भरतपुर.चौबुर्जा मंदिर में लोहागढ़ की स्थापना काल से ही गणेश जी की दो प्रतिमाएं विराजमान हैं (Chauburja Ganesh Temple). माना जाता है कि इसी मंदिर के गणेश जी का प्रताप था कि महाराजा सूरजमल की सेना हमेशा युद्ध जीतकर वापस लौटी. अमूमन किसी भी एक जगह या धार्मिक स्थल पर भगवान गणेश की दो प्रतिमाएं विराजमान नहीं होती हैं (Unique divine Place with 2 Ganesha), लेकिन यहां तो कुछ ऐसा ही है. लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर स्थापित ये मंदिर इतिहास का एक सुनहरे अध्याय का उदाहरण है.
ऐसे हुई गणेश जी की स्थापना: मंदिर के पुजारी संतोष पंडा ने बताया कि जब लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण हो गया तो दुर्ग के बाहर यहां जंगल था. महाराजा सूरजमल लोहागढ़ दुर्ग से बाहर निकलते हैं तो उन्हें जंगली जानवर नजर पड़ते. ऐसे में महाराजा सूरजमल ने सोचा कि क्यों ना लोहागढ़ दुर्ग के मुख्य द्वार पर एक मंदिर का निर्माण कराया जाए, ताकि दुर्ग से बाहर निकलते समय भगवान के दर्शन हों? इसी सोच के साथ महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ दुर्ग के दक्षिणी द्वार के बाहर मंदिर का निर्माण करा दिया लेकिन मंदिर निर्माण के बाद जब मूर्ति स्थापना की बात आई, तो पूरे दरबारीजनों ने विचार-विमर्श किया कि मंदिर में कौन से भगवान की मूर्ति स्थापित कराई जाए? आखिर में सभी की सहमति से मंदिर में श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करा दी गई.
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एक मंदिर में दो प्रतिमा:संतोष पंडा ने बताया कि किले के बाहर मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जा रही थी. उसी समय मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली. एक और अन्य मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अतिरिक्त प्रतिमा भी मंगाई गई थी लेकिन जैसे ही मुगलों के आक्रमण की सूचना मिली तो गणेश जी की दूसरी प्रतिमा भी इसी मंदिर में स्थापित करा दी. शास्त्रों में मान्यता है कि एक देवालय में एक देवता की एक ही प्रतिमा स्थापित की जा सकती है. यदि एक देवालय में एक देवता की दो प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी, तो एक प्रतिमा स्वतः खंडित हो जाएगी. लेकिन इस गणेश मंदिर में ऐसा नहीं हुआ. इस मंदिर में स्थापित की गई गणेश जी की दोनों प्रतिमाएं सही सलामत हैं. मंदिर के पुजारी इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं.
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