अजमेर.विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के देश और दुनिया में करोड़ों लोग चाहने वाले हैं.ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वालों में मलंग और कलंदर भी शामिल हैं. शुक्रवार को दिल्ली के महरौली में कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से हजारों मलंग हाथों में झंडे थामे अजमेर पंहुचे. ऋषि घाटी स्थित ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले की जियारत करने के बाद कलंदर जुलूस लेकर दरगाह की ओर निकले. खास बात यह रही कि कलंदरों ने अपने झंडों के साथ देश का झंडा भी थामे रखा. यानी कलंदर ख्वाजा की दीवानगी के साथ देशभक्ति और कौमी एकता का संदेश देते हुए आए.
देश-दुनिया से बेखबर होकर केवल अपने महबूब की चाह में खोए रहना ही एक इंसान को मलंगों और कलंदरों की श्रेणी में खड़ा करता है. कलंदरों का इतिहास यू तो काफी पुराना है, लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से मलंगों का नाता 812वर्षों से चला आ रहा है. उर्स पर परचम लाने की शुरुआत ख्वाजा गरीब नवाज के खलीफा सैयद कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने की थी. उस दौर में दिल्ली से कई लोगों के साथ वह अजमेर आए थे. तभी से पीढ़ी दर पीढ़ी मलंगों के अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में परचम लेकर आने की परंपरा बन गई है.
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महरौली से पहुंचा जत्था:मलंग हाजी मोहम्मद सफी बताते हैं कि देश के कोने-कोने से मलंग दिल्ली में महरौली में सैयद कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह में एकत्रित होते हैं. उन्होंने बताया कि यहां से हजारों की संख्या में मलंग जुलूस के रूप में अजमेर ख्वाजा दरगाह के लिए रवाना होते हैं. 20 दिसंबर को मलंगों का यह जुलूस महरौली से रवाना हुआ था. उन्होंने यह भी बताया कि जुलूस में मलंग प्रतिदिन 35 किलोमीटर पैदल चलते हैं. हाथों में परचम थामे हुए मलंग ख्वाजा गरीब नवाज की दीवानगी में रास्ते की थकान भी भूल जाते हैं और अजमेर आने के बाद उनका केवल एक ही मकसद होता है ख्वाजा गरीब नवाज की चौखट को चूमना और हाजरी लगाना. उन्होंने बताया कि 812 वर्ष पहले शुरू हुई परचम लाने की परंपरा कयामत तक निभाते रहेंगे.