अलवर.जिले में सरिस्का 13 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. सरिस्का नेशनल पार्क के घने जंगल में 29 गांव पड़ते हैं. इनमें से 3 गांव विस्थापित हो चुके हैं. जबकि अन्य 26 गांव में अभी लोग रहते हैं. यह लोग 24 घंटे मौत व डर के साए में जीते हैं. 24 घंटे जंगल में बाघ, पैंथर, सियार, गीदड़, बघेरा, जैसे खूंखार जानवरों की हलचल रहती है. सरिस्का के जंगल में 11 बाघ व 500 से अधिक पैंथर, सैकड़ों की संख्या में गीदड़, सियार, लोमड़ी व सांप सहित अन्य जानवर हैं. आए दिन जंगली जानवर गांव वालों के मवेशियों और लोगों पर हमला कर देते हैं. गांव घने जंगल में बसे हुए हैं, इसलिए वन विभाग के सभी नियमों की ग्रामीणों को पाल ना करनी पड़ती है.
वहीं गांवों में एक भी पक्का घर नहीं है. इसके अलावा स्कूल, शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था, सड़क सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं के भी कोई इंतजाम नहीं है. ग्रामीण पूरी तरह से पशुपालन पर निर्भर है. गाय व भैंसों का दूध निकालकर ग्रामीण शहरी क्षेत्र में भेजते हैं. छोटे बच्चे ज्यादातर घर में रहते हैं. तो वहीं कुछ बच्चे पढ़ाई के लिए सरिस्का से 15 से 20 किलोमीटर दूर थानागाजी में जाते हैं. दिन ढलने से पहले सभी गांव के लोगों को गांव में आना पड़ता है. जो लोग नहीं आ पाते उनको सरिस्का के बाहर ही अन्य जगह पर रुकना पड़ता है.
इन सब के बारे में जब ग्रामीणों से बातचीत की गई. तो उन्होंने कहा कि वो कई पीढ़ी यही गांव में रही है. इसलिए हम लोगों को इन वन्यजीवों व गांव की आदत हो चुकी है. तो वहीं मुआवजे व अन्य सरकार से मिलने वाली मदद के लालच में गांव के लोग गांव छोड़ने को तैयार नहीं है.
दअरसल ग्रामीणों की मवेशियों पर अगर कोई वन्यजीव हमला करता है. तो सरिस्का प्रशासन की तरफ से उसको मुआवजा दिया जाता है. इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति पर वन्यजीव हमला करता है तो प्रत्येक परिस्थिति के लिए अलग मुआवजा निर्धारित है. सरकार से ज्यादा ज्यादा मुआवजा जमीन व पैसा लेने के लिए ग्रामीणों की तरफ से लगातार प्रयास किए जाते हैं, क्योंकि विस्थापन प्रक्रिया में सरकार द्वारा ग्रामीणों को दो तरह के पैकेज दिए जाते हैं. उनमें पैसे, जमीन, मकान सहित सभी उपलब्ध कराया जाता है. इसलिए ग्रामीण अपने प्रत्येक बेटे-बेटी सहित सभी का अलग से राशन कार्ड बनवा कर रखते हैं व मुआवजा राशि लेते हैं.