जयपुर. राजस्थान में जयपुर की परंपरागत लोकनाट्य तमाशा का मंचन राजा-महाराजाओं के समय से ब्रह्मपुरी क्षेत्र में हो रहा है. हीर-रांझा, राजा गोपीचंद, जोगी-जोगन, छैला-पणिहारी और लैला मजनू सहित (Rajasthan Ke Pramukh Loknatya) 52 तरह के तमाशे यहां होते आए हैं. जिसमें शास्त्रीय संगीन का तड़का भी लगाया जाता है.
कलाकार भट्ट परिवार की सात पीढ़ियां और इसी तरह क्षेत्रीय दर्शकों की भी सात पीढ़ियां इस तमाशा कार्यक्रम से जुड़ी हुई हैं, जो जयपुर की सभ्यता और संस्कृति को आज भी जीवंत किए हुए है. बिना किसी तामझाम के खुले मंच पर होने वाला जयपुर का पारम्पारिक लोकनाट्य तमाशे में सिर पर कलंगी वाला मुकुट, भगवा वस्त्र धारण किए हुए, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांध कर कलाकार हारमोनियम और सारंगी की धुनों पर स्वर छेड़ता है.
होली के रस भरे गीतों के साथ (Jaipur Holi Special) देश प्रदेश की राजनीति पर कटाक्ष करते दिखते हैं. वर्षों से होली के अवसर पर जनमानस का मनोरंजन कर रहे भट्ट परिवार की पहचान बन चुके इस तमाशे का निर्देशन प्रसिद्ध तमाशा गुरु वासुदेव भट्ट करते हैं और उन्हीं के परिवार के तपन भट्ट रांझा, विनत भट्ट हीर और चितरंगा की भूमिका में विशाल भट्ट नजर आते हैं.