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Special : गुलाबी नगरी के 'लहरिया' के बिना फीका है सावन का 'तीज'

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Published : Jul 22, 2020, 10:48 AM IST

राजस्थान और राजस्थानी संस्कृति से जुड़े लोगों के लिए लहरिया सिर्फ कपड़े पर उकेरा गया डिजाइन या स्टाइल भर नहीं है. इसकी रंग-बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो सारे रंग समेटे हैं, जो यहां के जनजीवन का अटूट हिस्सा है. यहां सावन में लहरिया पहनना शुभ माना जाता है. आज भी गांव ही नहीं शहरी संस्कृति में भी लहरिया के रंग-बिरंगे परिधान अपनी जगह बनाए हुए हैं. लहरिया की रंगबिरंगी साड़ी या ओढ़नी आज भी महिलाओं के मन को खूब भाती है. देखें यह रिपोर्ट...

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गुलाबीनगरी के 'लहरिया' बिन फीका है सावन की तीज का पर्व

जयपुर.सावन का महीना, रिमझिम बारिश रोमांटिक मौसम. गीतकारों और शायरों ने रिमझिम फुहारों पर अनेक गीतों की रचना करके प्यार के विभिन्न रूपों को खूबसूरती दी है. हरियाली की चादर ओढ़े जहां धरती सजती है, वहीं सावन में महिलाओं के लिए लहरिए सज जाते हैं. भारतीय संस्कृति में लहरिए का बहुत महत्व है. ये सौभाग्य और सुकून का प्रतीक माने जाते हैं. सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग शुभ माना जाता है. इस हरे रंग को प्रकृति के उल्लास से भी जोड़ा गया है. राजस्थान में आज भी राजसी-घरानों से लेकर आम परिवारों तक लोक संस्कृति की पहचान लहरिया के रंग बिखेरे हुए हैं.

गुलाबीनगरी के 'लहरिया' बिन फीका है सावन की तीज का पर्व

मान्यता है कि जब सावन में महिलाएं कच्चे रंग का लहरिया ओढ़कर जाती हैं और पानी बरसता है, तो उसका रंग यदि विवाहिता की मांग में उतरता है, तो उसे बेहद शुभ माना जाता है. हमारी संस्कृति में यह रिवाज है कि बहू-बेटियों की मान मनुहार के लिए उन्हें लहरिया लाकर दिया जाता है. हरियाली तीज के अवसर पर महिलाओं की पहली पसंद ही लहरिया होती है.

हरियाली तीज का महत्व

शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था. जिस कारण इस दिन का खास महत्व माना जाता है. इसे छोटी तीज या श्रावण तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती हैं. ये खास त्योहार इस बार 23 जुलाई को है.

पहले जहां तीज और विशेष मौके पर ही लहरिया को पहना जाता था, लेकिन अब रूटीन में भी युवतियां और महिलाएं लहरिया पहनती हैं, क्योंकि इसका क्रेज सबसे ज्यादा है. तीज के नजदीक वस्त्र विक्रेताओं की लहरियां से सजी दुकानें ऐसे मोहक चित्र प्रस्तुत करती हैं. जैसे वो कोई व्यापारिक फर्म नहीं, बल्कि कला दीर्घा हो.

लहरिया परिधान में सज्ज महिलाएं

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लहरिया विक्रेता बताते हैं कि सावन के लिए बाजार में कई वैरायटी और अलग-अलग रंगों में लहरिया की साड़ियां, सूट और ओढ़नी आ जाते हैं. जितनी बारीक बंधेज हो लहरिए की कीमत उतनी ज्यादा हो जाती है. सावन महीने में लहरिया की मांग बढ़ गई है. प्योर जार्जेट के लहरिए की साड़ियों की मांग भी काफी है, जबकि मल्टीकलर और डिजाइनर लहरिए सबसे ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं.

कोरोना की वजह से थोड़ा-बहुत हो रहा घाटा

वहीं कोरोना महामारी का असर लहरिया विक्रताओं पर भी पड़ा है. जहां पहले तीज त्यौहार के समय बाजार में महिलाओं की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन इस बार इतना क्रेज नहीं है. इसके अलावा कुछ महिलाएं मास्क लगा और सैनिटाइजर लिए दुकानों तक जरूर पहुंच रही हैं.

विवाहिता के मेहंदी लगाती महिला

ये है लहरिए की कीमत

इस बार लहरिए की साड़ी 600 रुपए से लेकर 15 हजार रुपए तक और प्योर जार्जेट व प्योर शिफॉन लहरिये की साड़ी 4 हजार रुपए तक में आ रही है. अभी विस्कोस शिफॉन की लहरिये की साड़ियां सबसे ज्यादा प्रचलन में है. वहीं लहरिए की कुर्तियां भी ज्यादा सेल हो रही हैं.

हालांकि कोरोना के ख़ौफ़ के चलते इस बार लहरिया खरीदने को लेकर उत्साह कम देखने को मिल रहा है, लेकिन कुछ तबके अभी भी ऐसे है जो अपनी संस्कृति के परिधानों को कोरोना में भी नहीं भूल रहे हैं. यही वजह है कि गरीब तबके की महिलाओं के साज श्रृंगार में कमी ना रहे, इसके लिए 150 से 300 रुपए तक के लहरिये भी बाजारों में उपलब्ध है.

महिलाओं की पहली पसंद है लहरिया

सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है और आज भी है. यह त्यौहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है. आशा करते है कि आप सभी के लिए ये तीज का त्यौहार ढेरों खुशियां लेकर आए.

पूजा का शुभ मुहुर्त

श्रावण तृतीया की तिथि 22 जुलाई को शाम 07 बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और 23 जुलाई को शाम 05 बजकर 02 मिनट तक रहेगी. इस दौरान 23 की सुबह सुविधानुसार पूजा करना श्रेष्ठ रहेगा.

हरियाली तीज पर महिलाएं अपने पति के रखेंगी व्रत

पूजन विधि:

व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठ कर स्‍नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद मन में पूजा करने का संकल्प लें और 'उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये' मंत्र का जाप करें. कई जगह इस दिन पूजा करने से पहले काली मिट्टी से भगवान शिव और मां पार्वती तथा भगवान गणेश की मूर्ति बनाई जाती है. फिर थाली में सुहाग की सामग्रियों को सजा कर माता पार्वती को अर्पण किया जाता है.

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इसके बाद भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं. फिर तीज की कथा सुनी जाती है. इस दिन महिलाएं एकत्रित होकर किसी बाग या मंदिर में जाकर मां पार्वती की प्रतिमा को रेशमी वस्त्र और गहनों से सजाती हैं. इसके बाद अर्द्ध गोले का आकार बनाकर माता की मूर्ति बीच में रखकर पूजा करती हैं. पूजा के बाद महिलाएं अपनी सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं. सास न हो पर ये सुहागी जेठानी या घर की बुजुर्ग महिला को देती हैं.

सावन हरियाली की तैयारियों में लगी महिलाएं

माता पार्वती की इन मंत्रों से करें अराधना

ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना के मंत्र:

ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:

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