जोधपुर.राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस विनीत कुमार माथुर ने चिकित्सक भर्ती मामले की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए आरक्षित वरीयता सूची में ओबीसी वर्ग में से आवश्यकता होने और सूची के अस्तित्व में रहने तक याची की अभ्यर्थिता कंसीडर करने के आदेश दिए है.
याची को अभ्यर्थिता कंसीडर करें याचिकाकर्ता डॉ. मोहम्मद यासर की ओर से वीसी से पैरवी करते हुए अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने कहा कि याचिकाकर्ता सराहनीय अभ्यर्थी है. ओबीसी वर्ग में आरक्षित वरीयता सूची में भी स्थान रखता है और नियमानुसार वेटिंग लिस्ट/ आरक्षित सूची का अस्तित्व 1 वर्ष रहता है.
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राज्य सरकार की ओर से उप राजकीय अधिवक्ता ने कोई लिखित जवाब नहीं दिया और विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया कि याची से कम प्राप्तांक वाले किसी को भी नियुक्ति नहीं दी गई है और भविष्य में आवश्यक होने पर याची को उसकी मेरिट अनुसार काउंसलिंग में बुला लिया जाएगा.
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार और राजस्थान आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय को आदेश दिया है कि वरीयता सूची के अस्तित्व में रहते हुए आवश्यक अनुसार जरूरत होने पर चिकित्सक पद पर ओबीसी वर्ग में नियुक्ति हेतु याची को कंसीडर करें.
जोधपुर निवासी डॉ. मोहम्मद यासर ने अधिवक्ता यशपाल खिलेरी के जरिए हाइकोर्ट में याचिका दायर की और बताया कि दिनांक 03.10.2019 को चिकित्सा विभाग ने राजस्थान आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के जरिए कुल 737 पदों हेतु विज्ञप्ति जारी की और याची ने भी इसमें भाग लिया.
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याची के कुल 57 अंक प्राप्त हुए. विभाग द्वारा नियुक्ति आदेश जारी करने के बावजूद करीब 300 चिकित्सकों ने ज्वाइन नहीं करने पर विश्वविद्यालय ने वरीयता सूची में से दिनांक 14.05.2020 को दस्तावेज सत्यापन हेतु अभ्यर्थियों को बुलाया, लेकिन ओबीसी कोटे से किसी भी अभ्यर्थी को नहीं बुलाने पर याची ने याचिका पेश की है.
याची की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने बताया कि जब सभी अभ्यर्थियों को काउंसलिंग में बुलाया गया है, तो ओबीसी वर्ग को वंचित रखना असंवैधानिक और विधि विरुद्ध है. पूर्व में ओबीसी वर्ग को प्राप्तांक 57 तक बुलाया जा चुका है और याची ने भी 57 अंक प्राप्त किए है.
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याची की ओर से बताया गया कि वर्तमान में कोरोना महामारी में चिकित्सकों की भारी कमी हैं, फिर भी राज्य सरकार ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय कर रही हैं. याची का स्थान आरक्षित सूची में प्रथम स्थान पर होने के बावजूद उसे नियुक्ति नहीं देना गैर कानूनी है. जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.