चित्तौड़गढ़. पिछले कुछ दशकों से मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है. मानसून में कभी अल्प वर्षा तो कभी अतिवृष्टि एक रूटीन बन गया. इसका मुख्य कारण जंगल का सिमटना है. वहीं, अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के इस दौर में चित्तौड़गढ़ के मांदलदा गांव के लोग एक आदर्श बन कर उभरे हैं. ये पूरा गांव गुर्जर जाति बाहुल्य है. समुदाय के प्रमुख आराध्य देव भगवान देवनारायण माने जाते हैं, जिनका गांव की पहाड़ी पर एक विशाल मंदिर भी है. किंवदंती है कि भगवान देवनारायण की मनाही के चलते यहां पेड़ काटना तो दूर, ग्रामीण पत्तियां काटने से भी परहेज करते हैं. साथ ही यहां बनने वाले मकानों का डिजाइन भी पेड़ों के आधार पर ही तैयार होता है.
ऐसे में अगर पेड़ की कोई शाखा कहीं निकल रही है तो उस हिसाब से ही मकान की डिजाइन को परिवर्तित किया जाता है. जिसका नतीजा है कि आज गांव के चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती है. साथ ही मंदिर के आसपास का एक बहुत बड़ा भाग घने जंगल में तब्दील हो गया है. भगवान देवनारायण की पहाड़ी पर हजारों पेड़ जंगल का दीदार कराते हैं. गुर्जर बाहुल्य इस गांव में भगवान देवनारायण के प्रति ग्रामीणों की अगाध श्रद्धा है.
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तो इसलिए पेड़ काटने से डरते हैं ग्रामीण :मंदिर के पुजारी नारायण गुर्जर बताते हैं कि मंदिर के नाम पर 11 सौ बीघा जमीन है, जो कि घने जंगल में तब्दील हो गई है. भगवान देवनारायण की पेड़ काटने की मनाही है. इस कारण गांव के लोग कभी भी पेड़ पर कुल्हाड़ी नहीं चलाते हैं. यहां तक कि मवेशियों के लिए पत्तियां काटने से भी परहेज करते हैं. इसके पीछे ग्रामीणों का कहना है कि जिसने भी भगवान देवनारायण की आज्ञा का उल्लंघन करने पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इसमें घर में किसी सदस्य के बीमार पड़ने से लेकर कंगाल होने तक की बात कही जाती है. वहीं, लोग बताते हैं कि 80 साल के बुजुर्ग नारायण लाल भगवान के कोप का शिकार बन चुके हैं.