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Special: हाथी पालकों पर दोहरी मार, एक तरफ कोरोना महामारी दूसरी तरफ पालन-पोषण भारी - Jaipur News

कहावत है कि हाथी पालना खरीदने से भी ज्यादा मुश्किल है. जब हाथी पालने के उद्देश्य की पूर्ति ना हो रही हो तो इन हालातों में एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा कहावत भी एकदम फिट बैठती है. कुछ यही हालात राजधानी के हाथी गांव और आमेर के हाथी पालकों के हैं. वे महामारी के इस दौर में पर्यटन व्यवसाय बंद होने के कारण दोहरी मार झेल रहे हैं.

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हाथी पालकों पर दोहरी मार

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Published : Jun 14, 2021, 11:13 PM IST

जयपुर. आमेर और हाथी गांव पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते हैं. हाथी की सवारी करना पर्यटकों के यादगार पलों में शामिल होता है. कोरोना के इस दौर में हाथी पालक दोहरी मार झेल रहे हैं. एक तरफ महामारी दूसरी तरफ हाथियों का पालन पोषण भारी पड़ रहा है.

हाथी पालकों पर दोहरी मार

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हाथी मालिक कर्ज लेने पर मजबूर

हाथी सवारी बंद होने के बाद हाथी मालिकों के सामने रोजगार का संकट आ गया है. हाथियों का खर्चा उठाना भी मुश्किल हो रहा है. आमेर महल में करीब 90 हाथी राइडिंग में चलते हैं. आमेर महल में हाथी सवारी से प्रति हाथी की आय करीब 3 से 4 हजार रुपये होती थी. जिससे हाथी मालिकों और महावतों का खर्चा चलता था. लेकिन लॉकडाउन होने से आमेर महल में हाथी सवारी भी बंद है. ऐसे में हाथियों को चारा खिलाना भी मुश्किल हो रहा है.

कर्ज लेने के लिए मजबूर

एक हाथी पर रोजाना 2000 रुपये का खर्चा होता है. हाथी मालिकों को अपनी जेब से ही हाथियों को चारा खिलाना पड़ रहा है. ऐसे में हाथी मालिक कर्जा लेने के लिए मजबूर हो रहे है.

एक हाथी पर 2000 रुपये रोजाना खर्च

रोजाना 3 से 4000 रुपये कमा कर देने वाले हाथियों पर अब 2000 रुपये रोजाना खर्चा करना पड़ रहा है. जैसे-तैसे हाथी मालिक हाथियों को चारा खिला रहे हैं. लॉकडाउन के चलते हाथी मालिकों के साथ महावत भी बेरोजगार हो गए हैं. ऐसे में महावतों के घर का खर्चा भी चलना मुश्किल हो रहा है. हाथी मालिकों की ओर से महावतों को भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है.

हाथी पालकों पर दोहरी मार

किसी हाथी मालिक ने मकान बेचा तो किसी ने जेवर गिरवी रखा

हाथी मालिक विकास समिति अध्यक्ष अब्दुल अजीज ने बताया कि जब से लॉकडाउन लगा है, तब से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अबतक सरकार और प्रशासन से कोई सहायता नहीं मिली है. हाथी कल्याण संस्था की तरफ से 600 रुपये प्रति हाथी के हिसाब से दिए जाते थे, वह भी नहीं मिल रहे हैं.

किसी हाथी मालिक ने मकान बेचा तो किसी ने अपना जेवर गिरवी रख दिया है. जिससे परिवार का पालन-पोषण चला पा रहे हैं. हाथी मालिक और महावतों की समस्या को लेकर सरकार और प्रशासन को पत्र भी लिखा गया है. लेकिन अबतक कोई मदद नहीं मिली.

