मनरेगा के खजाने में सेंधमारी, सीईओ की सजगता से बचे सरकार के 8 करोड़
जांच के बाद करीब 8 करोड़ रुपए की चपत लगते लगते बची. फिलहाल जिला परिषद मामले की उच्चस्तरीय जांच करवा रहा है. इसके अलावा मामला पुलिस को भी भेजा गया है. पूरे मामले में किसी गिरोह के लिप्त होने की संभावना जताई जा रही है.
बांसवाड़ा. विधानसभा चुनाव 2018 की आचार संहिता की आड़ में कुछ लोगों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के खजाने में भी सेंध मार ली. गनीमत रही कि जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की सतर्कता से विकास कार्यों की शुरुआत नहीं हो पाई और घोटालेबाज के अरमान धरे के धरे रह गए.
इस मामले में दो दिन की जांच के बाद करीब 8 करोड़ रुपए की चपत लगते लगते बची. फिलहाल जिला परिषद मामले की उच्चस्तरीय जांच करवा रहा है. इसके अलावा मामला पुलिस को भी भेजा गया है. पूरे मामले में किसी गिरोह के लिप्त होने की संभावना जताई जा रही है. इसमें जिला परिषद से लेकर पंचायत समिति स्तर तक के कर्मचारियों की मिलीभगत होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
दरअसल बागीदौरा पंचायत समिति क्षेत्र की एक ग्राम पंचायत का सरपंच दो दिन पहले शिकायत के लहजे में मनरेगा के तहत कार्य मंजूर कराने को लेकर जिला परिषद पहुंचा था. सरपंच इस बात से नाराज था कि अन्य ग्राम पंचायतों में कार्य स्वीकृति के आदेश जारी किए गए लेकिन उनके प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी गई. सरपंच ने पक्ष में अन्य पंचायतों को जारी कार्यों की प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति के आदेश भी दिखाया जाए.
इसमें बाकायदा तत्कालीन जिला कलेक्टर एवं मनरेगा के जिला कार्यक्रम समन्वयक भगवती प्रसाद के नाम से 4 अक्टूबर 2018 का आदेश क्रमांक 19/1544 आदेश था. इस आदेश के जरिए बागीदौरा पंचायत समिति क्षेत्र की 8 ग्राम पंचायतों में 89 कार्य मंजूर किए गए थे. प्राथमिक जांच में सामने आया कि हकीकत यह थी कि पंचायत समिति बागीदौरा के पत्रांक 2085 दिनांक 29 सितंबर 2018 एवं क्रमांक 2087 दिनांक 1 अक्टूबर 2018 द्वारा कार्यों के प्रस्ताव प्रस्तुत हुए थे लेकिन सरपंच द्वारा पेश किए गए आदेश की कॉपी में वे कार्य शामिल नहीं थे और ना ही जिला परिषद की ओर से किसी प्रकार की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति जारी की गई थी.
जिला परिषद सीईओ डॉ. भंवरलाल के अनुसार बतौर सहायक कार्यक्रम समन्वयक मनरेगा आदेश पर मेरे इनिशियल और साइन फर्जी निकले. अकाउंट्स की जांच में भी आदेश क्रमांक 1544 जारी ही नहीं होना पाया गया. गनीमत रही कि विकास कार्य शुरू होने से पहले फर्जी साइन और कूट रचित दस्तावेज को माध्यम से करीब 7 करोड़ 90 लाख के 89 विकास कार्य शुरू नहीं हो पाए अन्यथा राजकोष को बड़ी चपत लग सकती थी.
सीईओ के अनुसार जो भी यह फर्जी कार्य करने वाले लोग हैं, उनका दाव था कि चुनाव के दौरान कोई जांच पड़ताल नहीं होगी और उनका उद्देश्य पूरा हो जाएगा लेकिन आचार संहिता के दौरान कार्य शुरू नहीं करवाने के कारण वे लोग अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए. फिलहाल हमने इस संबंध में चालू वित्त वर्ष के दौरान नरेगा मैं जो भी प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति जारी की है उन सब की जांच करवा रहे हैं.
तीन सदस्यीय कमिटी इस फर्जीवाड़े की जांच के लिए लगाई गई है जिसे 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया है. साथ ही कोतवाली में भी अज्ञात लोगों के खिलाफ फर्जी हस्ताक्षर एवं कूट रचित दस्तावेजों के जरिए फर्जीवाड़ा करने का मामला दर्ज कराया गया है. इधर तत्कालीन जिला कलेक्टर भगवती प्रसाद ने भी इसे फर्जीवाड़ा करार देते हुए कहा कि बांसवाड़ा में कुछ लोगों ने से गंदा बना रखा है. उनके कार्यकाल के दौरान भी एक ऐसे ही मामले की पुलिस में रिपोर्ट दी गई थी.