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स्पेशल: केवलादेव नेशनल पार्क में ई-रिक्शा से घूमेंगे पर्यटक, ट्रायल शुरू - केवलादेव नेशनल पार्क

केवलादेव नेशनल पार्क में 123 पैडल रिक्शा की जगह 123 ई-रिक्शा चलाए जाने की योजना है. इससे पर्यटकों को आसानी से पार्क में घुमाया जा सकेगा. वहीं घना प्रशासन को भी पर्यटन सीजन में बाहर से अतिरिक्त पैडल रिक्शा मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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केवलादेव नेशनल पार्क में ई-रिक्शा,

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Published : Jan 3, 2020, 2:05 PM IST

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव नेशनल पार्क में अब पैडल रिक्शा के स्थान पर, ईको फ्रेंडली ई-रिक्शा चलाए जाएंगे. इसके लिए पार्क प्रशासन ने ई -रिक्शा के ट्रायल शुरू कर दिए हैं. पर्यटकों से भी ई-रिक्शा का फीडबैक लिया जा रहा है.

केवलादेव नेशनल पार्क में ई-रिक्शा

ट्रायल के साथ ले रहे पर्यटकों का फीडबैक

पार्क के निदेशक मोहित गुप्ता ने बताया, कि फिलहाल ट्रायल के लिए 4 सीट वाला एक ई-रिक्शा मंगाया गया है. ट्रायल सफल होने के बाद घना में 123 ई- रिक्शा मंगाए जाएंगे. वहीं ई -रिक्शा को लेकर यहां आने वाले देसी और विदेशी पर्यटकों से फीडबैक के रूप में एक प्रपत्र भी भरवा रहे हैं. यह फीडबैक और ट्रायल करीब 1 महीने तक चलेगा. उसके बाद ही ई- रिक्शा संचालन का अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

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दो सीटर पैडल ई-रिक्शा चलाने की मांग

घना की रिक्शा यूनियन के मुकेश कुमार ने बताया, कि फिलहाल घना में ट्रायल के लिए 4 सीटर ई-रिक्शा मंगाया गया है. लेकिन यहां के रिक्शा चालकों की मांग है, कि घना में 2 सीटर ई-रिक्शा संचालित किए जाएं. साथ ही ई-रिक्शा में पैडल की सुविधा भी हो. ताकि यदि पर्यटकों को घुमाने के दौरान ई-रिक्शा में कोई तकनीकी खराबी आ जाए तो पैडल से पर्यटकों को मुख्य द्वार तक लाया जा सके.

फिलहाल 123 पैडल रिक्शा, 160 साइकिल उपलब्ध

फिलहाल केवलादेव नेशनल पार्क में 123 पेडल रिक्शा रजिस्टर्ड हैं, साथ ही 160 से अधिक साइकिल भी हैं. वहीं पर्यटकों की सुविधा के लिए दो पोलो कार भी उपलब्ध है, लेकिन इनका उपयोग गिने-चुने पर्यटक ही कर पाते हैं.

पीक सीजन में कम पड़ जाते हैं रिक्शे

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में दिसंबर और जनवरी के पीक पर्यटन सीजन में पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ जाती है. ऐसे में यहां पर उपलब्ध पैडल रिक्शा और साइकिल कम पड़ जाती हैं, जिसकी वजह से हर बार शहर से बड़ी संख्या में रिक्शा यहां मंगाए जाते हैं. कई बार तो पर्यटकों को पैदल ही घना घूमना पड़ता है.

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