जयपुर.प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण के बाद तमाम व्यवसाय तो प्रभावित हुए ही हैं. साथ ही देश के भविष्य वे स्टूडेंट भी प्रभावित हुए हैं, जिनकी परीक्षाएं नहीं हुईं थीं. लॉकडाउन के कारण परीक्षाएं कब होंगी, अभी कुछ तय नहीं किया गया है. स्कूलों की बात करें तो बोर्ड परीक्षाओं को छोड़कर बाकी सभी कक्षाओं के स्टूडेंट्स को अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया गया है. लेकिन यह स्थिति विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में नहीं है.
ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन 60 में से 30 ही आते हैं टीचर वहां परीक्षाएं हुए बिना अगली कक्षा में प्रमोट किया जाना संभव नहीं है. ऐसे में अब सरकार के आदेशों के बाद तमाम विश्वविद्यालय और महाविद्यालय ऑनलाइन ही अपने स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं, ताकि उनका कोर्स कंप्लीट करवाए जा सके. लेकिन ऐसा नहीं है कि यह काम हर जगह सही से चल रहा हो. प्राइवेट यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में तो ऑनलाइन पढ़ाई सुचारू रूप से चल रही है. क्योंकि प्राइवेट यूनिवर्सिटी में प्रबंधन का अपने स्टॉफ पर पूरा कंट्रोल होता है, लेकिन सरकारी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इस काम में दिक्कत आ रही है.
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बात करें जोबनेर के श्री करण नरेंद्र एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय की तो वहां भी ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जा रही है. हर कक्षा में 60 से ज्यादा बच्चे 40 मिनट की एक क्लास जूम एप के माध्यम से एक साथ ले लेते हैं. जहां पर रिमोट एरिया में नेटवर्क की समस्या है, वह व्हाट्सएप ग्रुप पर लिंक भेज दिया जाता है. लेकिन इस विश्वविद्यालय के डीन की माने तो सब कुछ आसानी से नहीं हो रहा है, क्योंकि इस विश्वविद्यालय के जोबनेर कैंपस में करीब 60 फैकल्टी हैं, जिनमें से आधी फैकल्टी ऐसी है. जो रोजाना जोबनेर से जयपुर अप डाउन करते हैं.
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विश्वविद्यालय के डीन इस मामले में काफी असहाय नजर आते हैं और साफ तौर पर सरकार से यह अपील करते दिखाई दे रहे हैं कि रोजाना अप डाउन करने वाले टीचर्स पर अब पाबंदी लगाई जाए. खास बात यह है कि विश्वविद्यालय के कुलपति की ओर से भी बार-बार यह निर्देश दिए गए की टीचर अप डाउन न करें. लेकिन स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं. विश्वविद्यालय के डीन डॉक्टर जीएस बंगरवा का कहना है कि एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय में टेक्निकल डिग्री दी जाती है. यहां 4 घंटे की पढ़ाई नहीं होती कि 10 बजे आकर कोई टीचर 5 बजे घर चला जाए. इस कैंपस में डेयरी, पोल्ट्री, लैबोरेट्री, एक्सपेरिमेंट फील्ड और एक्सपेरिमेंट लेबोरेटरी दोनों होते हैं. ऐसे में टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टॉफ के डेली अप डाउन से बच्चों की पढ़ाई खराब हो रही है।.
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उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि आज अगर टीचर जयपुर की जगह विश्वविद्यालय कैंपस में रह रहे होते तो केवल कुछ टीचर ही ऑनलाइन प्रशिक्षण न दे रहे होते. बल्कि सभी प्रोफेसर की क्लास बच्चों को मिल रही होती. उन्होंने राज्य सरकार से अपील किया है कि कुलपति के आदेश के बावजूद भी ये प्रोफेसर नहीं मान रहे हैं. ऐसे में सरकार इस समस्या की ओर ध्यान दें, ताकि बच्चों की पढ़ाई डिस्टर्ब न हो.
अप डाउन की समस्या आज की नहीं, कई सालों से चलती आ रही
साल 2000 में जोबनेर स्थित सेंटर स्कूल बंद हुआ था, जिसके चलते टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टॉफ ने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए डेली अप डाउन का सिलसिला शुरू किया था. अप डाउन की समस्या इस विश्वविद्यालय में आज की नहीं है, बल्कि साल 2000 में जब जोबनेर में स्थित सेंटर स्कूल बंद हो गया था. उसके बाद इस कॉलेज के टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ ने कॉलेज प्रबंधन के सामने अपनी यह समस्या रखी थी कि सेंट्रल स्कूल बंद होने से वह अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे हैं. ऐसे में उन्हें रोजाना जयपुर से जोबनेर की अप डाउन की परमिशन दी जाए.
उस समय यह मामला सही भी था, ऐसे में टीचर्स को परमिशन दे दी गई. लेकिन अब उन बातों को करीब 20 साल हो चुके हैं और हर स्टॉफ का बच्चा स्कूली शिक्षा पास कर चुका है. बावजूद उसके भी टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टॉफ नहीं मान रहा है और लगातार डेली अप डाउन कर रहा है. ज्यादातर स्टॉफ के जयपुर में मकान हैं. जहां पर वे रह रहे हैं. खास बात यह है कि कुछ स्टॉफ तो ऐसा हैं जो एचआरए भी जोबनेर में रहने का उठा रहे हैं. उसके बावजूद भी वे रोजाना अपने घर जयपुर चला जाता है. ऐसे में अब सरकार के साथ ही सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति राज्यपाल कलराज मिश्र भी इस मामले को देखें तो शायद बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बेहतर हो सके.