बगरू (जयपुर). बगरू के डॉक्टर फिरोज खान का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर पद पर चयन के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है, उस बीच ईटीवी भारत की टीम ने फिरोज के अध्यापक रहे दिनेश कुमार से बात की. साथ ही फिरोज के बचपन और विद्यार्थी काल की बातों को समझा.
बचपन से ही संस्कृत के प्रति विशेष लगाव रखता था फिरोज फिरोज के अध्यापक दिनेश कुमार ने बताया कि हमेशा फिरोज पढ़ने में अव्वल रहता था. बल्कि, अपना काम खत्म करके वो दूसरों की भी मदद किया करता था. फिरोज अक्सर 15 अगस्त और 26 जनवरी के जलसे में देशभक्ति से ओत-प्रोत कार्यक्रमों में भी भाग लेता, तो स्कूल की पढ़ाई से जुड़ी गतिविधियों के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी बराबर की भागीदारी रखा करता था.
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अपने शिष्य के साथ मजहब को लेकर हो रहे फर्क पर फिरोज के अध्यापक दिनेश कुमार व्यथित भी दिखे. उनका कहना था कि कहीं भी इस तरह का फर्क उनकी समझ से परे है. जब फिरोज ने परीक्षा देकर और पूरी प्रक्रिया को निभाकर नियुक्ति पाई है, तो फिर विरोध किया जाना उनकी समझ से परे है.
बचपन से ही संस्कृत के प्रति विशेष लगाव रखता था फिरोज उन्होंने अपील की है कि सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन इस विवाद का जल्द से जल्द निपटारा करें. वहीं, फिरोज के दोस्त सुनील कुमार के मुताबिक ये विरोध उन लोगों की तरफ से है जिन्होंने नियुक्ति नहीं पाई. उनके मुताबिक 29 लोगों में से इस पद पर फिरोज ने नियुक्ति पाई थी. ऐसे में अब नियुक्ति से वंचित कुछ लोग मजहब का हवाला देकर इस पूरे मसले को अलग रंग देने में जुटे हैं.
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जबकि, फिरोज की प्रतिभा से बगरू और पूरा राजस्थान वाकिफ है. हाल ही में संस्कृत दिवस के मौके पर सरकार की ओर से भी फिरोज को सम्मानित किया गया था. फिरोज और उसके परिवार का जिक्र करते हुए इन लोगों ने बताया कि वो लोग किसी एक धर्म के पीछे नहीं हैं. बल्कि सर्व धर्म सद्भाव की भावना उनके परिवार में सदियों से रची बसी है.
फिरोज के दादा भी गौशाला से जुड़े मंदिर में भजन गाते रहे हैं. फिरोज के पिता रमजान खान भी संस्कृत से स्नातक हैं और उनके कृष्ण भजन सुनने के लिए बगरु के लोग आज भी उतने ही लालायित रहते हैं.