अलवर.अलवर के सानिया अस्पताल में 12 वेंटीलेटर हैं. इस हॉस्पिटल में करीब 50 से अधिक मरीज कोरोना के भर्ती हैं. सोमवार को अस्पताल प्रशासन ने बाहर बोर्ड लगा दिया कि उनके यहां ऑक्सीजन नहीं है. मरीज भर्ती नहीं कर सकते. ऐसे में महिला परिजन हाथ जोड़कर रोते-गिड़गिड़ाते नजर आई. अस्पताल के बाहर एक मरीज फुटपाथ पर भी पड़ा दिखाई दिया, जिसे भर्ती नहीं किया जा सका.
निजी अस्पताल ने मरीजों को निकाला बाहर कोरोना के आइसीयू में भर्ती मरीज और उनके परिजनों को जैसे ही पता चला कि ऑक्सीजन नहीं है. इसके बाद कुछ मरीजों के परिजन कलेक्टर के पास पहुंच गए. यहां अस्पताल के बाहर मरीजों के परिजन भी डरे रहे. दिल्ली से आए एक मरीज का ऑक्सीजन लेवल केवल 50 मिला. मरीज के पिता रविशंकर ने कहा, दिल्ली से यहां आ गया, अब कहां जाऊं. इसके अलावा एक महिला परिजन हाथ जोड़कर रोते-गिड़गिड़ाते कहा कि हमारा मरीज ऑक्सीजन की बदौलत जिंदा है। नहीं तो मर जाएगा. प्रशासन ऑक्सीजन भिजवाए. इसके अलावा मथुरा, बहरोड़ और दिल्ली सहित आसपास के विभिन्न शहरों से इलाज के लिए अलवर पहुंचे. मरीज के परिजनों से परेशान नजर आए तो प्रशासन से ऑप्शन सप्लाई की मांग करते हुए दिखे.
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अलवर के दूसरे अस्पतालों में भी बेड खाली नहीं है. इसलिए कहीं जा भी नहीं सकते. प्रशासन की रिपोर्ट यह बता रही है कि जिले के निजी अस्पतालों में सबसे अधिक अलवर के सानिया हॉस्पिटल कोविड मरीजों के लिए 12 वेंटीलेटर हैं. 100 बैड का अस्पताल है, जिसमें से 38 बैड कोविड ऑकसीजन के चिह्नित हैं. मरीज बढ़ने पर अब 50 प्रतिशत मरीज कोविड के भर्ती हो चुके हैं. इसके बावजूद उनको 24 घण्टे में 30 ऑक्सीजन सिलेण्डर दिए जाते हैं. हॉस्पिटल के संचालक डॉ. तैयब खान का कहना है कि जिन अस्पतालों में मरीज हमसे आधे हैं. वहां सिलेण्डर हमसे दोगुना से अधिक पहुंचते हैं. प्रशासन के अधिकारियों को मरीजों की संख्या के लिहाज ऑक्सीजन वितरण करने की जरूरत है. हॉस्पिटल प्रशासन की तरफ से बाहर नोटिस लगाया गया है, जिसमें लिखा है कि जिला प्रशासन की ओर से ऑक्सीजन की सप्लाई में निरंतर कमी करने के कारण हमारा अस्पताल कोविड- 19 के मरीजों का उपचार नहीं कर पा रहा है. अत: यहां कोविड के मरीज नहीं लेकर आएं.
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हॉस्पिटल संचालक डॉ. तैयब खान ने कहा कि प्रशासन की तरफ से ऑक्सीजन की गलत गणना की जा रही है. उनके यहां ज्यादा मरीज भर्ती हैं. इसलिए अन्य जगहों की तुलना में ऑक्सीजन की ज्यादा आवश्यकता है. प्रशासन की तरफ से ऑक्सीजन की गणना करने के लिए एक बाबू को लगाया गया है. इस काम में निजी अस्पताल में मरीज पैसे देता है. इसलिए उसको बेहतर इलाज की उम्मीद होती है. ऐसे में उन पर लगातार परिजनों का दबाव रहता है. ऐसे हालातों में मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने मरीजों को भर्ती करने से मना कर दिया है.