बाड़मेर. कुछ हासिल करने का जुनून हो तो मंजिल कितनी भी दूर और मुश्किल क्यों न हो सफलता मिल ही जाती है. तभी तो एक के बाद एक 12 बार इंटरव्यू में असफलता मिलने के बाद जिले के युवा ने आखिरकार अपने 13वें इंटरव्यू में सफलता हासिल कर ली और फ्लाइंग ऑफिसर बन गया. इस सफलता के पीछे युवक की कड़ी मेहनत और उसका जूझारूपन साफ दिखाई देता है.
राजस्थान के बाड़मेर जिले के रेगिस्तान के धोरो के छोटे से गांव कवास निवासी गणेश परमार 12 बार इंटरव्यू में फेल हो गया लेकिन 13वें इंटरव्यू में सफलता हासिल करने के बाद जब फ्लाइंग ऑफिसर बनकर लौटा तो परिवार के साथ ही गांव के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
फ्लाइंग ऑफिसर गणेश परमार की कहानी संघर्षों से भरी है. गणेश प्रमाण बताते हैं कि वह बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं. 8वीं तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में हुई और उसके बाद पिताजी के अध्यापक होने के चलते उनका तबादला बालोतरा हो गया. कुछ दिन बालोतरा और उसके बाद जोधपुर में रहकर उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने इंडियन एयरफोर्स में जाने का मन बना लिया और मेहनत शुरू कर दी. इस दौरान जमकर एयर फोर्स के कंपटीशन एग्जाम के फॉर्म भरे.
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गणेश परमार का सबसे पहले वायु सेना में एयर मैन के रूप में सिलेक्शन हो गया था. उसके बाद 2011 से गणेश परमार लगातार संघर्ष करते रहे और फ्लाइंग ऑफिसर बनने के लिए एक के बाद एक इंटरव्यू देते रहे लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने फ्लाइंग अफसर बनने के लिए 12 इंटरव्यू दिए लेकिन परिणाम जीरो रहा. फ्लाइंग ऑफिसर गणेश प्रमाण बताते हैं कि इंटरव्यू में कुछ न कुछ कमी रह जाती थी जिसको मैं अगले इंटरव्यू में सही करता फिर भी मुझे सफलता नहीं मिलती थी.
इसनी असफलताओं के बाद भी मैंने हार नहीं मानी. मैं लगातार संघर्ष करता रहा आखिर 13वें इंटरव्यू में मैं फ्लाइंग ऑफिसर के लिए चयनित हो गया. फ्लाइंग ऑफिसर गणेश प्रमाण बताते हैं कि अभी 1 साल की ट्रेनिंग पूरी हुई है और 3 महीने का प्रशिक्षण अभी भी बाकी है. गणेश प्रमाण बताते हैं कि जो लोग यह सोचते हैं कि पढ़ाई में अच्छे प्रतिशत बहुत मायने रखते हैं तो उनके लिए मैं कहना चाहूंगा कि मेरे 10वीं कक्षा में सिर्फ 50 फीसदी अंक थे लेकिन मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी जिसका नतीजा है कि मैं आज फ्लाइंग ऑफिसर बना.
मेरा सपना है कि जिस तरह मैं फ्लाइंग ऑफिसर बना हूं, उसी तरह जिले के अन्य युवाओं को वायु सेना मैं जाने के लिए गाइडेंस दूं. मैंने सोचा है कि जब भी मुझे छुट्टी मिलेगी तो मैं जिले के वे युवा जो वायु सेना में जाना चाहते हैं उनके लिए कुछ करूं.