कोटा. प्रदेश के सबसे बड़े अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क को अब विजिटर्स के लिए खुलने का इंतजार है. 110 हेक्टेयर में बना यह पार्क बनकर तैयार हो गया है. पहले फेज में इसमें 20 करोड़ का निर्माण किया गया है. विजिटर्स के लिए इसमें काफी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं.
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में विजिटर्स साइकिल से सैर कर पाएंगे. इसके अलावा पोलोकार्ट की भी सुविधा होगी. पार्क में करीब 1 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी दूरी का ट्रैक बना हुआ है. इसमें वन्यजीवों के लिए 13 एंक्लोजर बना दिए गए हैं. अधिकांश वन्यजीवों को कोटा जू से शिफ्ट कर दिया गया है.
कोटा में जल्द शुरू होगा अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क कोटा के एससीएफ वन्यजीव तरुण मेहरा ने बताया कि कोटा जू से वन्यजीव की शिफ्टिंग लगातार चल रही है. अब तक चीतल, सांभर, काला हिरण, नीलगाय, भेड़िया, पैंथर का जोड़ा, लकड़बग्घा व सियार को शिफ्ट किया जा चुका है. जबकि सज्जनगढ से शेर और नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से टाइगर और लॉयन का जोड़ा लाने की बात चल रही है. साथ ही असम से हिमालयन भालू को भी कोटा लाया जाएगा. इसके अलावा कई तरह के अन्य जलीय जीव यहां छोड़े जा चुके हैं. बायोलॉजिकल पार्क को अक्टूबर महीने में शुरू करना प्रस्तावित है, लेकिन अभी इसके उद्घाटन की तारीख तय नहीं हुई है.
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वन्यजीव और पर्यटकों को मिलेगा प्राकृतिक वातावरण
बायोलॉजिकल पार्क के निर्माण का कार्य देख रहे एसीएफ अनुराग भटनागर ने बताया कि वन्यजीव के साथ-साथ पर्यटकों को भी प्राकृतिक वातावरण मिलेगा. पार्क की दीवारों को रंगने का काम चल रहा है. दीवारों पर वन्यजीवों के चित्र होंगे. हर तरफ हरियाली नजर आएगी. कोशिश है कि वन्य जीवों को जंगल जैसा माहौल मिले. इसके लिए पार्क में हजारों पेड़ लगाए गए हैं, ताकि पूरे एरिया में हरियाली रहे. पार्क में 35 तरह के पेड़ पौधे लगाए हैं. इनमें नीम, अर्जुन, बड़-पीपल, करंज और धोक शामिल हैं.
साइकिल और पोलोकार्ट के लिए होगा टेंडर
इस पूरे बायोलॉजिकल पार्क को सीसीटीवी कैमरों की जद में लिया जाएगा, ताकि सुरक्षा के लिहाज से पर्यटकों पर भी नजर रखी जा सके. कोई पर्यटक वन्यजीव के पिंजरों की तरफ न जाए और अन्य अवांछनीय में गतिविधियां न हों, इस पर निगरानी रखी जाएगी. विजिटर्स के लिए कैफेटेरिया और सुविधाएं विकसित की गई हैं. जल्द ही बायोलॉजिकल पार्क में साइकिल और पोलोकार्ट किराए पर संचालित कराने के लिए टेंडर निकाला जाएगा. इसके अलावा कैफेटेरिया का भी टेंडर कर दिया गया है.
भारतीय विजिटर्स के लिए सस्ता होगा टिकट
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में विजिट के लिए भारतीय विजिटर के लिए 30 रुपये का शुल्क प्रति दर्शक तय किया जा सकता है. विदेशी पर्यटकों के लिये यह 300 रुपए तक हो सकता है. टिकट दरें तय करने के लिए वन विभाग ने प्रस्ताव उच्चाधिकारियों को भेज दिया है. वन अधिकारियों का कहना है कि जोधपुर के माचिया व उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में भी इसी तरह से शुल्क लिया जा रहा है. ऐसे में कोटा में भी यह दर ली जाएगी. साथ ही पर्यटकों को पार्किंग का शुल्क अलग से देना होगा. साइकिल और पोलोकार्ट से भ्रमण के लिए अलग शुल्क देना होगा.
बायोलॉजिकल पार्क में आएंगे विदेशी वन्यजीव
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दूसरे चरण का काम पूरा होने के बाद यह पार्क अन्य बायोलॉजिकल पार्क से अलग नजर आएगा. बेंगलुरु, हैदराबाद, उड़ीसा और दक्षिण भारत के बायोलॉजिकल पार्क की तर्ज पर विदेशी वन्यजीव भी यहां पर लाए जाएंगे. जिनमें जिराफ, जेबरा, वाइट टाइगर, लायन टेल्ड मकाक, चिंपांजी व ऊदबिलाव शामिल है. बड़े तालाब को भी इस बायोलॉजिकल पार्क में जोड़ते हुए यहां कई तरह के जलीय पक्षी बसाए जाएंगे.
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31 एंक्लोजर बनना बाकी
बायोलॉजिकल पार्क का पहले चरण का काम पूरा हो चुका है. दूसरे चरण में 31 एंक्लोजर बनने हैं. पार्क में एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक और ऑफिस बनकर तैयार हैं. वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए रेजिडेंशियल एरिया भी बनेगा. पहले चरण बजट राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना के तहत मिला था, सेकंड फेज के बजट के लिए अभी यह तय नहीं हो पाया है कि बजट कहां से जारी होगा. बजट के लिए बीते 6 से 7 महीने में विभाग के अधिकारी उच्च अधिकारियों से पत्र व्यवहार कर रहे हैं.
110 हेक्टेयर में पार्क तैयार बंद होगा कोटा जू, चलेगा रेस्क्यू सेंटर
कोटा जू में अब जानवर नहीं रहेंगे. कोटा जू जल्द ही विजिटर्स के लिए बंद हो जाएगा. लोगों को अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में ही वन्यजीव देखने को मिलेंगे. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोटा जू को रेस्क्यू सेंटर के रूप में काम में लिया जाएगा. क्योंकि हर महीने यहां पर 50 से 60 जानवर रेस्क्यू कर लाए जाते हैं, जो किसी हादसे या श्वान के हमले में घायल हो जाते हैं.
कोटा जू में ज्यादातर नील गाय व मोर रेस्क्यू के लिए आते हैं. जिनको यहां रखकर उनका उपचार किया जाता है. जब वे ठीक हो जाते हैं तो उन्हें वापस जंगल में छोड़ कर दिया जाता है.