जयपुर. प्रदेश में सात को आखातीज और 18 मई को पीपल पूर्णिमा का अबूझ मुहुर्त देखते हुए बाल विकास विभाग ने सख्त कदम उठाया है. दरअसल इन दिनों बाल विवाह होने की प्रथा होती है. इस प्रथा पर कड़ाई से रोक लगाने के लिए विभाग ने प्रदेश के लगभग सभी जिलों में कंट्रोल रूम गठित किया है. साथ ही विभाग ने दोनों दिन सभी को फील्ड में रहने के साथ-साथ मॉनिटरिंग के निर्देश दिए गए हैं.
बाल विवाह की रोकथाम के लिए बाल विकास विभाग ने गठिक की मॉनिटरिंग सेल महिला एवं बाल विकास विभाग की पहल से जिला प्रशासन, पुलिस की सजगता के चलते बीते दो सालों में विभिन्न माध्यमों से शिकायत पर समझाइश से प्रदेश में साल 2017-18 में 700 और साल 2018-19 में 800 के आसपास बाल विवाह को रुकवाया गया था. वहीं साल 2011 कि जनगणना के अनुसार 18 साल से कम आयु के लोग प्रदेश में 31.6 प्रतिशत थी, जो पूरे देश में 17 फीसदी बाल विवाह की औसत है. बाल विवाह से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, टोंक, बीकानेर और नागौर जिला है.
बाल विवाह करवाने पर ये होगी सजा
हाल ही में 7 मई के अबूझ सावे पर बाल विवाह रोकने वाले कानून के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग ने शहर से लेकर गांवों में जिम्मेदारी तय की है. विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बच्चों के माता-पिता के साथ पंडित, टेंट वाले और हलवाई के अलावा उसमें शामिल होने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. ये कार्रवाई बाल विवाह अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह करना और करवाना गैरकानूनी और दंडनीय अपराध के तहत हो सकती है. इसमें एक साल की सजा और जुर्माना, 2 साल की सजा अथवा दोनों का प्रावधान भी है. कंट्रोल रूम के अलावा जिला प्रशासन की निगरानी में ग्रामीण इलाकों में तैनात शिक्षक और अन्य सरकारी कर्मचारियों, पटवारी, ग्राम सेवकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी दी गई है.
यहां कर सकते हैं शिकायत
बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी, बाल कल्याण समिति, चाइल्ड लाइन- 1098, उपखंड मजिस्ट्रेट, तहसीलदार, पुलिस, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट, 181, रालसा, मेट्रोपॉलियन मजिस्ट्रेट के यहां मौखिक, लिखित, और सोशल मीडिया के जरिए भी शिकायत की जा सकती है.