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बीजेपी संगठनात्मक चुनाव में नामांकन पत्र के साथ ही दावेदार को देना होगा नाम वापसी का पत्र

भाजपा में इन दिनों संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं और इन चुनाव के लिए बनाए गए नियम और शर्तें चर्चा का विषय बनी हुई है. दरअसल, भाजपा के संगठनात्मक चुनाव के तहत मंडल अध्यक्षों का चुनाव चल रहा है. लेकिन इसमें जो प्रोफार्मा जारी किया गया है उसमें दी गई शर्त में कई बाध्यता है. जैसे नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान ही संबंधित दावेदार को नामांकन वापसी का पत्र भी भरकर देना होगा.

बीजेपी संगठनात्मक चुनाव, BJP Organizational Election

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Published : Nov 18, 2019, 7:18 PM IST

जयपुर. विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का दम भरने वाली भाजपा में इन दिनों संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं और इन चुनाव के लिए बनाए गए नियम और शर्तें चर्चा का विषय बनी हुई है. चर्चा का विषय इसलिए क्योंकि पार्टी को एकजुट रखने के लिए संगठनात्मक चुनाव में जो नियम और शर्तें बनाए गई है. उससे पार्टी के भीतर के आंतरिक लोकतंत्र पर भी सवाल उठने लगा है.

बीजेपी संगठनात्मक चुनाव में प्रत्याशी को नामांकन पत्र के साथ ही नाम वापसी का पत्र भी देना होगा

दरअसल, चुनाव में नामांकन दाखिल करने का अधिकार हर सक्रिय कार्यकर्ता को है लेकिन इनमें से किसे चुनना है ये अधिकार केवल पार्टी के पास ही है. भाजपा के संगठनात्मक चुनाव के तहत मंडल अध्यक्षों का चुनाव चल रहा है. लेकिन इसमें जो प्रोफार्मा जारी किया गया है उसमें दी गई शर्त में कई बाध्यता है. जैसे नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान ही संबंधित दावेदार को नामांकन वापसी का पत्र भी भरकर देना होगा.

इसी तरह चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल किए जा रहे हैं लेकिन इसमें मतदान नहीं होगा बल्कि पार्टी आम सहमति से ही आए हुए नामांकन पत्रों में से किसी एक को मंडल अध्यक्ष बना देगी. यही प्रक्रिया बूथ, जिला और प्रदेश के चुनाव में अपनाई जाती है.

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मौजूदा संगठनात्मक चुनाव के लिए जारी किए गए प्रोफार्मा और उसमें लिखी नियम और शर्तें तो यही बयां कर रही है. जयपुर शहर भाजपा अध्यक्ष मोहनलाल गुप्ता के अनुसार इसके पीछे मकसद केवल इतना है कि पार्टी सर्वसम्मति से ही संगठनात्मक पदों पर किसी को दायित्व दे.

पार्टी की ओर से संगठनात्मक चुनाव में एकजुटता के लिए तमाम शर्तें और बाध्यता बनाई गई है. लेकिन अब तक देखने में यही आया है की इस तरह की शर्तें और बाध्यताओं की आड़ में संगठनात्मक चुनाव में भाजपा के स्थानीय विधायक ही अपनी मनमर्जी चलाते हैं और अपने क्षेत्र में उन्हीं कार्यकर्ताओं को पार्टी के पदों पर दायित्व दिलाते हैं जो उनके खास होते हैं. वहीं, मौजूदा संगठनात्मक चुनाव में पार्टी इस बात का भी ध्यान रखेगी की मौजूदा पदाधिकारी विधायकों की मर्जी पर ना बने बल्कि क्षेत्र के आम कार्यकर्ताओं की राय से ही बने.

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