बांसवाड़ा. जिले भर में बड़े पैमाने पर तेंदूपत्ते का पेड़ है. हर साल ठेकेदारों के जरिए पत्ते तोड़ने का काम चलाया जाता हैं. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य मुश्किल नजर आ रहा था. विभागीय अधिकारियों के सामने मुश्किल यह थी कि बांसवाड़ा जिले के तेंदूपत्ता संग्रहण का ठेका करीब 80,00,000 रुपए में छूट चुका था.
तेंदूपत्ता बना आदिवासी परिवारों का तारणहार लेकिन अधिकारियों ने भी हिम्मत नहीं हारी और प्रशासन के समक्ष अपनी बात रखते हुए ठेकेदारों और मजदूरों के लिए पास बनाने के प्रयासों में जुटे रहे. आखिरकार विभाग को अप्रैल अंत तक कामयाबी मिल गई. इसके साथ ही सभी 11 ब्लॉकों में काम शुरू करवा दिया, लेकिन कुशलगढ़ में कोरोना के कारण लगाए गए कर्फ्यू को देखते हुए कुशलगढ़ ब्लॉक में संग्रहण के कार्य को निरस्त करना पड़ा. बांसवाड़ा, घाटोल, सज्जनगढ़, आनंदपुरी, बागीदौरा, गढ़ी, प्रतापपुर सहित अन्य ब्लॉक में संगठन का काम प्रारंभ किया गया. कुशलगढ़ ब्लॉक की राशि कम करने के साथ ही ठेका राशि 74 लाख 80 हजार रुपए कर दी गई.
तेंदूपत्ता के भरोसे सैकड़ों आदिवासी परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण एक कठिन प्रक्रिया
बता दें की तेंदूपत्ता संग्रहण की प्रक्रिया बहुत ही कठिन है. मजदूरों को 50 हजार पत्तों पर 1050 रुपए की मजदूरी मिलती है. इसमें मजदूर को पत्ता तोड़ने से लेकर से पचास-पचास की गड्डी बनाने और उन्हें सुखाने के बाद फड़ यानी कलेक्शन सेंटर पर दिया जाता है. एक मानक बोरे की मजदूरी 1050 रुपए का भुगतान किया जाता है. एक मानक का मतलब पचास-पचास पत्तों की 1 हजार गड्डी माना जाता है. इस प्रकार जंगल से 50 हजार पत्तों की तुड़ाई के बाद उनकी गड्डी बनाने और फिर सुखाकर सेंटर पर देने के बदले मजदूर के खाते में 1050 रुपए ट्रांसफर किए जाते हैं.
रोजगार का मुख्य साधन इस वक्त तेंदूपत्ता परिवार के हर सदस्य की सहभागिता
इस पूरे कार्य में संबंधित व्यक्ति के परिवार के हर सदस्य की सहभागिता रहती है. कोई भी एक व्यक्ति जंगल से पत्ते तोड़ लाता है और परिवार के अन्य सदस्य गड्डी बनाकर सुखाने के काम में जुट जाते हैं. कुल मिलाकर इसके जरिए दिन भर में परिवार के हर सदस्य की 200 से लेकर 300 रुपए तक की कमाई हो जाती है.
कोरोना काल में रोजी रोटी का जुगाड़ उप वन संरक्षक सुगनाराम जाट के अनुसार अब तक 16 हजार मानक बोरा कलेक्शन सेंटर पर जमा हो चुके हैं. कुल 77 हजार मानव दिवस सृजित हुए और लगभग 1 हजार से अधिक आदिवासी वर्ग के लोगों को रोजगार मिला. इसके बदले ठेकेदार की तरफ से मजदूरों के खाते में एक करोड़ 70 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए. हालांकि तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य अभी भी जारी है. लेकिन यह अंतिम चरण में है. जिस वजह से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता रहेगा.