हाथी मालिक ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी आमेर देसी-विदेशी सैलानियों का आकर्षण का केंद्र रहती है. आमेर की हाथी सवारी भी देश-विदेश में प्रसिद्ध है. हाथी सवारी करने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आमेर पहुंचते हैं. इस हाथी सवारी से कई लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे उनके परिवारों का पेट भी पलता है. लेकिन कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन होने से सभी पर्यटन उद्योग बंद हो गए हैं. प्रदेश में लॉकडाउन होने से हाथी मालिकों और महावतों का पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है.

खर्च उठाना भी मुश्किल

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लॉकडाउन से हाथी मालिकों पर काफी प्रभाव पड़ रहा है. हाथी सवारी से होने वाली आमदनी से ही हाथियों का और मालिकों का गुजारा चलता है. लेकिन लॉकडाउन होने से हाथियों को पालना भी मुश्किल हो रहा है. एक हाथी का खर्चा 2000 रुपये प्रतिदिन का होता है. ऐसे में हाथी मालिकों को काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ रहा है. हाथी मालिकों को अपने जेब से खर्चा करना पड़ रहा है. 90 हाथियों पर रोजाना करीब 2 लाख रुपये खर्च हो रहा है.

हाथियों का चारा भी काफी महंगा पड़ रहा है. 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से हाथियों का चारा मिलता है. हाथी गांव में करीब 63 हाथी मौजूद हैं. आमेर में करीब 90 हाथी हैं. कोई हाथी मालिक कर्जा ले रहा है तो कोई प्रॉपर्टी बेचकर अपना गुजारा चला रहा है.

लॉकडाउन के दौरान हाथियों को हाथी गांव में ही रूटीन के हिसाब से वॉक करवाई जाती है, ताकि उनके शरीर में समस्या ना हो. हाथियों को घुमाने के बाद रोजाना स्नान करवाया जाता है. लॉकडाउन होने के बाद इंसानों की तरह हाथियों की दिनचर्या में भी बदलाव आ गया है. अब उन्हें दिन भर खड़े रहने की आदत सी बन गई है.

हाथी

एक हाथी कमाता था 4000 रु

हाथी सवारी से एक हाथी की आय 3 से 4000 रुपये होती थी, जिससे हाथी का खर्चा, महावत का खर्चा और मालिकों का खर्चा निकलता था. लेकिन अब लॉकडाउन को एक महीने का समय हो चुका है. ऐसे में हाथी मालिकों और महावतों की आर्थिक स्थिति भी खराब हो रही है.

हाथी मालिकों के भरोसे महावतों के परिवार का पालन-पोषण

महावतों के परिवारों का पालन पोषण हाथी मालिकों के भरोसे है. हाथी महावतों का कहना है कि पहले आमेर हाथी सवारी के लिए जाते थे, तो घर का खर्चा भी चल पाता था. लेकिन हाथी सवारी बंद होने से अब खर्चा चलाना भी मुश्किल हो रहा है. जमा पैसा खर्च हो चुका है. अब खाने की भी समस्या हो रही है. हालांकि हाथी मालिकों की ओर से दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया जा रहा है.

राजस्थान की शान है हाथी

हाथी मालिक नजर मोहम्मद ने बताया कि कोरोना की पहली लहर से ही हाथी मालिक और महावतों की हालत खराब चल रही है. सरकार से उम्मीद करते हैं कि हाथी मालिक और महावतों की मदद की जाए. हाथी राजस्थान की शान है. इनकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए.

हाथी

आर्थिक सहायता की मांग

कोरोना की पहली लहर के बाद से ही हाथी मालिकों का काम-धंधा ठीक से नहीं चल पा रहा है. पिछली बार भी लॉकडाउन के साथ हाथी सवारी बंद होने से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. जैसे-तैसे काम-धंधा पटरी पर लौटने लगा था लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने सब चौपट कर दिया.

अब हाथी मालिक और महावत सरकार से आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द पर्यटन स्थल शुरू हो और आमेर की शान हाथी सवारी फिर से शुरू हो सके.

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