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कोरोना काल में बदले चुनावी रंग, प्रचार सामग्री विक्रेताओं को नुकसान लेकिन 'मास्क' बने पहली पसंद - rajasthan local body elections

निकाय चुनावों की तारीखों के एलान के साथ ही प्रदेश का सियासी पारा हाई हो गया है. चुनाव का बिगुल बजने के बाद अब प्रत्याशियों ने अपना दमखम दिखाना शुरू कर दिया है. इस बार जयपुर में दो नगर निगमों के लिए चुनाव होंगे. लेकिन इस बार कोरोना का असर ना केवल चुनाव प्रचार पर नजर आ रहा है, बल्कि प्रचार सामग्री बेचने वालों पर भी साफ तौर पर देखा जा रहा है. अन्य सालों की तुलना में इस साल चुनाव सामग्री की काफी कम बिक्री हुई है. अगर कोई नई चीज प्रचार सामग्री के तौर पर शामिल हुई है, तो वह है मास्क. पढ़ें विस्तृत खबर...

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कोरोना काल में नगर निगम चुनाव के रंग पड़े फीके

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Published : Oct 24, 2020, 2:04 PM IST

जयपुर:प्रदेश में निकाय चुनावों की तारीखों के एलान के साथ ही सियासी माहौल गरम हो गया है. जयपुर, जोधपुर, कोटा के 6 नगर निगमों के लिए चुनाव होने हैं. पार्षद बनने की उम्मीद लगाए बैठे नेताओं में खुशी का माहौल है. राज्य में 2 चरणों में 29 अक्टूबर और 1 नवंबर को मतदान होगा. इसके बाद 3 नवंबर को मतगणना करवाई जाएगी. वहीं, महापौर का चुनाव 10 नवंबर और उप महापौर का चुनाव 11 नवंबर को करवाया जाएगा.

कोरोना काल में नगर निगम चुनाव के रंग पड़े फीके

जयपुर में नगर निगम ग्रेटर और नगर निगम हेरिटेज में चुनाव प्रचार अब पूरे जोरों पर है. प्रत्याशी अब जनता के दरबार में धोक लगा रहे हैं और अपने लिए वोट मांग रहे हैं. लेकिन इन चुनाव में इस बार कोरोना का असर भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. कोरोना के चलते चुनाव में रौनक प्रचार सामग्री बेचने वाले लोगों की दुकानों पर भी इस बार कम है.

प्रचार सामग्री बेचने वाले व्यापारियों का कहना है की कोरोना ने इस बार उनका बिजनेस भी मंदा कर दिया है. जबकि हर बार चुनाव में इस बार से कहीं ज्यादा चुनाव सामग्रियां बिकती थी. लेकिन ना तो इस बार पार्टी के उम्मीदवारों और ना ही निर्दलीय उम्मीदवारों की ओर से प्रचार सामग्री खरीदने में कोई खास उत्साह देखा गया. ऐसे में चुनाव में ही चलने वाला यह सीजनल बिजनेस भी इस बार मंदी की चपेट में आ गया.

कमल चुनाव चिन्ह वाला मास्क

इस बार प्रचार सामग्री में मास्क भी शामिल

हालांकि नगर निगम चुनाव में बड़े-बड़े कटआउट जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बनवाए जाते हैं. वह इन चुनावों में देखने को नहीं मिलते. लेकिन इस बार प्रचार सामग्री में झंडे, बैनर, पोस्टर, बैज के साथ ही अगर कोई नई चीज प्रचार सामग्री के तौर पर शामिल हुई है, तो वह है मास्क.

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भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के चुनाव के निशान वाले मास्क इस बार खासी डिमांड में हैं और बड़ी तादाद में बिक भी रहे हैं. इसके साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार भी सबसे ज्यादा डिमांड अपने नाम के मास्क की ही करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

जयपुर नगर निगम का सियासी गणित

भाजपा ताज बचाने के लिए उतरेगी मैदान में

जयपुर नगर निगम में अब तक भाजपा का ही बोर्ड बनता आया है. कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के समय महापौर जनता के माध्यम से चुना गया था. तब कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल महापौर बनी थी. इसके बाद भाजपा से बागी हुए विष्णु लाटा महापौर बने. लेकिन बोर्ड अभी तक भाजपा का ही बना है. ऐसे में दो नगर निगम बनने के बाद अब भाजपा के सामने इस ताज को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती होगी.

उधर, कांग्रेस के लिए इस बार जयपुर में बोर्ड बनाने का मौका है. जयपुर हेरिटेज में जो इलाका है, उसमें आमेर को छोड़ दिया जाए तो बाकी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक ही काबिज हैं. यही नहीं यहां मुस्लिम वोटर की भी बड़ी संख्या है, जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा है. ऐसे में हेरिटेज नगर निगम में कांग्रेस का बोर्ड बनने की संभावना ज्यादा है.

जयपुर नगर निगम का सियासी गणित

बगावत का खतरा

जयपुर की हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम क्षेत्रों में बीजेपी और कांग्रेस से टिकट चाहने वालों की भी लंबी फेहरिस्त है. भले ही जिला स्तर पर टिकट निर्धारण के लिए कमेटियों का गठन हो किया गया हो. लेकिन अभी तक देखने में आया है कि राजनीतिक दल अपने विधायक और विधायक प्रत्याशी के कहने पर ही टिकटों का वितरण करते आए हैं. ऐसे में बड़ी संख्या उन नेताओं की होगी जो पार्षद की टिकट से वंचित रहेंगे और इनमें से कई बागी होकर निर्दलीय चुनाव भी लड़ेंगे. ऐसी स्थिति में दोनों पार्टियों के लिए बागियों को मनाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.

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बहरहाल, कोरोना संक्रमण के कारण जहां लोग अभी भी घर से बाहर निकलने से कतराते हैं. ऐसी स्थिति में इन वोटर्स को मतदान केंद्र तक वोट डालने के लिए ले जाना भी पार्षद उम्मीदवारों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. अल्पसंख्यक बाहुल्य और कच्ची बस्ती इलाकों में तो वोटिंग के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन रिहायशी इलाकों और मध्यमवर्गीय परिवारों को मतदान के लिए राजी करना आसान नहीं होगा. ऐसी परिस्थितियों में भी कांग्रेस को फायदा मिल सकता है.

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