जयपुर.राजस्थान में वर्तमान गहलोत सरकार का ज्यादातर सयम सरकार को स्थिर रखने की जुगत में निकला है. गहलोत और पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई के चलते हालात ऐसे हो गए कि कांग्रेस विधायक दो धड़ों में बंट गए. विधायकों को अपने-अपने पक्ष में करने के चलते स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि कुछ विधायक गहलोत-पायलट को लेकर, तो कुछ अपनी सरकार और मंत्रियों को लेकर बयानबाजी करने लगे हैं. ऐसे बयानवीरों से निपटना कांग्रेस के लिए चुनौती सा बन गया है.
सरकार पर संकट के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जिन विधायकों ने साथ दिया, उनको पद और वरीयता ज्यादा मिलती गई. ऐसे में वे मुख्यमंत्री पर ही हावी होते नजर आए. यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कई क्षेत्रों में तो विधायकों को ही उनके क्षेत्र का मुख्यमंत्री माना जा रहा है. गहलोत के सामने मुसीबत यह है कि विधायकों को इतनी ताकत देने के बाद भी वे बेलगाम हो गए हैं.
कुछ विधायक और मंत्री गहलोत और पायलट के मुद्दे पर बयानबाजी करते हैं. तो कुछ मंत्री-विधायक अपनी ही सरकार होते हुए भी नौकरशाही पर जमकर हमला कर रहे हैं, तो कुछ विधायक अपने ही मंत्रियों से नाराज हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार रिपीट करने के लिए गहलोत और पायलट की एकजुटता कांग्रेस के लिए आवश्यक है. इसके साथ ही विधायकों, मंत्रियों को कंट्रोल करना भी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती बन गई है.
रंधावा बोले-होगी कार्रवाईः राजस्थान कांग्रेस में हालात यह हैं कि गहलोत और पायलट के समर्थक विधायक और नेता अपनी ही पार्टी के नेताओं पर बयानबाजी करते रहे हैं. इतना ही नहीं जब पिछले साल 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के समानांतर दूसरी विधायक दल की बैठक हुई और विधायक पायलट और गहलोत गुट में बंटकर बयानबाजी करने लगे तो, एआईसीसी को मजबूर होकर सर्कुलर जारी कर इन विधायकों को बयानबाजी बंद करने की हिदायत देनी पड़ी. कार्रवाई का डर भी दिखाया गया.
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उस सर्कुलर का असर 2-4 महीने तो रहा, लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस पार्टी में बयानबाजी शुरू हो गई है. जिसके चलते कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को यह कहना पड़ा कि अगर कोई नेता नहीं मानता है और बयानबाजी जारी रखता है, तो कार्रवाई के अलावा कांग्रेस पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचता है. लेकिन रंधावा की चेतावनी के 1 दिन बाद ही कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने अपनी ही सरकार के मंत्री शांति धारीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल यह बता दिया कि राजस्थान में कांग्रेस नेताओं के बीच दूरियां आसानी से मिटने वाली नहीं हैं.
पायलट-गहलोत में बंटे विधायकों ने अब फिर शुरू की बयानबाजीःराजस्थान में वर्तमान कांग्रेस सरकार के सामने अगर कोई सबसे बड़ी दिक्कत रही तो वो थी, गहलोत और सचिन पायलट के बीच टकराव. साल 2020 में दोनों नेताओं के बीच टकराव के चलते कांग्रेसी नेता गहलोत और पायलट गुटों में बंट गए. बहरहाल 2020 की परिस्थितियों से बाहर निकल कर कांग्रेस की गाड़ी आगे बढ़ी, तो लगा कि अब कांग्रेस में स्थितियां सामान्य हैं, लेकिन 25 सितंबर को जो घटनाक्रम हुआ उसके बाद एक बार फिर विधायकों ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल लिया. उस दौर में हुई बयानबाजी को तो एआईसीसी ने किसी तरह थामा, लेकिन अब एक बार फिर बयानबाजी शुरू हो गई है.
इन नेताओं ने की पायलट-गहलोत मामले में बयानबाजीः
रामलाल जाटः गहलोत सरकार में मंत्री रामलाल जाट ने बीते 10 दिनों में दो बार सचिन पायलट पर निशाना साधा. उन्होंने उदयपुर में नाम लिए बगैर सचिन पायलट को पार्टी के अंदर कोरोना बताया, तो दूसरी बार जयपुर में नाम लिए बगैर सचिन पायलट को दोगला नेता बताया. उन्होंने कहा था कि कुछ नेता दो लाइन राहुल गांधी के पक्ष में बोल देते हैं और उसके बाद अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े कर दोगलापन करते हैं.
हेमारामः रामलाल जाट ने सचिन पायलट पर सवाल खड़े किए तो हेमाराम चौधरी सामने आए और उन्होंने कहा कि कई नेता चाहते हैं कि सचिन पायलट और हेमाराम कांग्रेस पार्टी छोड़ दें, लेकिन हम कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे, हमारे खून में कांग्रेस है. उन्होंने रामलाल जाट को लेकर कहा कि उनके बयान से ऐसे लगता है कि उन्हें और किसी की जरूरत नहीं है और वही सरकार रिपीट करवाने में सक्षम हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.