बूंदी. देश में दीपावली का त्योहार नजदीक आ रहा है. रोशनी का पर्व कहा जाने वाला यह त्योहार कई घरों में रोशनी करता है और इस रोशनी को जगमग करने वाले परिवारों की भी दीपावली इस बार खास होने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि दीपावली के पर्व पर हर साल दीये बनाने वाले परिवारों के घरों में रोशनी होगी.
बूंदी के कुम्हारों में जगी उम्मीद की रोशनी पूरे देश में चीन से आई कोरोना नामक बीमारी से लाखों लोग ग्रसित हैं और हजारों की तादाद में लोगों की जान चली गई है. ऐसे में भारत में भी आत्मनिर्भर बनने और वोकल फार लोकल बनने सहित कई कैंपेन चला जा रहा है. जिसमें महत्वपूर्ण बात चाइनीज सामानों की बिक्री नहीं करने और पूर्णता इनका बहिष्कार करने जैसी चीजें शामिल हैं.
नतीजन भारत में बनने वाले इन चीजों का महत्व और बढ़ जाता है. उनमें से सबसे बड़ा उद्योग है मिट्टी से बनने वाले सामग्रियों का. डिजिटल इंडिया के इस दौर में लंबे समय से चाइनीज सामानों ने मार्केट में अपनी जगह बनाई है और घरों में चाइनीज सामानों का बोलबाला है.
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लोग सस्ता होने की वजह से इन सामानों को खरीद लेते हैं, लेकिन हर साल काफी संख्या में दीये बनाने वाले इन परिवारों के दिये कोई नहीं खरीददता था. जिससे इन लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन अब आस जगी है कि कोरोना वायरस की घड़ी में चीन का सामूहिक बहीष्कार कई देशों ने किया है तो, उनके सामानों पर भी प्रतिबंध लगा है. भारतवासी देश में ही बने सामानों को खरीद रहे हैं.
दीये बनाने वाले परिवारों में जगी उम्मीदः
बूंदी का टिकरदा गांव जिसे मिट्टी के बर्तन बनाने वाला गांव कहा जाता है यह विश्व हेरिटेज में भी शामिल है. यहां हर घरों में मिट्टी के बर्तन और सामान बनाए जाते हैं. ऐसे में इसी गांव में सबसे ज्यादा दीये और अन्य मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं. पूरे जिले के आसपास के गांव में यहां से बर्तन बाहर जाते हैं. इस बार भी दिवाली के त्योहार नजदीक आने के साथ ही यहां के परिवारों और मजदूरों ने दीपक को बनाने का काम शुरू कर दिया है.
पिछले 10 दिनों से यह परिवार दीए बना रहा है. कुछ परिवारों ने तो अपने दीये के कार्य को पूरा भी कर लिया है और रंग रोगन करने में जुटे हुए हैं. दीये को यह परिवार होलसेल दरों में बाजारों में बेचते हैं और दुकानदार उन्हें अच्छी खासी किमत पर बाजारों में बेच देते हैं. ऐसे में इस बार इन परिवारों को उम्मीद जगी है कि दीपावली का त्योहार उनके लिए रोशनी वाला होगा.
क्या कहा दीये बनाने वालों नेः
पिछले काफी समय से चाइनीज सामानों ने हर सेक्टर में अपनी छाप छोड़ते हुए लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है. चाइनीज सामान भले ही सस्ते हो लेकिन टिकाऊ नहीं होते. इस बात को भारतवासी जानते भी है, लेकिन फिर भी सस्ते दामों के चलते इनकी बिक्री हमेशा जोरों पर रहती है. इस बार कोरोना वायरस की वजह से लोगों ने चायनिज सामानों का सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार किया है.
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बात करे बूंदी के टिकरदा गांव की तो यहां भारी संख्या में मजदूर मिट्टी से बर्तन और दीये बना रहे हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए यह इन लोगों का कहना है कि इस बार हमें उम्मीद है कि हमारे घरों में अच्छी दिवाली मनेगी और हमारे दीयों को अच्छे दामों में खरीदा जाएगा. मजदूर चौथमल प्रजापति का कहना है कि हम एक दीये को 50 पैसे में बूंदी के व्यापारियों को बेचते हैं. वह 1 रुपए से 2 रुपए में मार्केट में बेचते हैं, लेकिन कुछ सालों से हमारे दीयों की डिमांड कम हो गई है, लेकिन इस बार हमें दुकानदारों के अच्छे खासे ऑर्डर भी मिल रहे हैं और उम्मीद ही की जा सकती है कि हमारी होलसेल दरें भी बढ़ेगी तो हमें मुनाफा होगा.
बाजारों में बिकने के लिए तैयार दीये हर साल लोग घरों में दिवाली के समय दीये तो जलाते हैं, लेकिन बस औपचारिका मात्र. सबसे अधिक संख्या चाइनीज सामानों की रहती है और पूरे घरों को लोग चाइनीज सामानों से सजाते हैं, लेकिन ईटीवी भारत भी इस बार एक मुहिम लेकर आया है और एक अलख जगाने की कोशिश की. जिससे हमारी देश की माटी से बनी चीजों को सारे लोग संवारे.
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ईटीवी का संकल्प है कि माटी थे माटी हैं माटी हो जाएंगे, माटी से खिले हैं हम, इस बार माटी से ही खुशियां मनाएंगे, नुक्कड़ वाली माई की मेहनत को अपने घर लेकर आएंगे, भारतवासी इस बार खूब दीये जलाएंगे की मुहिम के साथ ईटीवी भारत भी इस दीये वाली मुहिम के साथ जुड़ गया है और दर्शकों से अपील करता है कि वह इस बार अपने घरों में खुशियों की दीपावली के साथ एक नया संकल्प ले और अपने घरों में इस उम्मीद के दीप जलाएं. ताकि इन परिवारों को भी नया उजाला मिल सकें और यह इस बार अपनी दीपावली भी रोशनी वाली मनाएं.