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कोटा में 13 दिन के जुड़वा नवजात की दुर्लभ बीमारी का सफल ऑपरेशन, डॉक्टरों का दावा- देश में पहला मामला

मेडिकल कॉलेज कोटा में सोमवार को चिकित्सकों ने सिंड्रोमिक जुड़वा नवजात बच्चों का दुर्लभ ऑपरेशन किया. ऑपरेशन के बाद बच्चे अब स्टेबल हैं और शिशु रोग विभाग के चिकित्सकों के अधीन उनका इलाज जारी है.

मेडिकल कॉलेज कोटा, kota latest news

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Published : Oct 7, 2019, 6:10 PM IST

कोटा. मेडिकल कॉलेज कोटा के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने 13 दिन के सिंड्रोमिक जुड़वा नवजात शिशुओं का दुर्लभ ऑपरेशन किया है. ऑपरेशन करने वाले चिकित्सकों ने दावा किया है कि देश में इस तरह का यह पहला मामला है. दोनों जुड़वा बच्चों को कम्युनिकेटिंग हाइड्रो केफल्स बीमारी थी, जिससे उनका सिर बढ़ गया था और उसमें पानी भरा हुआ था.

कोटा में जुड़वा बच्चों का सफल ऑपरेशन

जानकारी के अनुसार मंडाना की रहने वाली गुजरी बाई ने गत 22 सितंबर को जेकेलोन अस्पताल में ऑपरेशन से जुड़वा लड़कों को जन्म दिया था. जन्म के बाद नवजात एवं शिशु रोग विभाग के सहायक आचर्य डॉक्टर गोपि किशन शर्मा के निरीक्षण करने पर दोनों बच्चों के सिर का असामान्य रूप से बड़ा होना पाया. जिसके बाद बच्चों की सिटी स्कैन जांच करवाई गई. जिसमें उनके दिमाग में पानी की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई और इसके लिए उनको न्यूरो सर्जरी विभाग में दिखाया गया.

न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. एसएन गौतम ने जांच में पाया कि बच्चों के दिमाग में कम्युनिकेटिंग हाइड्रोसिफेलस बीमारी है. वहीं, इस तरह की जन्मजात बीमारी का यह देश में पहला केस है, जिसमें जुड़वा नवजात बच्चों को जन्मजात इस तरह की बीमारी पाई गई. इसमें बच्चों के दिमाग में पानी की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से सिर बड़ा हो गया था. इस बीमारी के कारण बच्चे का मानसिक, शारीरिक और दिमागी रूप से विकास रुक जाता है.

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'शंटिंग' से किया ऑपरेशन...

डॉ. गौतम ने बताया कि बच्चों का गत 5 अक्टूबर को एमबीएस हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग में ऑपरेशन करके वेंट्रीक्यूलोपेरिटनियल शंटिंग डाला गया. इसमें सिर के पानी को नली के जरिए पेट में डाला गया था ताकि वो अब्जॉर्ब हो सके. ऑपरेशन के बाद बच्चे अब स्टेबल हैं और शिशु रोग विभाग के चिकित्सकों के अधीन उनका उपचार जारी है.

13 दिन के बच्चे को बेहोशी की दवा देना चैलेंज...

चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों के ऑपरेशन में काफी चैलेंज था, क्योंकि बच्चों का वजन 2.5 और 2.7 किलो था. अधिकांश वजन उनके सिर में ही था और 13 दिन के बच्चे के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं. ऐसे में उन्हें बेहोश करना एक बड़ा चैलेंज था. ऑपरेशन में निश्चेतना विभाग की सहायक आचार्य डॉक्टर सीमा मीणा और न्यूरो सर्जरी के रेजिडेंट शिव अरोरा शामिल थे. चिकित्सकों का दावा है कि ऑपरेशन से शंट और एंडोस्कोपिक थर्ड वेंट्रिकुलोस्टोमी से समय रहते इलाज होने पर 60 फीसदी बच्चे सामान्य जीवन जी पाते हैं.

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