जयपुर. एक अच्छा बेटा अपने माता पिता और बुजुर्गों की देखभाल करके अपने दायित्व निभाता है. ठीक वैसे ही जैसे अमिताभ कौशिक. ये रिटायरमेंट के बाद 115 मांओं की देखभाल की जिम्मेदारी खुशी खुशी निभाते हैं. अब बुजुर्ग मांओं की सेवा को इन्होंने अपना धर्म मान लिया है. इनके समर्पण का तेज सीनियर सिटीजन्स के चेहरे पर भी दिखता है. मांओं के साथ ही अमिताभ बौद्धिक दिव्यांग बच्चों की भी सेवा में कोई कमी नही रखते हैं.
एक घटना जिसने बदल दिया लक्ष्य:कौशिक के पिता फ्रीडम फाइटर रहे हैं , माता 95 साल की संस्कृत की विद्वान हैं. अमिताभ कौशिक बताते हैं कि बचपन से समाज सेवा भाव मन में थी. गाहे बगाहे मानव सेवा का विचार आता ही रहता था. सोचा था कि कुछ तो करेंगे अशक्तों के लिए. समय बीतता गया. फिर वो दिन भी आया जिसने जीवन को बदल कर रख दिया. 2016 में बौद्धिक दिव्यांग गृह में कुछ बच्चों की खाने में गड़बड़ी की वजह से मौत हो गई थी. उस वक्त कौशिक मोती डूंगरी नगर निगम जोन में कमिश्नर थे. घटना की सूचना पर जामडोली से इस विशेष गृह पहुंचे तब इन बौद्धिक विशेष बच्चों को देखा. उनकी पीड़ा को समझा और तय कर लिया था कि रिटायरमेंट बाद इन्हीं बच्चों की देखभाल करेंगे. 2019 में जब रिटायर हुए तो उन्होंने इन विशेष जन बच्चों की सेवा के साथ-साथ एक वृद्ध आश्रम खोलने की भी अनुमति सरकार से मांगी. सरकार ने पहले फेज में 25 से मांओं के साथ वृद्धाश्रम खोलेन की अनुमति दी.
साथी ब्यूरोक्रेट्स का मिला साथ: अमिताभ बताते हैं कि शुरुआत में सरकार से 25 बुजुर्गों को रखने अनुमति दी थी , लेकिन बाद में हमारे काम, व्यवस्थाओं के साथ सेवाएं देख कर संख्या बढ़ा दी. आज हमारे पास 115 माओं का आशीर्वाद है. अमिताभ बताते हैं कि इस कार्य के लिए मौजूदा सरकार में फाइनेंस सेक्रेट्री अखिल अरोड़ा , आईएएस समित शर्मा , कुलदीप रांका सहित कई ब्यूरोक्रेट्स का सहयोग उन्हें मिल रहा है. इसके अलावा बाहरी समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके इस कार्य में सहयोग कर रहे हैं .
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सुविधा का खुद रखते हैं ख्याल:अमिताभ बताते हैं कि वैसे तो यहां का जो स्टाफ है वो चाहे बजुर्ग मां हो या फिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चे उनका अच्छे से ध्यान रखते हैं, लेकिन फिर भी वो जब भी कैम्पस में होते हैं तब खुद सभी सुविधाओं पर नजर रखते हैं. जो खाना इन माताओं और बच्चों को दिया जाता उसी में स्वयं खाते हैं, ताकि खाने की गुणवत्ता बनी रहे. बाकी व्यवस्थाओं की भी खुद मॉनेटरिंग करते है. अमिताभ की आंखें उनके इन बुजुर्गों और बच्चों की सेवा से मिले सुकून को बयां करती हैं.
कौशिक अपना ज्यादा समय बौद्धिक दिव्यांग बच्चों और इन बुजुर्ग माताओं के साथ बिताते हैं. चाहे पूजा पाठ का समय हो या फिर फिजिकल एक्सरसाइज. हर कार्य में वो इनकी साथ होते हैं, इतना ही नहीं बच्चों और माताओं को खुश करने के लिए उन्हें अपनापन महसूस कराने के लिए संगीत की धुनों पर थिरकते भी हैं. कहते हैं ये तो सिर्फ प्यार के भूखे हैं. इन्हें सिर्फ प्यार चाहिए और अगर आप इनके साथ इनके जैसा व्यवहार करेंगे तो खुद ही अपनापन महसूस होने लगेगा.
प्रकृति से भी जोड़ कर रखते हैं:अमिताभ कौशिक बताते हैं कि यहां वृद्धाश्रम में रहने वाली माताओं और इन विशेष बच्चों को नेचुरल एनवायरमेंट मिले इसका इंतजाम भी पक्का कर रखा है. कहते हैं खाली जगह में फलदार पौधे लगाए हुए हैं. खास बात ये कि हम इस कैंपस में बच्चों और माताओं को भी इससे सीधा जोड़ कर रखा है. इनके हाथों से पौधारोपण कराना, पौधों को पानी देना सब कुछ इनसे कराते हैं. ऐसा इसलिए ताकि ये भी खुद को नेचर से जुड़ा महसूस करें. धीरे-धीरे अब जो पौधे लगाए थे उनमें फल आने लगे हैं. अगले एक-दो साल में अनार , जामुन , नीबू सहित कई ऐसे पौधे जिन के फल आएंगे, इसकी खुशी भी मांओं और बच्चों के चेहरे से छलकती है.
आज वर्ल्ड सीनियर सिटिजंस डे: हर साल की तरह इस साल भी आज 21 अगस्त 2022 को पूरे दुनिया में वर्ल्ड सीनियर सिटिजंस डे मनाया जा रहा है. कहा जाता है कि घर में बुजुर्ग व्यक्ति के होने से घर की नींव कभी डगमगाती नहीं है. इसके अलावा उनके रहने से हमेशा सही दिशा में चलने की प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता है. वर्ल्ड सीनियर सिटिजंस डे मनाने की घोषणा 14 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने की थी. इसके बाद इसे पहली बार 1 अक्टूबर 1991 को मनाया गया. बाद में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के नेशनल सीनियर सिटिजंस डे 21 अगस्त की तारीख के अनुसार वर्ल्ड सीनियर सिटिजंस की तारीख भी बदल दी गई और तब से लेकर आज तक पूरे दुनिया में यह 21 अगस्त को मनाया जाने लगा.