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स्पेशल रिपोर्ट: संत शिरोमणि फूलाबाई ने महज 36 साल की उम्र में ली थी समाधि, लोगों से सुनिए उनके चमत्कार

नागौर की धरती पर कई ऐसे संत और महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में ऐसे काम भी किए जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं. आज भी यहां के जनमानस में उनकी अमिट छाप है. आज भी लोगों की इन संत-महापुरुषों में और उनके चमत्कारों में अटूट श्रद्धा दिखाई पड़ती है. ऐसी ही एक संत यहां मांझवास गांव में हुई संत फूलाबाई. यहां गांव में उनका मंदिर बना हुआ है. जहां दूर-दराज से भी श्रद्धालु अपनी मनौती लेकर आते हैं, देखिए नागौर से स्पेशल रिपोर्ट...

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संत शिरोमणि फूलाबाई

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Published : Feb 6, 2020, 11:40 PM IST

नागौर. भक्त शिरोमणि मीरा बाई ने नागौर को देशभर में एक अलग पहचान दिलाई है. उनके अलावा भी नागौर की इस धरती पर ऐसे संत और महापुरुष हुए हैं. जिनके प्रति जनमानस में आज भी अटूट श्रद्धा है. ऐसी ही एक भक्त यहां मांझवास गांव में हुई. संत शिरोमणि फूलाबाई. आज से करीब 380 साल पहले नागौर जिले के मांझवास गांव में फूलाबाई का जन्म हुआ. कहा जाता है कि उन्होंने बाल्यकाल से ही राम नाम का जप शुरू कर दिया था. इसका असर यह हुआ कि जल्द ही उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी और दूर-दराज से भी लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके समाधान के लिए फूलाबाई के पास आने लगे.

स्पेशल रिपोर्ट

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फूलाबाई को लेकर ग्रामीण अंचल में किवदंती
नागौर के ग्रामीण अंचल में एक किवदंती है कि जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह ने एक बार जसवंतगढ़ से जोधपुर जाते समय फूलाबाई से मुलाकात की. उनके साथ उनका पूरा लवाजमा और सेना भी थी. फूलाबाई ने उनसे भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि मैं अकेला नहीं हूं, सैनिक और लवाजमा भी साथ है. तब फूलाबाई ने कहा कि वे सबको भोजन करवाएंगी. इसके बाद राजा और उनके सभी सैनिकों ने भोजन किया, तब भी फूलाबाई की रसोई में भोजन खत्म नहीं हुआ. फिर सैनिकों और उनके घोड़ों की प्यास बुझाने के लिए लिए फूलाबाई ने एक गड्ढा खोदा और उसके पानी से सबकी प्यास बुझाई.

संत शिरोमणि भक्त फूलाबाई का मंदिर

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36 साल की उम्र में फूलाबाई ने ली थी समाधि
फूलाबाई के जीवन से जुड़ी एक किवदंती यह भी है कि जब परिजनों ने उनकी इच्छा के खिलाफ उनकी शादी तय कर दी और बारात उनके घर तक पहुंच गई, तो वहां कई फूलाबाई दिखाई देने लगी. इसके बाद बारात लौट गई और सभी उनके चमत्कार को मानने लगे. फूलाबाई ने आज से 344 साल पहले महज 36 साल की उम्र में जिंदा समाधि ली थी. जहां फूलाबाई ने समाधि ली थी, वहां जोधपुर के राजा जसवंतसिंह ने एक छतरी बनाई थी.

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फूलाबाई का भव्य मंदिर, मनौती लेकर आते है श्रद्धालु
आज से करीब 40 साल पहले तक यह जगह सुनसान और वीरान थी, लेकिन ग्रामीणों ने इस जगह की कायापलट का बीड़ा उठाया और आज यहां भव्य मंदिर है. जहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती है और दूर-दराज से आज भी श्रद्धालु अपनी मनौती लेकर यहां पहुंचते हैं. आज फूलाबाई की बरसी पर मांझवास में उनकी समाधिस्थल पर मेला भी भरा. फूलाबाई ने प्रभु की भक्ति के साथ ही जीव रक्षा, पर्यावरण संरक्षण और नशामुक्ति का संदेश भी दिया था. यही कारण है कि आज भी मांझवास के लोग पौधे लगाने में आगे हैं और फूलाबाई की समाधि पर आने वाले भक्त अपने साथ कुछ अनाज भी लाते हैं. जो पक्षियों के चुग्गे के काम आता है.

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