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विकास ऐसा होना चाहिए जिससे सबका कल्याण सुनिश्चित हो सके: राज्यपाल कलराज मिश्र

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Published : Dec 19, 2020, 12:49 PM IST

उदयपुर में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन हुआ. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र थे. राज्यपाल ने प्रारंभ में संविधान की उद्देशिका और मूल कर्तव्य का वाचन करवाया.

उदयपुर में अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस, International Virtual Conference in Udaipur
उदयपुर में अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस

उदयपुर.अंतरराष्ट्रीय भौगोलिक यूनियन और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 'वैश्विक से स्थानीय संपोषणीयता और भावी पृथ्वी' विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान के राज्यपाल और सुविवि के कुलाधिपति कलराज मिश्र थे. राज्यपाल ने प्रारंभ में संविधान की उद्देशिका और मूल कर्तव्य का वाचन करवाया.

उदयपुर में अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस

राज्यपाल कलराज मिश्र ने इस कांफ्रेंस के विषय को काफी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बताया. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस ने विश्व को यह सीख दी है कि वैश्वीकरण में विकास जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है स्थानीय स्तर पर स्थिरता और प्राकृतिक संतुलन सुरक्षा बनाए रखना. इस महामारी ने संदेश दिया है कि सूक्ष्म सा वायरस भी हमारे जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकता है.

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इस महामारी के चलते विश्व भर में कठोर प्रतिबंध लगाने पड़े. जिससे सामाजिक जीवन एवं औद्योगिक गतिविधियां थम गई. उन्होंने कहा कि हमने सूचना एवं संचार और वैज्ञानिक विकास में नई ऊंचाइयां प्राप्त कर ली है, लेकिन इनके विपरीत प्रभावों से अभी भी अनजान है. राज्यपाल ने कहा कि सतत विकास दुनिया के लिए जरूरी है, लेकिन हमें यह सोचना होगा कि ऐसा विकास स्थाई नहीं हो सकता जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएं और ना ही ऐसा विकास हमारी प्राथमिकता हो सकता है. विकास ऐसा होना चाहिए जिससे सबका कल्याण सुनिश्चित हो सके.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की नियम आधारित, न्याय संगत और बहुपक्षीय सहयोग पर आधारित हिस्सेदारी का उल्लेख किया. उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है और पिछले कुछ वर्षों में भारत में वनाच्छादित क्षेत्र में वृद्धि हुई है. उन्होंने याद दिलाया कि भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है और एक दशक से कम समय में हम चीन को पीछे छोड़ देंगे. विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या के मामले में हम सबसे बड़ी जनसंख्या है.

उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण समय की जरूरत है, इससे विचारों, कौशल, वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता है, लेकिन वैश्वीकरण में समर्थ, गरीब और अधिक गरीब होता जाता है. उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि वैश्वीकरण का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब हमारे पास संसाधन हो और जोखिम का उचित प्रबंधन हो.

राज्यपाल ने वैश्वीकरण की अवधारणा को समझाते हुए कहा कि विश्व का एकीकरण ही वैश्वीकरण है. यह शब्द हाल ही में प्रचलन में आया है, लेकिन प्राचीन भारतीय संस्कृति वैश्वीकरण से जुड़ी रही है. जहां वसुधैव कुटुंबकम की भावना व्याप्त है. वसुदेव कुटुंबकम केवल मानव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पेड़-पौधे पशु-पक्षी भी सम्मिलित होते हैं. राज्यपाल ने इस बात पर सावधान रहने को कहा कि कहीं कोई देश वैश्वीकरण के नाम पर हमारी अस्मिता और मानव संसाधन को चोट ना पहुंचाएं. उन्होंने वैश्वीकरण की हानियों पर विस्तार से प्रकाश डाला. राज्यपाल ने कांफ्रेस की स्मारिका का भी विमोचन किया.

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कार्यक्रम के मुख्य वक्ता दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर आरबी सिंह ने अपने भाषण की शुरुआत में वर्ष 2015 का जिक्र किया कि जब तीन महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौते हुए थे. जिनमें पेरिस समझौता, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क और सतत विकास लक्ष्य 2030 शामिल है. उन्होंने भारत में सतत विकास की रणनीति के संबंध में इस कांफ्रेंस का महत्व बताया है. उन्होंने कहा किया कॉन्फ्रेंस सतत विकास के भौगोलिक आयामों पर केंद्रित है. उन्होंने एक ऐसी अप्रोच की आवश्यकता बताई जो समाधान केंद्रित, सही और घरेलू हो और स्मार्ट भी. वर्तमान सरकार द्वारा प्रारंभ की पहलों जैसे भावी पृथ्वी दृष्टिकोण और भावी दृष्टिकोण में विज्ञान, तकनीकी एवं नवाचार के क्षेत्र में कार्यरत अकादमिक व्यक्तियों और स्थानीय नीति निर्माताओं की भागीदारी के साथ क्षमता निर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कुछ शब्द दिए जिन पर, उन्होंने उम्मीद जताई, कि कॉन्फ्रेंस में चर्चा होगी जैसे लोग, गरीबी और भुखमरी, शांति, साझेदारी और ग्रह. उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य नेट शून्य कार्बन उत्सर्जन होना चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में इस ओर बेहतर काम हो रहा है. उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि हम नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में लक्ष्य को तेजी से प्राप्त कर रहे हैं और परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी धीरे धीरे कम हो रही है.

इसके अलावा उन्होंने जलवायु रोधी या क्लाइमेट रेसिलियंट आधारभूत संरचना पर जोर दिया. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि नवाचार और व्यवहार में परिवर्तन के माध्यम से इस क्षेत्र में सफलता मिल सकती है. उन्होंने भारत की भौगोलिक विविधता का जिक्र करते हुए बताया कि एक और उत्तर में हिमालय पर्वत है, तो दूसरी और दक्षिण में प्रायद्वीप. ऐसी ही विविधता अन्य भौगोलिक संरचना में भी देखने को मिलती है.

कार्यक्रम में सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमेरिका सिंह ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि सुखाड़िया विश्वविद्यालय में वर्तमान में 11 संकाय, 50 विभाग एवं 53 पाठ्यक्रम चल रहे हैं. विश्वविद्यालय में वर्तमान में 1 लाख 90 हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. प्रोफेसर अमेरिका सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय में वर्तमान में 94 प्रोजेक्ट चल रहे हैं और अनेक संस्थाओं के साथ एमओयू किए गए हैं. उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अधिकांश देशों का यह मत है कि भारत में वन आच्छादन में 5128 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है और भारत का कार्बन उत्सर्जन विश्व के औसत से काफी कम है.

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उन्होंने अंतरराष्ट्रीय भौगोलिक यूनियन के इस क्षेत्र में प्रयासों की सराहना की. अंतरराष्ट्रीय भौगोलिक यूनियन के अध्यक्ष केपटाउन विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं भौगोलिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर माइकल मीडोज ने आयोजन अध्यक्ष प्रोफेसर साधना कोठारी में अपने उद्बोधन में इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस का महत्व बताया. उन्होंने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस में 35 से अधिक देशों के 750 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है. इस वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में 15 तकनीकी सत्र एवं 6 कमीशन पैनल होंगे.

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