जयपुर.भाई दूज का त्यौहार भाई-बहन के अपार प्रेम और समर्पण का प्रतीक पर्व है. भाईदूज का त्यौहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है. यह त्यौहार दीवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने भाइयों को अपने घर पर आमंत्रित कर उनके तिलक लगाकर उन्हें भोजन कराती हैं.
वहीं, एक ही घर में रहने वाले भाई-बहन इस दिन एकसाथ बैठकर यह त्यौहार मनाते हैं. बहन अपने भाई को तिलक लगाकर मिठाई खिलाती है. मान्यता है कि भाई दूज के दिन यदि भाई-बहन यमुना किनारे बैठकर साथ में भोजन करें तो यह अत्यंत मंगलकारी और कल्याणकारी होता है.
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भाई दूज का त्यौहार देश भर में धूम-धाम से मनाया जाता है. हालांकि, इस पर्व को मनाने की विधि हर जगह एक जैसी नहीं है. उत्तर भारत में जहां यह चलन है कि इस दिन बहनें भाई को अक्षत और तिलक लगाकर नारियल भेंट करती हैं. वहीं पूर्वी भारत में बहनें शंखनाद के बाद भाई को तिलक लगाती हैं और भेंट स्वरूप कुछ उपहार देती हैं. मान्यता है कि इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है.
भैया दूज व्रत कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था. उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था. यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी. वह उससे बराबर निवेदन करती कि यमराज अपने इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करें. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहते थे. कार्तिक शुक्ला का दिन आया यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया.
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यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं. मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता. पर यमुना बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है. बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया. यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया. यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया.