हनुमानगढ़. जिला अस्पताल में थैलेसीमिया रोग के इंजेक्शन की सप्लाई नहीं होने से रोगी इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं. मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत 2011 में जिला अस्पताल में थैलेसीमिया रोगियों के इंजेक्शन की सप्लाई राज्य सरकार ने शुरू की थी. जबकि 2017 में इंजेक्शन की सप्लाई बंद हो गई थी.
अब आलम यह है कि थैलेसीमिया के इंजेक्शन केवल जयपुर और दिल्ली में मिलने के कारण रोगियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिसके चलते आए दिन थैलेसीमिया रोगियों को डेस्फेराल इंजेक्शन के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है. इतना ही नहीं अस्पताल में थैलेसीमिया रोगियों को दी जाने वाली दवा का भी अक्सर टोटा रहता है.
दवाओं के लिए भटक रहे थैलेसीमिया रोगी बता दें कि जिले में थैलेसीमिया के 30 से अधिक रोगी हैं. रेयर दवाओं में आने की वजह से बाजार में भी इसके इंजेक्शन और दवाइयां उपलब्ध नहीं रहती है. हालांकि, जयपुर के कुछ निजी अस्पतालों में इसके इंजेक्शन उपलब्ध हैं, लेकिन काफी ज्यादा मंहगे होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर रोगी खरीदने में असमर्थ हैं.
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वहीं, लॉकडाउन में रोगियों और इनके परिजनों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा था. यह इंजेक्शन दिल्ली से काफी मंहगे दामों पर मंगवाए गए थे और आज भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. थैलेसीमिया रोग से पीड़ित कन्नव ने सरकार से शीघ्र इंजेक्शन उपलब्ध करवाने की गुहार लगाई है.
थैलेसीमिया रोग से पीड़ित रोगियों के लिए हनुमानगढ़ में ब्लड में से लुको साइट को अलग कर ब्लड चढ़ाने की सुविधा नहीं है. जिसके चलते रोगियों को हर 15 दिन बाद ब्लड चढ़वाने के लिए श्रीगंगानगर जाना पड़ता है. वहीं, उनसे चंदे के नाम पर ब्लड के 400 रुपए एक ट्रस्ट की ओर से वसूले जाते हैं. वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता और ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष अश्वनी पारीक ने रोगियों को इजेंक्शन उपलब्ध कराने की मांग को लेकर विधायक चौधरी विनोद कुमार को ज्ञापन सौंपा है.
इस समस्या को लेकर जिला अस्पताल के प्रमुख एमपी शर्मा का कहना है कि 2 दिन पहले ही दवा खत्म हुई है और इंजेक्शन की सप्लाई 2017 से नहीं आ रही है. स्थानीय स्तर पर इंजेक्शन की खरीद करने के लिए कागजी कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
क्या है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो आमतौर पर जन्म से ही बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है. यह दो प्रकार का होता है- माइनर और मेजर. जिन बच्चों में माइनर मात्रा में थैलेसीमिया होता है वे लगभग स्वस्थ जीवन जी लेते हैं. जबकि जिन बच्चों में मेजर थैलेसीमिया होता है, उन्हें लगभग हर 15 या 21 दिन बाद एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ता है. थेलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है.