलाल जाट को लेकर कहा कि उनके बयान से ऐसे लगता है कि उन्हें और किसी की जरूरत नहीं है और वही सरकार रिपीट करवाने में सक्षम हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.

हेमाराम चौधरी

प्रताप सिंह खाचरियावासः कभी पायलट के साथ रहे और 2020 की बगावत में गहलोत के साथ खड़े नजर आए मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी पायलट के पक्ष में बयानबाजी शुरू कर दी है. उन्होंने पायलट की विधायकों को दिल्ली बुलाए जाने की मांग का समर्थन किया है.

प्रताप सिंह खाचरियावास

मुकेश भाकरःपायलट कैंप के विधायक मुकेश भाकर ने भी विधानसभा सत्र के दौरान कहा कि अगर गहलोत और पायलट दोनों एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़े, तो चाहे सरकार कितने ही जिले बना ले या कितनी ही अपने बजट की तारीफ क्यों ना कर ले, सरकार रिपीट नहीं होगी.

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नौकरशाही के खिलाफ मंत्री-विधायक:

अशोक चांदनाः मंत्री अशोक चांदना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विश्वस्त मंत्रियों में से एक हैं, लेकिन नौकरशाही के साथ उनका सीधा विवाद रहा है. बिजली विभाग के जेईएन को धमकी देने का मामला हो या फिर मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव कुलदीप राका के साथ विवाद के चलते अपने इस्तीफे की पेशकश करना हो या फिर 28 मार्च को बूंदी में हुई बैठक में आईएफएस अधिकारी और बूंदी के उप वन रक्षक टीम मोहनराज के साथ विवाद हो, मंत्री होने के बावजूद अशोक चांदना की नौकरशाहों से नहीं बन रही है. हालात यह है कि आईएफएस मोहनराज ने तो बूंदी के एसपी को पत्र लिखकर जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की भी मांग की है.

अशोक चांदना

प्रताप सिंह खाचरियावासःनौकरशाही पर नाराजगी दिखाने में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने कई बार नौकरशाही पर नाराजगी जताते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अधिकारियों की एसीआर भरने का अधिकार तक मांग लिया, ताकि नौकरशाह मंत्रियों को हल्के में ना लें. मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास और विधायक अमीन कागजी ने तो 5 मार्च को ही नगर निगम की बैठक में सार्वजनिक तौर पर आईएएस अधिकारी विश्राम मीणा को कामकाज में अड़ंगा लगाने पर निशाने पर लिया.

पहले भी रहे विवादःनौकरशाही की कार्यप्रणाली को लेकर सत्तारूढ़ नेताओं के पहले भी टकराव रहे हैं. चाहे कांग्रेस विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा ने तत्कालीन डीजीपी एमएल लाठर पर आरोप लगाए हों या विधायक राजेंद्र बिधूड़ी ने अधिकारियों पर आरोप लगाए हों या फिर विधायक गणेश घोघरा का डूंगरपुर एसडीएम से टकरा हुआ हो, या फिर दिव्या मदेरणा का नौकरशाहों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने का मामला हो. लगातार नौकरशाही पर सवाल खड़े होते रहे हैं.

अपने मंत्रियों पर ही कांग्रेस विधायकों ने खड़े किए सवालःगहलोत-पायलट और ब्यूरोक्रेसी के अलावा भी कांग्रेस विधायक अपने ही मंत्रियों पर सवाल खड़े करने में पीछे नहीं रहे. इस मामले में मंत्री शांति धारीवाल सबसे आगे रहे जिनपर उनकी पार्टी के विधायकों ने जमकर सवाल खड़े किए.

अमीन कागजीः कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने 5 मार्च को ही यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल पर अपनी भड़ास निकालते हुए जयपुर के साथ भेदभाव करने के आरोप लगाए और यहां तक कह दिया कि क्या केवल कोटा में विकास करवाने से ही कांग्रेस का राज राजस्थान में रिपीट होगा.

अमीन कागजी

दिव्या मदेरणाः दिव्या मदेरणा ने विधानसभा में मंत्री शांति धारीवाल पर अपने क्षेत्र के विकास कार्य राजनीतिक दुर्भावना के चलते रोकने के आरोप लगाए. उन्होंने चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया कि अगर उनके क्षेत्र में विकास कार्य नहीं होगें, तो वह भी वीरांगनाओं की तरह घास मुंह में लेकर धरने पर बैठ जाएंगी.

दिव्या मदेरणा

भरत सिंहःखान मंत्री प्रमोद जैन भाया के खिलाफ बीते सवा चार साल से अगर किसी ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, तो वह विपक्षी पार्टियों के विधायकों ने नहीं बल्कि उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक भरत सिंह ने. भरत सिंह ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रमोद जैन भाया को भ्रष्टाचार की जननी कहते हुए उनके खिलाफ कितने पत्र लिखे, शायद यह तो अब गिनती करना भी मुश्किल है.

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