जयपुर. महिलाओं को अपने कार्य क्षेत्र में होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ देश में विशाखा गाइडलाइनबनी. विशाखा गाइडलाइनको आधार मानते हुए साल 2013 में 'सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वूमेन एट वर्कप्लेस एक्ट' अस्तित्व में आया. विशाखा गाइडलाइन राजस्थान की भंवरी देवीके संघर्षों के फलस्वरुप हुआ.
दरअसल जयपुर के पास भतेरी गांव में रहने वाली सोशल वर्कर भंवरी देवी इस मामले के केंद्र में रहीं. साल 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावतके समय बाल विवाह रोकने के लिए जो अभियान चलाया था. उस अभियान में भंवरी देवीभी साथिन के रूप में काम करती थीं. एक बाल विवाह रोकने की कोशिश के दौरान उनकी बड़ी जाति के कुछ लोगों से दुश्मनी हो गई. जिसके बाद अगड़ी जाति के लोगों ने उनके साथ सामुहिक दुष्कर्म किया.
इसमें कुछ ऐसे लोग भी थे, जो बड़े पदों पर रहे. न्याय पाने के लिए भंवरी देवी ने इन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. लेकिन सेशन कोर्ट ने उन्हें रिहा करने के लिए कई ऐसे तर्क दिए, जो चौंकाने वाले थे. कोर्ट ने कहा, कि गांव का मुखिया दुष्कर्म नहीं कर सकता. अलग-अलग जाति के पुरुष सामुहिक दुष्कर्म में शामिल नहीं हो सकते. एक पुरुष किसी रिश्तेदार के सामने दुष्कर्म नहीं कर सकता.
पुलिस-प्रशासन के रवैए के खिलाफ भंवरी देवी के साथ ही कई महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 13 अगस्त 1997 को सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइन जारी की. इस गाइडलाइन के मुताबिक महिला को मर्जी के खिलाफ छूना, अश्लील कमेंट करना और अश्लील फिल्म या चित्र दिखाना जैसी बातें यौन हिंसा के दायरे में आती हैं. साल 2013 तक दफ्तरों में विशाखा गाइडलाइन के आधार पर ही मामलों को देखा जाता रहा.
उसके बाद साल 2013 में सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वूमेन एट वर्कप्लेस एक्ट आया. जिसमें विशाखा गाइडलाइन के मुताबिक ही कार्यस्थल में महिलाओं के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात कही गई.
ये पढ़ेंः 15 RAS बनेंगे IAS, नए साल में मिलेगा पदोन्नति का तोहफा
26 साल बाद भी नहीं मिला न्याय