नसीराबाद (अजमेर).केन्द्र सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन स्थानीय निकाय छावनी परिषद का सिविल एरिया (नागरिक क्षेत्र) समाप्त कर राज्य सरकार के म्युनिसिपल प्रबन्ध को सौंपने की मांग फिर जोर पकड़ती जा रही है. जिससे नसीराबाद छावनी क्षेत्र की जनता को ब्रिटिश हुकूमत के बनाये गये कायदे कानून से छुटकारा मिल सके. साथ ही आमजन को केन्द्र व राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.
छावनियों में सिविल एरिया समाप्त कर म्युनिसिपल प्रबन्ध राज्य सरकार को सौंपने को लेकर यायिका दायर
नसीराबाद कस्बे के एडवोकेट व छावनी बोर्ड वित्त समिति के पूर्व चेयरमैन अशोक जेन ने सर्वोच्च न्यायालय के ग्रिवियन्स पोर्टल के माध्यम से जनहित में याचिका पेश की है. याचिका में छावनी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विस्तृत विवेचन कर ब्रिटिश हुकूमत में बनाये गए अनुचित कानून को असंवेधानिक घोषित किए जानें की मांग की है.
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याचिका में बताया कि कैंटोनमेंट एक्ट 2006 के कानुन से भी अंग्रेजों के बनाये कायदे-कानूनों को नागरिक क्षेत्र में और ज्यादा सख्ती से लागू कर दिया गया है. जिसके परिणाम स्वरूप नसीराबाद छावनी के लोग अपनी सम्पत्तियों के बेचान की रजिस्ट्री भी नहीं करवा पा रहे हैं. साथ ही बैंकों ने सामयिक बन्धक रखकर लोन देना भी बन्द कर दिया है. राज्य सरकार का 1950 का किराया कानून समाप्त हो जाने के आधार पर न्यायालय ने 2003 के बाद प्रस्तुत सभी बेदखली के मुकदमें निरस्त कर दिये हैं और केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा जारी जन कल्याणकारी योजनाओं से यहां के लोग अभी भी वंचित हैं. यह भारत के संविधान के अन्तर्गत प्राप्त समानता के सर्व मान्य मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है .