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REALITY CHECK: बांसवाड़ा जिला अस्पताल में आबादी के लिहाज से व्यवस्थाएं नाकाफी, शौचालयों में पसरी गंदगी - RAJASTHAN NEWS

बांसवाडा जिला चिकित्सालय की स्थापना 70 के दशक में हुई थी. इस अस्पताल में 350 बेड की व्यवस्था है लेकिन आबादी के लिहाज से व्यवस्थाएं चिकित्सालय प्रशासन के सामने बौनी साबित हो रही हैं. यही वजह है कि जहां मरीज यहां के उपचार और व्यवस्थाओं से खुश है तो वहीं शौचालय में सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है.

Banswara district hospital, बांसवाड़ा जिला अस्पताल
आबादी के लिहाज से व्यवस्थाएं बांसवाड़ा जिला अस्पताल प्रशासन के सामने बौनी साबित हो रही है.

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Published : Feb 8, 2020, 8:43 PM IST

बांसवाड़ा:जिले के विकास में पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की अहम भूमिका मानी जाती रही है. तीन बार राज्य की कमान संभालने वाले जोशी ने जहां उदयपुर संभाग के सबसे बड़े माही बांध की सौगात दी, तो वहीं 70 के दशक में जिला चिकित्सालय की स्थापना में अपनी अहम भूमिका भी निभाई. हालांकि उस समय बेड की संख्या कम थी लेकिन धीरे-धीरे बेड की संख्या बढ़ती गई और आज 350 तक पहुंच गई है. लेकिन आबादी के लिहाज से जिला चिकित्सालय की व्यवस्थाएं चिकित्सालय प्रशासन के सामने बौनी साबित हो रही हैं.

आबादी के लिहाज से व्यवस्थाएं बांसवाड़ा जिला अस्पताल प्रशासन के सामने बौनी साबित हो रही है.
ईटीवी भारत की टीम व्यवस्थाओं का जायजा लेने पहुंची तो मूल रूप से पार्किंग और सफाई की कमी नजर आई. हॉस्पिटल के प्रवेश द्वार से ही पार्किंग व्यवस्था सही नहीं होने की वजह से लोगों को आने जाने में भी परेशानी दिखाई पड़ी, जिसकी वजह से एंबुलेंस को भी इनसे निकलना मुश्किल हो रहा था. वहीं अगर बात अब चिकित्सा व्यवस्था पर जाए तो मरीज चिकित्सा व्यवस्था के प्रति संतुष्ट दिखे. मेल वार्ड में चिकित्सकों की टीम राउंड पर थी वहीं नर्सिंग स्टाफ की टीम चिकित्सक के निर्देशानुसार मरीजों की उपचार व्यवस्था में डटी नजर आई. मरीजों से भी बातचीत में उपचार के प्रति किसी भी प्रकार की बड़ी खामी सामने नहीं आई लेकिन शौचालयों की गंदगी को लेकर कुछ मरीजों में नाराजगी जरूर देखी .अस्पताल पर 20 लाख की आबादी का भार:जिलेभर में करीब आधा दर्जन से अधिक सीएचसी और चार दर्जन पीएचसी है. लेकिन बीएससी में डॉक्टर नहीं है तो सीएससी में स्पेशलिस्ट की कमी है. ऐसे में पूरे जिले का भार महात्मा गांधी चिकित्सालय पर आ जाता है जहां वैसे भी स्वीकृति के मुकाबले 50% डॉक्टर भी नहीं हैं. चिकित्सालय के लिए 92 चिकित्सकों के पद स्वीकृत है लेकिन वर्तमान में 42 डॉक्टर कार्यरत है. स्पेशलिटी के नाम पर मात्र 2 चिकित्सक है इसका सीधा असर चिकित्सा व्यवस्था पर भी पड़ रहा है.

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सुविधाओं की बात करें तो यहां पर सोनोग्राफी मशीन की सुविधा है लेकिन मशीन पुरानी होने की वजह से इसके रिजल्ट भी सही नहीं आते. हार्ट और शिशु रोग विशेषज्ञ की कमी के चलते मरीजों को उदयपुर भेजना ही एकमात्र विकल्प है.

शौचालयों गंदगी का अंबार:
हॉस्पिटल के सारे वार्डो में शौचालय की स्थिति दयनीय दिखी. हालांकि स्टाफ का कहना है कि सुबह-शाम दोनों वक्त इनकी सफाई होती है लेकिन सफाई के कुछ समय बाद ही फिर से गंदगी पसर जाती है. पिछले 3 दिन से भर्ती मुस्तफा का कहना था कि चिकित्सा व्यवस्था के लिहाज से कोई तकलीफ नहीं आई लेकिन सफाई व्यवस्था को और बेहतर बनाया जा सकता है.

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वही हर्निया का ऑपरेशन कराने आए चिड़िया वासा गांव के चंद्रेश पांड्या का कहना था कि पिछले 4 दिन से भर्ती हूं किसी प्रकार की तकलीफ नहीं है उन्हें. स्टाफ का व्यवहार भी अच्छा है और इलाज का असर भी हो रहा है लेकिन शौचालयों पर ध्यान देने की जरूरत है. दिनभर गंदगी के चलते दुर्गंध फैली रहती है.

उल्टी-दस्त से परेशान अपने बच्चे को हॉस्पिटल लेकर आई ललिता का कहना था कि बच्चे का ठीक तरह से उपचार हो रहा है. उन्हें कोई तकलीफ नहीं हो रही है. वही पीएमओ डॉक्टर नंदलाल चरपोटा के अनुसार पार्किंग व्यवस्था को लेकर भी हम सजग है. ओपीडी के वक्त बेतरतीब पार्किंग हो जाती है जिससे एंबुलेंस का निकलना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में हम नगर परिषद के मदद से नया पार्किंग स्टैंड तैयार करवाने जा रहे हैं.

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